आपके पास कोई लग्जरी कार हो या फिर साधारण बजट वाली कार, आपकी कार में चाहते तमाम सेफ्टी फीचर्स ही क्यों न हो। लेकिन कार के टायर से मामूली सी लापरवाही भी आपको भारी नुकसान पहुंचा सकती है। समय समय पर कार के टायर का रोटेशन बेहद जरूरी होता है। तो आइये जानते हैं कि कार के टायर के साथ ​किस तरह की सावधानी बरतनी चाहिएं।

टायर का प्रेसर: कार के टायर का प्रेसर पर नजर रखना बेहद जरूरी होता है। सामान्य तौर पर हर 15 दिन में एक बार टायर के प्रेसर की जांच करें। टायर में कभी भी ज्यादा या कम हवा न रखें। कार के मैनुअल में दिए गए आंकड़े के अनुसार ही टायर में हवा भरवाएं।

टायर रोटेशन: कार के अगले हिस्से के पहियों पर सबसे ज्यादा भार होता है क्योंकि इंजन का पूरा हिस्सा यहीं लगा होता है। इसके चलते पिछले पहियों के मुकाबले आगे का पहिया ज्यादा घिसता है। क्रॉस रोटेशन सबसे सही माना जाता है। यानी कि आगे के दोनों पहियों को पिछे पहिए से क्रॉस पोजिशन में रिप्लेस करें। सामान्य तौर पर हर 2,000 किलोमीटर के बाद टायर का रोटेशन करना सही होता है।

टायर का ट्रेड: आप महज एक सिक्के से भी टायर के ट्रेड की जांच कर सकते हैं। टायर पर जो लाइन्स बनी होती हैं उनके बीच के गैप को ट्रेड कहा जाता है। आप टायर के इस इस गैप में एक सिक्का डाले यदि सिक्का आधा या उससे ज्यादा अंदर जाता है तो टायर ठीक है। यदि सिक्के का एक तिहाई से ज्यादा हिस्सा बाहर रहता है तो टायर बदलने की जरूरत है।

पुराने टायर: टायर की स्थिति कितनी सही है ये टायर के गुणवत्ता और उसके मेंटेनेंस पर निर्भर करता है। लेकिन सामान्य तौर पर 5 साल से ज्यादा पुराने टायर का इस्तेमाल नहीं करना चाहिएं। सामान्य तौर पर टायर की लाइफ 40,000 किलोमीटर तक की मानी जाती है।

बैलेंस और एलाइनमेंट: कार के टायर पर उसके एलाइनमेंट और बैलेंस का बहुत असर पड़ता है। सामान्य तौर पर 4,000 से 5,000 किलोमीटर पर आपको अपने कार के व्हील्स का एलाइनमेंट और बैलेंस चेक करवाते रहना चाहिएं। इसके अलावा यदि आपने हाल में ही किसी ऐसी रोड पर ड्राइव किया है जहां गड्ढे ज्यादा थें तो आपको तत्काल एलाइनमेंट चेक करवाना जरूरी है।

लीकेज: यदि आपके कार के टायर से हवा बार बार निकल रही है तो आपको इसे तत्काल बदलना चाहिएं। क्योंकि ऐसी यदि ऐसी स्थिति में आप ड्राइव करते हैं तो टायर के ब्लॉस्ट होने का डर रहता है जो कि दुर्घटना का कारण बन सकता है।