सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में फंसे कर्ज की स्थिति को अभी भी चुनौतीपूर्ण बताते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने शुक्रवार (16 सितंबर) को कहा कि बैंकों को कर्ज में फंसी संपत्तियों की बिक्री के लिए ‘कड़े प्रयास’ करने की जरूरत है। विशेषकर ऐसी परिसंपत्तियों के मामले में जहां खरीदारों को ढूंढना अथवा उनके वैकल्पिक प्रवर्तकों को तलाशना मुश्किल हो रहा है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक प्रमुखों के साथ बैठक के बाद जेटली ने कहा, ‘बैंकों ने उनके समक्ष खड़ी चुनौतियों के बारे में बताया। बैंकों ने बताया कि उन्हें संपत्तियों के खरीदार अथवा उनके वैकल्पिक प्रवर्तक ढूंढने में चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि, वह इसके लिए प्रयास कर रहे हैं।’ जेटली ने उम्मीद जताई कि जैसे ही बैंकों की कर्ज में फंसी राशि की स्थिति संभलती है, उसके बाद बैंक रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दरों में कटौती का पूरा लाभ आगे ग्राहकों को दे सकेंगे।
वित्त मंत्री ने आगे कहा कि रिजर्व बैंक चार अक्तूबर को मौद्रिक नीति समीक्षा करते समय खुदरा मुद्रास्फीति में आई गिरावट को ध्यान में रखेगा। बैंकों की गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) के मामले में जेटली ने कहा कि इस मामले में सरकार और रिजर्व बैंक ने कई कदम उठाए हैं। अनेक विधायी उपाय भी किए गए हैं जिनमें दिवाला कानून, सरफेसई कानून और ऋण वसूली न्यायाधिकरण कानूनों में किए गए बदलाव शामिल हैं। उन्होंने कहा, ‘इन प्रभावी उपायों के बाद बैंकों को अब पहल करने की जरूरत है … एनपीए की समस्या स्थायी अथवा बनी नहीं रह सकती है।’ सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का कुल एनपीए वर्ष 2014-15 में 5.43 प्रतिशत यानी 2.67 लाख करोड़ रुपए से बढ़कर 2015-16 में 9.32 प्रतिशत यानी 4.76 लाख करोड़ रुपए पर पहुंच गया।