जयंतीलाल भंडारी
नई विदेश व्यापार नीति के तहत निर्धारित किए गए निर्यात और विदेश व्यापार के ऊंचे लक्ष्यों के समक्ष दिखाई दे रही विभिन्न चुनौतियों के समाधान में सरकार के साथ-साथ देश के उद्योग-कारोबार जगत की तरफ से भी सक्रिय और सार्थक भूमिका निभाई जाएगी। इससे निर्यात बढ़ेंगे, विदेश व्यापार घाटा कम होगा और रोजगार में वृद्धि भी होगी।
इस समय देश और दुनिया में विदेश व्यापार से संबंधित विशेषज्ञों और उद्यमियों द्वारा भारत के विदेश व्यापार से संबंधित दो परिदृश्यों पर विचार मंथन किया जा रहा है। एक, 13 अप्रैल को वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक वित्तवर्ष 2022-23 में भारत से उत्पादों का निर्यात 447 अरब डालर और सेवा निर्यात 323 अरब डालर यानी कुल 770 अरब डालर का रहा।
हालांकि यह देश में निर्यात का सर्वोच्च स्तर है, लेकिन 2022-23 में भारत का कुल व्यापार घाटा पिछले वर्ष के 83 अरब डालर से बढ़कर 122 अरब डालर हो गया है। दो, 1 अप्रैल, 2023 से लागू की गई नई विदेश व्यापार नीति के तहत 2030 तक 2000 अरब डालर का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य रखा गया है। उत्पाद निर्यात का लक्ष्य एक हजार अरब डालर और सेवा निर्यात का लक्ष्य भी एक हजार अरब डालर रखा गया है।
इस समय जब वैश्विक आर्थिक और व्यापार चुनौतियों के बीच कुल वैश्विक निर्यात में भारत का योगदान करीब 1.8 फीसद और वैश्विक व्यापार में भारत का हिस्सा दो फीसद से भी कम है, तब इसे 2030 तक बढ़ाकर करीब तीन गुना करने का लक्ष्य सचमुच चुनौतीपूर्ण है। निस्संदेह नई विदेश व्यापार नीति के तहत निर्धारित किए गए निर्यात और विदेश व्यापार के ऊंचे और महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य के सामने कई चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं।
देश में माल परिवहन की लागत बहुत ऊंची- 13-14 फीसद है। विश्व बैंक के मुताबिक भारत ढुलाई खर्च के मामले में दुनिया में बहुत पीछे- चौवालीसवें स्थान पर है। शोध और नवाचार के मामले में भारत दुनिया में चालीसवें क्रम पर है। देश की श्रमशक्ति नई डिजिटल कौशल योग्यता से बहुत दूर है। ‘प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेटिव’ (पीएलआइ) के संतोषप्रद परिणाम अभी मिलने शुरू नहीं हुए हैं। चीन से व्यापार असंतुलन कम करने की बड़ी चुनौती भी सामने है। वर्ष 2022-23 में चीन के साथ व्यापार घाटा बढ़कर 83.12 अरब डालर रहा, जो 2021-22 में 72.91 अरब डालर था। आयात के क्षेत्र में भारत की चीन पर निर्भरता लगातार बनी हुई है।
मगर विदेश व्यापार के ऊंचे लक्ष्य के सामने दिखाई दे रही इन विभिन्न चुनौतियों के बीच देश के निर्यात और विदेश व्यापार बढ़ने की कई अनुकूलताएं उभर रही हैं। अब 1 अप्रैल, 2023 से लागू हुई देश की नई विदेश व्यापार नीति (एफटीपी) से जहां निर्यात तेजी से बढ़ेगा, वहीं विदेश व्यापार भी छलांग लगाएगा।
नई विदेश व्यापार नीति के तहत सरकार ने निर्यात के दायरे को बढ़ाने के लिए जिला स्तर पर ‘एक्सपोर्ट हब’ की स्थापना करने की घोषणा की है। निर्यात को प्रोत्साहन के लिए अलग से ई-कामर्स जोन की स्थापना का भी एलान किया गया है। कूरियर सेवा के माध्यम से होने वाले निर्यात की सीमा पांच लाख रुपए से बढ़ा कर दस लाख रुपए प्रति खेप कर दिया गया है। ऐसे में ई-कामर्स निर्यात 2030 तक 200 से लेकर 300 अरब डालर तक पहुंच सकता है।
गौरतलब है कि रिजर्व बैंक ने जुलाई 2022 में डालर पर निर्भरता कम करने और निर्यात बढ़ाने के लिए विदेशी व्यापार का लेन-देन रुपए में करने का प्रस्ताव किया था। इसे जोरदार वैश्विक समर्थन मिला है। 15 अप्रैल तक रूस, मारीशस और श्रीलंका द्वारा भारतीय रुपए में विदेश व्यापार शुरू करने के बाद अब तक अठारह देशों के बैंकों ने रुपए में व्यापार करने के लिए विशेष वोस्ट्रो खाते खोले हैं।
दुनिया के पैंतीस से अधिक देशों ने रुपए में व्यापार करने में रुचि दिखाई है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 1999 में कुल वैश्विक व्यापार सौदों के भुगतान में अमेरिकी डालर की हिस्सेदारी 70 फीसद से अधिक थी, वह 2022 में घटकर 59 फीसद रह गई है। डालर के बाद यूरोपीय संघ की यूरो, ब्रिटेन की पाउंड, जापान की येन और चीन की मुद्रा युआन का उपयोग हुआ है। वैश्विक व्यापार में अब भारत के रुपए के नए विकल्प बनने की संभावना इसलिए बढ़ी है, क्योंकि भारत में मजबूत लोकतांत्रिक व्यवस्था है, आर्थिक नीति में प्रगतिशीलता है। दुनिया में भारत की विश्वसनीयता लगातार बढ़ रही है।
अब देश के विदेश व्यापार को तेजी से बढ़ाने और देश को निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था बनाने के लिए हमें कई बातों पर ध्यान देना होगा। भारत द्वारा पिछले वर्ष 2022 में यूएई और आस्ट्रेलिया के साथ मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) लागू किए जा चुके हैं। इन दोनों देशों को भारत से निर्यात बढ़े हैं। अब यूरोपीय संघ, ब्रिटेन, कनाडा, खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) के छह देशों, दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका और इजराइल के साथ एफटीए के लिए प्रगतिपूर्ण वार्ताएं तेजी से पूरी करनी होंगी।
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा डिजिटल रुपए की जो प्रायोगिक शुरुआत हुई है, उसे अब शीघ्रता से विस्तृत करना होगा। विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) की भूमिका को निर्यात बढ़ाने में अहम बनानी होगी। शोध और नवाचार में आगे बढ़ते हुए दुनिया में सबसे प्रतियोगी, किफायती, टिकाऊ, सुरक्षित और बड़े स्तर पर लागू होने वाले आइटी समाधान प्रस्तुत करने होंगे।
भारत में इंटरनेट आफ थिंग्स, कृत्रिम बुद्धिमता और डेटा एनालिटिक्स जैसे क्षेत्रों में शोध और विकास तथा जबर्दस्त स्टार्टअप माहौल के चलते ख्याति प्राप्त वैश्विक फार्मेसी कंपनियां, वैश्विक वित्त और वाणिज्य कंपनियों को तेजी से आकर्षित करना होगा। सुनिश्चित करना होगा कि विएयतनाम की तरह एक कमतर और स्थिर शुल्क व्यवस्था अपनाई जाए, जिससे भारतीय उत्पादक वैश्विक आपूर्ति शृंखला का हिस्सा बन सकें।
यह बात भी महत्त्वपूर्ण है कि नई ‘लाजिस्टिक नीति’ 2022 और ‘गति शक्ति योजना’ के उपयुक्त क्रियान्वयन से घरेलू और निर्यात दोनों बाजारों में भारतीय सामान की प्रतिस्पर्धात्मकता में सुधार लाना होगा। अब नई नीति के तहत माल भंडारण और ढुलाई से जुड़े सभी मसलों के लिए शीघ्र एकल निस्तारण व्यवस्था बनानी होगा। नई लाजिस्टिक नीति के लक्ष्य के मुताबिक अगले दस सालों में संभार क्षेत्र की लागत को दस प्रतिशत तक लाना होगा।
चूंकि वर्तमान में माल भंडारण और ढुलाई का ज्यादातर काम सड़कों के जरिए होता है, इसलिए अब नई नीति के तहत रेल परिवहन के साथ-साथ जहाजरानी और हवाई परिवहन पर जोर दिया जाना होगा। लगभग पचास प्रतिशत कार्गो को रेलवे के जरिए भेजना होगा। इससे सड़कों पर यातायात को कम किया जा सकेगा, कच्चे तेल के आयात में कमी आएगी और माल ढुलाई के खर्च में कमी की जा सकेगी।
ऐसे में लागत के कम होने से जहां सामान की कीमतें कम होंगी, वहीं भारत नया निर्यात प्रतिस्पर्धी देश बनकर आगे बढ़ेगा। कृषि उत्पाद की कीमतों में कमी आएगी और खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र लाभान्वित होगा, कृषि निर्यात बढ़ेगा। इतना ही नहीं, भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) में भारी बढ़ोतरी हो सकेगी। इस वर्ष जी-20 की अध्यक्षता करते हुए ‘मेक इन इंडिया, मेक फार ग्लोबल’ और ‘मैन्युफैक्चरिंग हब’ की डगर पर आगे बढ़ कर निर्यात को ऊंचाई पर पहुंचाना होगा।
उम्मीद है कि नई विदेश व्यापार नीति के तहत निर्धारित किए गए निर्यात और विदेश व्यापार के ऊंचे लक्ष्यों के समक्ष दिखाई दे रही विभिन्न चुनौतियों के समाधान में सरकार के साथ-साथ देश के उद्योग-कारोबार जगत की तरफ से भी सक्रिय और सार्थक भूमिका निभाई जाएगी। इससे निर्यात बढ़ेंगे, विदेश व्यापार घाटा कम होगा और रोजगार वृद्धि भी होगी। ऐसे में हमें उम्मीद करनी चाहिए कि नई विदेश व्यापार नीति को रणनीतिक प्रयासों से भारत 2030 तक वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात के लिए निर्धारित किए गए दो हजार अरब डालर के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य को अपनी मुट्ठियों में लेते हुए दिखाई दे सकेगा।