कोरोना संकट से पहले ही जूझ रहे देश के विज्ञापन मार्केट को अब चीनी कंपनियों की बदली हुई रणनीति के चलते दोहरी मार झेलनी पड़ रही है। भारत में अपने खिलाफ बने माहौल को देखते हुए चीनी कंपनियों ने विज्ञापन से दूरी बनाने का फैसला लिया है और ऐडवर्टाइजिंग के बजट को कम किया है। इसके चलते भारत के ऐड मार्केट को करारा झटका लगता दिख रहा है। पहले ही देश में विज्ञापनदाताओं ने ऐड कम किए हैं और जो दे भी रहे हैं, उनका पहले जैसा रेट नहीं रहा है। ऐसी स्थिति में अब चीनी कंपनियों की बदली हुई रणनीति नए संकट के तौर पर सामने आई है। बता दें कि हाल ही में चीनी कंपनी Vivo ने आईपीएल के 450 करोड़ रुपये के करार समेत कुल 1,000 करोड़ रुपये के विज्ञापनों से पीछे हटने का फैसला लिया है। अब अन्य कंपनियां भी इसी राह पर आगे बढ़ने की तैयारी में हैं।

ऐड मार्केट के जानकारों का कहना है कि चीनी कंपनियों के बिना मार्केट में मुश्किल होगी। चीनी ब्रांड्स का भारत में साल भर में करीब 10,000 करोड़ रुपये का विज्ञापन का बजट रहा है। बीते साल भारत में विज्ञापन का मार्केट 80,000 करोड़ रुपये का था। इस लिहाज से देखें तो चीनी कंपनियों की भारत के ऐड मार्केट में 12 फीसदी हिस्सेदारी है। खासतौर पर टेलिकॉम और ईकॉमर्स मार्केट में चीनी कंपनियों के विज्ञापन की बड़ी हिस्सेदारी रही है। एक ऐड एक्सपर्ट के मुताबिक टेलिकॉम और ईकॉमर्स कंपनियों का भारत में 4,385 करोड़ रुपये का विज्ञापन का बजट है, जिसमें 41 फीसदी हिस्सेदारी चीनी कंपनियों की है।

भारत के विज्ञापन मार्केट में तीसरा स्थान स्मार्टफोन, इलेक्ट्रॉनिक्स और टेक्नोलॉजी का है, जिसमें चीनी कंपनियों का दबदबा रहा है। शाओमी, वीवो, ओप्पो जैसी कंपनियां बड़े पैमाने पर विज्ञापन पर खर्च करती रही हैं। इसके अलावा चीनी ऑटो कंपनी ग्रेट वॉल मोटर्स भी भारत के मार्केट में एंट्री करने पर विचार कर रही थी, जिसने अपना प्लान को फिलहाल स्थगित कर दिया है। चीनी कंपनियों की ओर से ऐडवर्टाइजिंग और प्रमोशन के बजट में कटौती से एक तरफ मार्केट को झटका लग रहा है तो दूसरी तरफ कुछ एक्पर्ट्स का कहना है कि इससे भारत के मार्केट पर ज्यादा असर नहीं होगा। जानकारों का कहना है कि चीनी कंपनियां इस साल ज्यादा ऐक्टिव नहीं दिख रही थीं और इस बार एफएमसीजी, पर्सनल केयर, हाइजीन और एजुकेशन सेक्टर के विज्ञापन ज्यादा देखने को मिलेंगे।

हालांकि मार्केट के जानकारों का एक वर्ग यह भी मानता है कि यह दौर भारतीय कंपनियों के उभार के लिए अहम हो सकता है। चीनी कंपनियों के खिलाफ बने माहौल के दौर में भारतीय कंपनियां यदि खुद को ब्रांड के तौर पर स्थापित करती हैं तो भविष्य में उन्हें बड़ा लाभ हो सकता है।