रूस और यूक्रेन युद्ध के बाद आया कच्चे तेल में उबाल थमता हुआ नजर आ रहा है। आज गुरुवार को तेल निर्यातक देशों का संगठन (ओपेक) के सदस्य देश यूनाइटेड अरब अमीरात (यूएई) द्वारा कच्चे तेल का उत्पादन बढ़ाने बयान के बाद कच्चे तेल की कीमत 115 डॉलर प्रति बैरल से भी नीचे आ गई है। पिछले एक साल के दौरान यह पहला मौका है जब दुनिया में कच्चे तेल में इतनी बड़ी गिरावट आई है।

17 फीसदी गिरा कच्चा तेल: अमेरिका और पश्चिमी देशों द्वारा रूस से आयातित कच्चे तेल पर प्रतिबंध की चर्चा के चलते अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम 7 मार्च 2022 को अपने 14 सालों के उच्चतम स्तर को पार कर गए थे, जिसके बाद से कच्चे तेल के कीमत में कमी देखने को मिल रही है। 7 मार्च 2022 को ब्रेंट क्रूड फ्यूचर्स के कीमत 139.35 डॉलर प्रति बैरल  पर पहुंच गई थी जो 10 मार्च 2022 को 115 डॉलर प्रति बैरल पर आ गई। इस तरह कच्चे तेल के दामों में पिछले 2 दिन में ही 17 फीसदी की गिरावट आई है।

कच्चा तेल 300 डॉलर पार चला जायेगा: अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन के बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए रूस के उप प्रधानमंत्री अलेक्जेंडर नोवाक ने कहा था कि अगर रूस से तेल और गैस के निर्यात पर पश्चिमी देशों में प्रतिबंध लगाने की कोशिश की तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का भाव 300 डॉलर प्रति बैरल के पार चला जाएगा। इसके साथ रूस ने धमकी देते हुए यूरोप को गैस की आपूर्ति बंद करने की करने की बात भी कही थी।

रूस ने दिया भारत को ऑफर: बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक रूसी तेल कंपनियों ने भारत को बाजार भाव से 25 से 27 फीसदी सस्ते दामों पर कच्चा तेल देने की छूट की पेशकश की है। हालांकि अभी आधिकारिक तौर पर इस पर सरकार की तरफ से कोई बयान नहीं आया है। वहीं अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत कम होने से भारतीय अर्थव्यवस्था को राहत जरूर मिलेगी।

बढ़ती मंहगाई बड़ी चिंता: भारत अपनी जरुरत का 80 फीसदी कच्चा तेल आयात करता है। रूस यूक्रेन युद्ध के बाद कच्चे तेल की कीमत में तेजी से इजाफा हुआ है। एसबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक कच्चे तेल की कीमत 100 डॉलर के पास जाने से मंहगाई में एक फीसदी की वृद्धि हो सकती है।