किसी कारोबारी का दिया हुआ चेक यदि बाउंस हो जाता है या फिर लोन का पेमेंट नहीं हो पाता है तो उसे जेल नहीं जाना होगा। वित्त मंत्रालय ऐसे छोटे आर्थिक मामलों को अपराध के दायरे से बाहर रखने पर विचार कर रहा है। मौजूदा आर्थिक हालात में लिक्विडिटी कमजोर होने और ईज ऑफ डूइंग बिजनेस को बढ़ावा देने के मकसद से सरकार ऐसे प्रस्ताव पर विचार कर रही है। सरकार ने इसे लेकर संबंधित पक्षों से अपनी राय मांगी है। आर्थिक अपराधों को लेकर कुल ऐक्ट्स में बदलाव की तैयारी की जा रही है, जिनके तहत कैद, जुर्माना जैसी सजाएं तय हैं। इन्हीं में से एक है Negotiable Instruments Act जिसके तहत चेक बाउंस को अपराध के दायरे में माना जाता रहा है। लेकिन अब इसे अपराध के दायरे से बाहर करने की तैयारी है।

इसके अलावा SARFAESI Act में भी बदलाव की तैयारी है, जिसके तहत लोन अदा न कर पाने पर आपराधिक मुकदमा चलाया जा सकता है। यही नहीं एलआईसी ऐक्ट, एफआरडीए ऐक्ट, आरबीआई ऐक्ट, एनएचबी ऐक्ट और बैंकिंग रेग्युलेशन ऐक्ट और चिट फंड ऐक्ट में भी बदलाव पर विचार किया जा रहा है। वित्त मंत्रालय की ओर से जारी किए गए एक बयान में कहा गया है कि ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के मकसद से इस तरह का फैसला लिया जा रहा है ताकि अदालती मुकदमों से बचा जा सके और ज्यादातर कारोबारों को थोड़ी रियायत मिले। मंत्रालय के मुताबिक पीएम नरेंद्र मोदी के सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास के विजन के तहत इस प्रस्ताव पर विचार हो रहा है।

संबंधित पक्षों से फीडबैक मिलने के बाद इन मामूली आर्थिक गड़बड़ियों को अपराध के दायरे से बाहर करने को लेकर वित्तीय सेवा विभाग फैसला लेगा। पिछले महीने ही वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि मामूली तकनीकी खामियों या प्रक्रियागत चूक के चलते हुई किसी गड़बड़ी को अपराध के दायरे से बाहर रखने पर विचार चल रहा है। इससे देश में कारोबारी माहौल सुगम होगा।

सभी पक्षों की राय के बाद होगा फैसला: सरकार का कहना है कि वह कोई भी फैसला सिविल सोसायटी, अकादमिक जगत, सरकारी और निजी क्षेत्र के संस्थानों की राय के आधार पर ही लेगी। गौरतलब है कि कोरोना वायरस के संकट के चलते प्रभावित देश की अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए मोदी सरकार ने करीब 21 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज का ऐलान किया है।