देश में आर्थिक सुस्ती और ऑटो सेक्टर में मंदी के भारतीय वाहन निर्माण क्षेत्र की दिग्गज कंपनी टाटा मोटर्स की मुश्किलें भी कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। टाटा मोटर्स पर कर्ज का बोझ इतना बढ़ गया है कि इसके प्रोमोटर्स को कंपनी में 6500 करोड़ रुपये की पूंजी झोंकनी पड़ी है।
इसके अलावा रिपेमेंट, रिफाइनेंसिंग और वर्किंग कैपिटल्स की जरूरत को पूरा करने के लिए कंपनी को बाहर से भी 3500 करोड़ रुपये का इंतजाम करना पड़ा है। बिजनेस टुडे की खबर के अनुसार कंपनी का सकल कर्ज जून 2019 के 1.14 लाख करोड़ से बढ़कर सितंबर 2019 1.17 लाख करोड़ पहुंच गया है। इसमें जागुआर लैंड रोवर और ऑटो फाइनेंस बिजनेस का कर्ज भी शामिल हैं।
खबर के अनुसार कंपनी के ऑटोमोटिव बिजनेस का शुद्ध कर्ज 46,515 करोड़ से बढ़कर 50,065 करोड़ रुपये पहुंच गया है। इसके अलावा कंपनी का कन्सॉलिडेटेड नेट ऑटोमोटिव डेट इक्विटी अनुपात भी पिछले साल के 0.43 की तुलना में बढ़कर 0.96 हो गया है।
खबर में बताया गया है कि अकेले टाटा मोटर्स लिमिटेड के ऑटोमोटिव बिजनेस का शुद्ध कर्ज जून के 21,718 की तुलना में बढ़कर 23,685 करोड़ रुपये हो गया है। इससे पहले यह मार्च में 15,658 करोड़ रुपये था। कंपनी के नेट डेट इक्विटी भी मार्च के 0.71 की तुलना में बढ़कर 1.17 हो गई है। इस अनुपात के बढ़ने की वजह से ही टाटा संस को कंपनी में अतिरिक्त पूंजी लगानी पड़ रही है।
कंपनी के कर्ज के अनुसार जागुआर लैंड रोवर को ही 650 मिलियन पाउंड का भुगतान करना है जबकि टाटा मोटर्स लिमिटेड पर 3401 करोड़ रुपये की देनदारी है। कंपनी के कर्ज में तेजी से बढ़ोतरी उस समय हो रही है जब देश का ऑटो सेक्टर बुरी तरह से मंदी की चपेट में है। ऑटो सेक्टर की ब्रिकी तेजी से प्रभावित हुई है। कंपनी की ब्रिटिश सब्सिडरी जागुआर लैंड रोवर को भी चीन और यूरोपीय बाजारों (ब्रिटेन छोड़कर) में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
दूसरी तिमाही में जेएलआर के प्रदर्शन में हालांकि सुधार देखने को मिला था। इसके अलावा टाटा मोटर की सहायक कंपनी टाटा मोटर फाइनेंस भी बढ़ते एनपीए से मुश्किलों का सामना कर रही है। टीएमएफ का एनपीए मौजूदा वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में पिछले साल की समान अवधि के 3.5 फीसदी से बढ़कर 4.9 फीसदी पहुंच गया है।

