क्या आपने बैंक से लिए गए लोन पर छह महीने या फिर तीन महीने के लिए किस्तों में छूट हासिल की है? यदि ऐसा है तो फिर भविष्य में आपको लोन में मुश्किलें झेलनी पड़ सकती हैं। होम लोन, कार लोन से लेकर कॉरपोरेट लोन तक पर यह समस्या झेलनी पड़ सकती है। बैंकिंग सेक्टर के जानकारों का कहना है कि बैंक ऐसे ग्राहकों को भविष्य में हाई रिस्क कस्टमर मान सकते हैं और उन्हें लोन देने से इनकार कर सकते हैं या फिर ब्याज की दर ऊंची रखी जा सकती है। बैंकिंग सेक्टर के एक जानकार ने कहा कि मोराटोरियम लेने का सीधे तौर पर अर्थ है कि संबंधित व्यक्ति को कैश फ्लो की समस्या का सामना करना पड़ा है और भविष्य में भी ऐसा हो सकता है।
फिलहाल बैंक कई क्रेडिट एजेंसियों की रिपोर्ट के आधार पर ग्राहकों का क्रेडिट स्कोर तय करते हैं और उन्हें लोन देने पर फैसला लेते हैं। हालांकि मोराटोरियम लेने से किसी ग्राहक के क्रेडिट स्कोर पर कोई असर नहीं होना है, लेकिन बैंक इस मसले को अपनी तरफ से ही देख सकते हैं। उनके पास सभी ग्राहकों का डेटा है और वे मोराटोरियम का फायदा लेने वाले ग्राहकों को लोन के लिहाज से हाई रिस्क कैटिगरी में मान सकते हैं। स्पष्ट है कि 6 महीने का मोराटोरियम लेने से ग्राहक पर कर्ज का बोझ बढ़ेगा और नया लोन लेने की उसकी क्षमता प्रभावित होगी। ऐसे ग्राहक संकट से निपटने के लिए बैंकों से पर्सनल लोन और क्रेडिट कार्ड की मांग कर सकते हैं।
बैंक इस दौरान किसी भी तरह का कर्ज जारी करने को रिस्की मान रहे हैं। ऐसे में वे किसी भी नए लोन को जारी करने से पहले मोराटोरियम का अपना डेटा चेक कर सकते हैं। यही नहीं क्रेडिट ब्यूरोज के लिए भी ऐसे ग्राहकों को चुनना आसान है, जिन्होंने मोराटोरियम का फायदा लिया है। इसके अलावा बैंक पुरानी हिस्ट्री, पेमेंट डिले हिस्ट्री, ऐज प्रोफाइल समेत कई अन्य पहलुओं पर भी विचार कर सकते हैं।
ईएमआई मोराटोरियम से बड़ा खतरा पैदा होने की आशंका है क्योंकि ऐसे ग्राहकों की संख्या काफी अधिक है, जिन्होंने इसका लाभ लिया है। आरबीआई के अनुमान के मुताबिक मार्केट में जारी 100 लाख करोड़ रुपये के लोन में से 38.68 लाख करोड़ रुपये के लोन पर मोराटोरियम की सुविधा ली गई है।