भारतीय बाजार में कारों की बिक्री लगातार घट रही है। एक आंकड़ें के के अनुसार देश में हर हफ्ते तकरीबन 2 शोरूम बंद हो रहे हैं और हजारों की संख्या में लोगों को नौकरियों से हाथ धोना पड़ रहा है। ताजा हाल के मुताबिक रिटेल ऑटोमोबाइल सेक्टर में 2,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है और तकरीबन 300 शोरूम खराब बिक्री के चलते बंद हो चुके हैं। इन शोरूमों के बंद होने के नाते 3 हजार से ज्यादा लोग अपनी नौकरियां खो चूके हैं।
रिटेल ऑटोमोबाइल सेक्टर में लगातार हो रहे इस नुकसान को लेकर विशेषज्ञों का मानना है कि डीलरशिप्स को जो कर्ज दिए गए हैं वो एनपीए यानी कि नॉन परफॉर्मिंग एसेस्ट्स में तब्दील हो रहे हैं। इसके अलावा भारतीय बाजार में डीलरशिप बेहद कम मार्जिन पर व्यवसाय करने को मजबूर है। यहां पर डीलर 2.5% से 5% के बीच मार्जिन पर काम कर रहा है, वहीं वैश्विक स्तर पर लोग 8% से 12% के मार्जिन पर काम कर रहे हैं।
आखिर कैसे हो रहा है डीलर्स को नुकसान: डीलर्स को होने वाले इस नुकसान के पीछे कई कारण जिम्मेदार हैं। जैसे कि बड़े शहरों में शोरूम या जमीन का किराया, कर्मचारियों की तनख्वाह लागत, बीमा और वित्त कंपनियों से गिरता मार्जिन और GST के चलते डीलर्स के मुनाफे में भारी कमी आई है। इसके अलावा वाहन निर्माता कंपनियां लगातार अपने डीलरशिप नेटवर्क के विस्तार में लगे हुए है बावजूद इसके वो अपने सेल्स टार्गेट को पूरा नहीं कर पा रहे हैं।
इकोनॉमिक टाइम्स को बताते हुए ऑटोमोबाइल डीलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष आशीष काले ने कहा कि, धीमी गति से बाजार में वित्तीय संकट या कुप्रबंधन और देश भर में लगातार बढ़ रहे डीलरशिप नेटवर्क के चलते ऐसी स्थिति बनी है। उन्होनें कहा कि, जिस रफ्तार से शोरूम बंद हो रहे हैं ऐसा पहले कभी नहीं देखा गया था। गुड्स एंड सर्विस टैक्स का वर्किंग कैपिटल पर पूरा प्रभाव है। इसके अलावा लगातार उच्च निवेश लागत के चलते ये संकट और भी बढ़ा है।
जैसी थी उम्मीद वैसी ग्रोथ नहीं: जुलाई 2017 में जीएसटी लागू होने से पहले, डीलरों को कारों पर बिक्री कर और वैट का भुगतान करने के लिए कुछ महीनों का समय मिला था। जीएसटी शासन के तहत, उन्हें कर अपफ्रंट का भुगतान करना होगा और इससे उनकी वर्किंग कैपिटल बुरी तरह से प्रभावित हुई है।
यदि आंकड़ों पर गौर करें तो वित्तीय वर्ष 18 में 8% और वित्तीय वर्ष 19 में 2.5% बढ़ने के बाद भी बीते अप्रैल महीने में यात्री वाहनों की बिक्री में 10% से ज्यादा की गिरावट दर्ज की गई है। देश के बड़े और मेट्रो शहरों में हर दो डीलर्स में से एक को इस बीच भारी नुकसान का सामना करना पड़ा है। यानी कि ये औसत 50 प्रतिशत का है। वहीं जो डीलरशिप इस नुकसान को झेल नहीं पा रहे हैं उनके पास शोरूम बंद करने के अलावा अन्य कोई दूसरा विकल्प नहीं है।
वर्ष 2017-2018 में, निसान मोटर कंपनी और हुंडई मोटर इंडिया की क्रमशः 38 और 23 डीलरशिप पर ताला लगा है। वहीं मारुति सुजुकी, टाटा मोटर्स, महिंद्रा एंड महिंद्रा और होंडा कार्स इंडिया के लगभग 9-12 डीलरशिप बंद हुए हैं। महाराष्ट्र और बिहार में क्रमशः 56 और 26 डीलरशिप बंद हुए हैं, जबकि लगभग 19 डीलरों ने केरल और राजस्थान में संचालन बंद कर दिया है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ: इस मामले में ऑटोमोटिव सेक्टर के जानकारों का मानना है कि जिस तरह के ग्रोथ ही उम्मीद थी वैसी वास्तविकता में देखने को नहीं मिल रही है। डीलरशिप के संघर्ष का सबसे बड़ा कारण वाहन निर्माताओं द्वारा की गई भविष्यवाणी का फेल होना है। जहां चार पहिया और दोपहिया बाजार के लिए दोहरे अंकों की वृद्धि की उम्मीद की गई थी वहीं यात्री वाहनों की बिक्री वित्तीय वर्ष 13 और वित्त वर्ष 18 के बीच महज 4% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ी और दोपहिया वाहनों के लिए ये वृद्धि महज 5% थी।
वास्तव में, ऑटोमोटिव कंपनियां डिमांड के आंकड़ें को पूरी तरह से समझने में विफल रही हैं। ये कंपनियां अपने सेल्स टार्गेट को पूरा करने के बजाय नए डीलरशिप को जोड़ने में उलझ कर रह गईं। जिसके कारण देश भर में नए डीलरशिप शुरु हुएं लेकिन वाहनों की बिक्री में लगातार गिरावट होती गई जिसके नतीजा ये हुआ कि शोरूम लगातार बंद होने लगें।
सबसे बड़ी समस्या बड़े शहरों में देखने को मिली हैं। जहां मार्केट में 5 से 7 प्रतिशत ग्रोथ रेट थी वहीं पर 15 से 20 प्रतिशत की दर से नए डीलरशिप की शुरुआत हुई है। इसके अलावा वाहनों की मांग भी लगातार सुस्त पड़ी थी। जिसके चलते पहले से ही मौजूद डीलरशिप के लिए भी मुश्किलें बढ़ गईं।
विशेषज्ञों के अनुसार, लगभग 15,000 अधिकृत डीलर प्रिंसिपल पूरे देश में 25,000 से अधिक सेल्स प्वाइंट को मैनेज करते हैं। जिनमें से केवल 30% प्वाइंट ही ऐसे हैं जो कि मुनाफे में हैं। वहीं अन्य 30 प्रतिशत डीलर्स 1% से 2% के मार्जिन से व्यवसाय करने को मजबूर हैं। यदि हालात ऐसे ही बने रहें तो देश की ऑटोमोटिव इंडस्ट्री की हालत और भी खस्ता हो जाएगी।