दिल्ली जैसे महानगरों में जाम और उससे पैदा होने वाले प्रदूषण से निजात के लिए बेहतर है कि साइकिल शेयरिंग को प्रभावी बनाया जाए और इसके लिए इसको तकनीक से लैस किया जाए। यह बात साइकिल बनाने वाली कंपनी फायरफॉक्स के मुख्य कार्यकारी अधिकारी शिव इंदर सिंह ने कही। सिंह ने कहा, ‘महानगरों में दिनों दिन जाम और प्रदूषण की समस्या बढ़ रही है और इसके समाधान में साइकिल शेयरिंग मदद कर सकती है। विदेशों में इस मॉडल को अपनाया जा चुका है और इसके लिए तकनीक का सहारा लिया जाता है।’ कंपनी ने गुरुवार (11 अगस्त) को यहां लक्जरी ब्रांड स्विस मिलिट्री के साथ मिलकर बनाई गई तीन नई साइकिलों को पेश किया जिनकी कीमत 12,000 से 25,000 रुपए के बीच है।

सिंह ने कहा, ‘साइकिल शेयरिंग के अभी जो प्रयास है उसमें खामी यह है कि आपको जहां से साइकिल किराए पर लेनी होती है वहीं पर वापस जाकर जमा भी करनी होती है। यदि इस काम में तकनीक की मदद ली जाए तो एक स्मार्टकार्ड के माध्यम से कहीं से भी साइकिल लेकर उसे दूसरे जगह पर जमा किया जा सकता है। इससे लोगों के धन और समय की बचत के साथ ही प्रदूषण और जाम की समस्या से भी निजात मिलेगी। हालांकि साइकिल का चलन बढ़ाने के लिए बुनियादी ढांचे को भी मजबूत करना होगा।’

सिंह ने भारत में साइकिल की चोरी हो जाने की समस्या के बारे में बात करते हुए कहा कि उन्होंने इस संबंध में फ्यूचर जनराली के साथ गठबंधन किया है जिसके तहत साइकिल का बीमा किया जाता है। उन्होंने कहा, ‘देश में बीमा को क्लेम करने के लिए पुलिस में प्राथमिकी दर्ज कराने की आवश्यकता पड़ती है। लेकिन भारत में साइकिल के लिए प्राथमिकी दर्ज कराना मुश्किल काम है। इसलिए फ्यूचर जनराली द्वारा किए जाने वाले बीमा में आपको प्राथमिकी की जरूरत नहीं होती। बस आवेदन फॉर्म भरकर ही बीमा का दावा किया जा सकता है।’

कंपनी के विपणन प्रमुख अजीत गांधी ने कहा कि फायरफॉक्स ने लुधियाना में रकबा गार्डन का विकास एक साइकिलिंग गार्डन के तौर पर किया है। इसके अलावा लोगों के बीच साइकिल को लेकर रुचि बढ़ाने के लिए वह विभिन्न आयोजन करती रहती है। साइकिल के बुनियादी ढांचे पर कंपनी के कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व कोष को खर्च करने के सवाल पर सिंह ने कहा कि कंपनी अपने इस कोष का इस्तेमाल विभिन्न गैर सरकारी संगठनों के साथ मिलकर करती है लेकिन सरकार के साथ मिलकर बुनियादी ढांचे पर इस कोष को खर्च करने में थोड़ी दिक्कतें हैं इसलिए हमें इसे एनजीओ के साथ ही खर्च करना होता है।