निवेश करने के बजाय बैंक में पैसा जमा कराने वालों के लिए आने वाला समय ज्यादा आर्थिक लाभ वाला साबित हो सकता है। देश के बैंकों के लिए आर्थिक हालात कुछ ऐसे बन गए हैं कि अब बैंकिंग सेक्टर नए डिपोजिट को हासिल करने के लिए ब्याज दर बढ़ा सकता है। ‘इकोनोमिक टाइम्स’ के अनुसार, डिपोजिट और क्रेडिट (कर्ज) का अनुपात असंतुलित हो गया है। इस रिपोर्ट में RBI के डेटा के हवाले से बताया गया है कि 9 नवंबर तक यह अनुपात 122% तक पहुंच चुका था। पिछले साल इसी अवधि में यह रेशियो 90% था। इसका मतलब यह हुआ कि कर्ज की मांग में वृद्धि हुई है। इस डेटा के अनुसार, बैंक 100 रुपये की डिपोजिट पर 122 रुपये का लोन बांट रहा है। ऐसे में लोन की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए बैंकों को ज्यादा से ज्यादा डिपोजिट की जरूरत है। डिपोजिट या पैसों की कमी के चलते निवेश और डिपोजिट के अनुपात में भी पिछले साल के मुकाबले बड़ी गिरावट दर्ज की गई है। मौजूदा समय में यह अनुपात 31% तक पहुंच गया है, जबकि एक साल पहले यह 100% था। चूंकि क्रेडिट का आधार डिपोजिट है, ऐसे में इसे आकर्षित करने के लिए बैंक जमा राशि पर ब्याज दर बढ़ा सकते हैं।
क्रेडिट और डिपोजिट में अंतर: RBI डेटा में क्रेडिट और डिपोजिट में वृद्धि में अंतर की बात भी सामने आई है। इसके अनुसार, बैंकों द्वारा कर्ज देने के मामले में (साल-दर-साल बेसिस (ईयर ऑन ईयर बेसिस)) 15% की दर से वृद्धि हो रही है। दूसरी तरफ, डिपोजिट ग्रोथ रेट 9% है। लिहाजा दोनों में 6% तक का गैप है। मौजूदा ट्रेंड को देखते हुए यह माना जा रहा है कि लोन देने के लिए बैंकों को दूसरे स्रोतों से पैसा हासिल करना पड़ रहा है। इससे बाजार में ब्याज दर में लगातार वृद्धि हो रही है। यही वजह है कि होलसेल डिपोजिट रेट में 75 से 100 बेसिस प्वाइंट्स तक की वृद्धि हो चुकी है। मालूम हो कि कैपिटल सर्कुलेशन अर्थव्यवस्था का आधार है। इसमें असंतुलन होने की स्थिति में पूरा चक्र गड़बड़ा जाता है। बता दें कि देश के कई प्रमुख बैंक जोखिम वाले कर्ज (NPA) के संकट से जूझ रहा है। लाखों करोड़ रुपये का बैड लोन है। इसे देखते हुए आरबीआई ने कर्ज देने के प्रावधानों को बेहद सख्त कर दिया है।

