बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बुधवार (26 जुलाई) को पद से इस्तीफा दे देकर राजद और कांग्रेस के साथ अपनी पार्टी जदयू का “महागठबंधन” एक झटके में तोड़ लिया। पुराना रिश्ता तोड़ने के कुछ घंटे बाद ही नीतीश ने पुराने साझेदार भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से नाता जोड़ लिया। नीतीश कुमार गुरुवार (27 जुलाई) को दोबारा मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले हैं। नीतीश के राजद से दूर जाने और बीजेपी के करीब आने की अटकलें लम्बी समय से लगाई जा रही थीं लेकिन इसके पीछे के कारण अभी तक अस्पष्ट ही हैं। माना जा रहा है कि नए पार्टनर (राजद) के संग सरकार की गाड़ी चलाने में लगातार हो रही खींचतान से आजिज आकर ही  नीतीश द्वारा ने पुराने पार्टनर के पास वापस जाने का फैसला किया।

साल 2015 में जब महागठबंधन बना तभी से लालू और नीतीश के मिलन को बेमेल बताया जा रहा था। जब महागठबंधन चुनाव जीता तो नीतीश के साथ लालू यादव के दोनों बेटों तेज प्रताप यादव और तेजस्वी यादव ने भी शपथ ली। तेजस्वी को उप-मुख्यमंत्री बनाया गया था। पहली बार चुनाव लड़े और जीते लालू के बेटों के मंत्री बनते ही ये साफ हो गया कि महागठबंधन सरकार में सत्ता को लेकर रस्साकशी होने वाली है। और हुआ भी यही। जानकार मान रहे हैं कि तेजस्वी पर मुकदमा केवल बहाना था। महागठबंधन टूटने के पीछे दूसरे दो बड़े कारण थे।

बिहार से जुड़ी राजनीतिक घटनाक्रम का लाइव अपटेड

लालू यादव दबंग छवि वाले राजनेता हैं और जमीन पर भी उनका वही रवैया रहता है। महागठबंधन बनने के समय जब पत्रकारों ने उनसे पूछा था कि ये कैसे हुआ तो लालू ने अपने ठेठ लहजे में कह दिया था, “नीतिश छोटा भाई है….” लालू यादव बिहार बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुशील मोदी के बारे में भी कहते रहे हैं, “ऊ हमरा सेक्रेटरी था….।” लालू के कहने से लगता है कि जैसे सुशील मोदी उनके निजी सचिव रहे हों जबकि सच ये है कि छात्र संघ में जब लालू यादव अध्यक्ष बने थे तो सुशील मोदी सचिव पद पर चुनाव जीते थे। लालू यादव के समर्थकों को भले ही उनका ये लहजा चुटीला लगता हो दूसरे को ये “अपमानकजनक” लगता है। बिहार के राजनीतिक गलियारों की खबर रखने वालों की मानें तो लालू यादव महागठबंधन के करीब दो सालों में “बिग ब्रदर” वाली मुद्रा ही बनाए रहे।

जदयू के नेताओं ने मीडिया को बताया था कि नीतीश इस बात से बहुत नाखुश रहते थे कि राजद कोटे को मंत्री उन्हें सीएम नहीं समझते। वो अपने कामकाज के आदेश लालू यादव से लेते हैं। आपको याद होगा कि जब कुख्यात अपराधी मोहम्मद शहाबुद्दीन जमानत पर जेल से रिहा हुआ तो उसने नीतीश कुमार को अपना नेता मानने से इनकार करते हुए लालू यादव को नेता बताया था। पूर्व सांसद शहाबुद्दीन को कुछ समय बाद सुप्रीम कोर्ट ने दोबारा जेल भेज दिया लेकिन वो ये संदेश देने में कामयाब रहा कि बिहार में एक आधिकारिक सीएम है तो एक अनाधिकारिक।

महागठबंधन टूटने के पीछे दूसरी बड़ी वजह है लालू यादव और उनके पुराने राजनीतिक मित्रों की जदयू को तोड़ने की कोशिशें भी मानी जा रही हैं। जब से लालू और नीतीश के बीच खटास की खबरें मीडिया में आना शुरू हुईं हैं उससे पहले से जोड़तोड़ की कोशिशें जारी थीं। राजनीतिक जानकारों की मानें तो नीतीश कुमार राजद-कांग्रेस के साथ उसी तरह चुपचाप सरकार चलाना चाहते थे जैसे उन्होंने बीजेपी के साथ चलाई थी। यानी नीतीश सभी दलों के निर्विवाद नेता के रूप में पूरे अधिकार के साथ पांच साल काम करने के मूड में थे। लेकिन कुछ सूत्रों के अनुसार लालू यादव और उनके कुछ पुराने सहयोगी लगातार इस कोशिश में थे कि जदयू में टूट हो जाए और राजद कांग्रेस और बागी जदयू विधायकों के साथ सरकार बना ले। तेजस्वी यादव पर सीबीआई केस होने के बाद इस्तीफे को लेकर दबाव बढ़ा तो मीडिया में खबर आने लगी कि जदयू टूट सकती है। जाहिर है ऐसी खबरें राजद के नेता ही पत्रकारों के बीच पहुंचा रहे थे। लालू और नीतीश के पुराने साथी शिवानन्द तिवारी और रघुवंश प्रसाद सिंह जैसे नेताओं पर जदयू विधायकों से संपर्क करने की कोशिश के आरोप लगे। खबरों में ये दावा भी किया गया लालू यादव के दूतों ने नरेंद्र मोदी सरकार के दो मंत्रियों से भी नीतीश सरकार को गिरवाने में मदद के लिए संपर्क किया था।

मीडिया में खबर प्लांट की गई कि जदयू के सभी यादव और मुस्लिम विधायक नीतीश कुमार को छोड़ देंगे। मुस्लिम, यादव और अन्य असंतुष्टों की संयुक्त संख्या 20-22 बताई गई। बिहार में बहुमत के लिए 122 विधायकों की जरूरत होती है। 243 सीटों वाली बिहार विधान सभा में राजद के 80, जदयू के 71 और कांग्रेस के 27 विधायक हैं। बीजेपी के पास 53 और उसके साझेदारों लोक जनशक्ति पार्टी और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के पास दो-दो और हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा के पास एक विधायक हैं। यानी एनडीए के पास कुल 58 विधायक हैं। जाहिर है राजद के 80 और कांग्रेस के 27 विधायकों के बाद लालू यादव को कम से कम 15 विधायक चाहिए ताकि वो सरकार बनवा सकें। जदयू के एक नेता कहते हैं, “ये सच है कि कुछ विधायक नीतीश से अंसतुष्ट हैं लेकिन उनकी संख्या चार-पांच से ज्यादा नहीं हैं।” मीडिया में ये खबरें भी आईं कि जदयू के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव भी नीतीश के खिलाफ बगावत कर सकते हैं क्योंकि उन्हें हटाकर ही नीतीश पार्टी अध्यक्ष बने थे। जाहिर है असंतुष्ट होने और बागी होने के बीच लम्बा रास्ता तय करना पड़ता है। और जिस तरह नीतीश ने राज्यपाल के सामने दावा पेश किया है उससे जाहिर है कि फिलहाल उनकी पार्टी पर टूट का कोई खतरा नहीं है। लेकिन ये लालू यादव के साथ रहते ये खतरा हमेशा बना रहता।