भारत में मध्यवर्ग की आर्थिक शक्ति तेजी से बढ़ी है। इसी के बल पर भारत ने 2008 की मंदी का सामना किया था और इस मंदी का भी कोई विशेष प्रभाव देश पर नहीं पड़ा, जबकि उस समय विश्व के अधिकांश देश मंदी के चपेट में आ गए थे। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत का उपभोक्ता बाजार 2008 से प्रति वर्ष 13 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। इस वृद्धि के प्रमुख कारण देश में बढ़ती आबादी, तेज शहरीकरण और उसके कारण मध्यवर्ग का तेजी से बढ़ना है।
विगत कुछ वर्षों से देश का बाजार परिदृश्य तेजी से बदल रहा है। बाजार में आने वाले उत्पादों की विविधता बढ़ी है। इनके रंग, रूप, उपयोगिता तथा गुणवत्ता में बदलाव आया है। विक्रय विधियों, नीतियों तथा व्यूह रचनाओं में परिवर्तन के साथ-साथ ग्राहकों की क्रय आदतों, क्रय निर्णयों, आवश्यकताओं, रुचियों आदि में भी परिवर्तन दिख रहा है। ई-कामर्स के अंतर्गत आनलाइन बिक्री और आनलाइन खरीदारी की बढ़ती प्रवृत्ति ने बाजार परिदृश्य में एक प्रकार से नई क्रांति ला दी है। इस क्रांति का सबसे बड़ा भागीदार देश का मध्यवर्ग है।
देश में विभिन्न उत्पाद लेकर बहुत-सी देशी और बहुराष्ट्रीय कंपनियां आ गई हैं। उन्होंने अपने आक्रामक विज्ञापन अभियान तथा विक्रय संवर्धन योजनाओं के माध्यम से देश के उपभोक्ताओं को आकर्षित करने का प्रयास किया है। साबुन, शैंपू, क्रीम-पाउडर, बिस्कुट, ब्रेड आदि जैसी आम उपयोग की वस्तुओं को लेकर बहुत-सी कंपनियां हमारे बीच उपस्थित हैं। न केवल उपभोक्ता उत्पादों, बल्कि टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं जैसे टीवी, वाशिंग मशीन, फ्रीज, एयर कंडीशनर, पंखे, स्कूटर-मोटरसाइकिल, कार आदि के बाजार में भी तेजी से बदलाव आया है।
उत्पादों के पैकेजिंग में भी क्रांति आ गई है। अब अधिकंश वस्तुएं दर्जन या दस की पैकिंग के साथ-साथ अकेले पैकिंग में भी आने लगी हैं। पाउच पैकिंग ने महंगी वस्तुओं को आम उपभोक्ता की पहुंच के भीतर कर दिया है। पैकिंग तथा पैकेजिंग सामग्री में परंपरागत कागजों, पत्तों, गत्तों, जूट, घास-फूस आदि का स्थान हैंडी पैक ने ले लिया है। वस्तुओं की आकर्षक और सुविधाजनक पैकिंग ने इस दिशा में क्रांति ला दी है। एकल उपयोगी पालिथीन पैकिंग पर प्रतिबंध के बाद पैकेजिंग के क्षेत्र में नित नए प्रयोग हो रहे हैं।
वस्तुओं की आकर्षक पैकिंग और पैकेजिंग के साथ-साथ विक्रय संवर्धन योजनाओं का चलन भी तेजी से बढ़ा है। आज अगर हम बाजार में उपलब्ध उत्पादों पर नजर डालें तो सभी में विक्रय संवर्धन की कोई न कोई योजना अवश्य उपलब्ध दिखाई पड़ेगी। चाहे कलम हो या पेंसिल, साबुन हो शैंपू, पाउडर हो या क्रीम, डिब्बाबंद भोजन हो या ठंडा पेय, साइकिल हो या कार, कपड़े हों या जूते, सभी में किसी न किसी रूप में कोई प्रोत्साहन योजना उपलब्ध है।
बदलते बाजार परिदृश्य ने व्यक्ति की आदतों, रुचियों, आवश्यकताओं तथा भावनाओं में भी परिवर्तन किया है। आज उनमें उपभोक्तावाद हावी है। कपड़े, जूते, शृंगार सामग्री व्यक्ति की आवश्यकता बन गए हैं। उसके क्रय निर्णय में वस्तु की गुणवता तथा टिकाऊपन के स्थान पर वस्तु के रंग-रूप और आकार को अधिक प्राथमिकता मिलने लगी है। व्यक्ति में स्वदेशी उत्पाद के क्रय की भावना का ज्यादा महत्त्व नहीं रहा है।
जो वस्तु आकर्षक विज्ञापन तथा तड़क-भड़क वाले रंग-रूप में उपलब्ध है, वह उसे ही खरीदता है। विदेशी वस्तुओं का आकर्षण अब भी विद्यमान है और ये सर्वसुलभ हैं। भारतीय उपभोक्ता बाजार के वर्तमान परिदृश्य में देश के मध्यवर्ग की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। शहरों में रहने वाले मध्यवर्ग के लोग अपने उद्यम-कारोबार, अपनी सेवाओं और पेशेवर योग्यताओं से न केवल अपनी आय बढ़ा रहे, बल्कि अपनी क्रय शक्ति से उपभोक्ता बाजार को मजबूती भी दे रहे हैं।
भारत में मध्यवर्ग की आर्थिक शक्ति तेजी से बढ़ी है। इसी के बल पर भारत ने 2008 की मंदी का सामना किया था और इस मंदी का भी कोई विशेष प्रभाव देश पर नहीं पड़ा, जबकि उस समय विश्व के अधिकांश देश मंदी के चपेट में आ गए थे। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत का उपभोक्ता बाजार 2008 से प्रति वर्ष 13 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। इस वृद्धि के प्रमुख कारण देश में बढ़ती आबादी, तेज शहरीकरण और उसके कारण मध्यवर्ग का तेजी से बढ़ना है। उपभोक्ता बाजार में उत्पादों के साथ-साथ सेवाओं की मांग भी तेजी से बढ़ रही है।
विश्व आर्थिक मंच ने भारत की बाजार अर्थव्यवस्था के संदर्भ में अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 2030 तक भारत का बाजार अमेरिका और चीन के बाद तीसरे नंबर पर होगी। इसका आकार इस समय लगभग 105 लाख करोड़ रुपए का है, जो तब लगभग 420 लाख करोड़ रुपए का हो जाएगा। अभी मध्यवर्ग की संख्या लगभग 5 करोड़ है, जो 2030 तक 14 करोड़ तक हो जाने का अनुमान है।
ये लोग खाने-पीने, कपड़े, इलेक्ट्रानिक वस्तुओं, परिवहन और घरेलू खर्च पर दो से ढाई गुना ज्यादा खर्च करेंगे। स्वास्थ्य, शिक्षा और मनोरंजन जैसी सेवाओं पर इनका खर्च तीन से चार गुना बढ़ जाएगा। कुल खर्च में 75 प्रतिशत हिस्सेदारी मध्यवर्ग की होगी, जो वर्ष 2030 में बढ़कर 80 प्रतिशत हो जाएगी। आज के दौर में ई-कामर्स ने देश में खुदरा कारोबार का चेहरा ही बदल दिया है।
देश में इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या साठ करोड़ से भी अधिक होने के कारण ई-कामर्स की रफ्तार तेजी से बढ़ी है। यह दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। 2008 में ई-कामर्स बाजार 31 लाख करोड़ रुपए का था, जो 2022 में 110 लाख करोड़ रुपए का हो गया। माना जा रहा है कि 2028 तक यह तीन गुना बढ़कर 335 लाख करोड़ रुपए का हो जाएगा।
देश की बढ़ती जनसंख्या, बढ़ते मध्यवर्ग और उपभोक्ता बाजार के बीच सीधा संबंध है। इस समय भारत की जनसंख्या दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ रही है। यह वर्तमान में लगभग 140 करोड़ है। यह विशालकाय आबादी सबसे बड़े वैश्विक उपभोक्ता बाजार का आधार भी है। भारत में जैसे-जैसे उद्योगीकरण, कारोबारी विकास और शहरीकरण बढ़ रहा है वैसे-वैसे देश का उपभोक्ता बाजार भी तेजी से बढ़ रहा है।
वस्तु के उपभोग से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों के प्रति अधिक जगरूकता आज आम उपभोक्ता में नजर नहीं आ रही है। खाने-पीने के उत्पादों में आज की पीढ़ी में जंकफूड पहली पसंद बनता जा रहा है। खाने-पीने की चीजों में कृत्रिम रंगों और सुंगधों का उपयोग प्राकृतिक उत्पादों के नाम पर सिंथेटिक वस्तुओं के चलन जैसी बातें उसे अब अधिक प्रभावित नहीं करतीं। शराब, सिगरेट, तंबाकू आदि के आकर्षक और परोक्ष विज्ञापनों से इनके सेवन में भारी वृद्धि हुई है। इनके पैकेट पर अंकित वैधानिक चेतावनियों का इनका उपयोग करने वालों पर कोई प्रभाव नही पड़ता।
बदलते बाजार परिदृश्य के जहां कुछ सकारात्मक पहलू हैं, वहीं बहुत से नकारात्मक पहलू भी उभर कर आ रहे हैं। इससे व्यक्ति की भौतिकवादी प्रवृत्ति में वृद्धि हुई है। उसमें आवश्यकता से अधिक क्रय की आदत बढ़ी है। उपयोग की गई वस्तु की पैकेजिंग सामग्री और उत्पाद की बर्बादी ने कचरे की समस्या उत्पन्न कर दी है।
इससे पर्यावरण प्रदूषण की समस्या दिन-प्रतिदिन विकराल होती जा रही है। बाजार में उपलब्ध ऋण तथा ‘जीरो परसेंट फाइनेंस’ योजनाओं ने उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं को तेजी से बढ़ाया है। अब उपभोक्ता के लिए अपनी पसंद की कार, स्कूटर, टीवी, फ्रीज आदि के लिए पैसे जोड़ने की जरूरत नहीं है। व्यक्ति अपनी क्षमता से बाहर की बहुत-सी वस्तुओं का क्रय करने लगा है, इससे परंपरागत बचत की आदत अब निरंतर कम होती जा रही है।
बढ़ते उपभोक्ता बाजार में लोगों को वस्तु और उपलब्ध सेवाओं के संबंध में किसी भी प्रकार के छल-कपट से बचाने और उनके हितों के संरक्षण की चुनौतियां भी बढ़ रही हैं। इन समस्याओं के संतोषजनक समाधान के लिए नए नियामक बना कर एक प्रभावी तंत्र विकसित करना और लोगों को इस दिशा में जागरूक करना भी जरूरी है।