आर्थिक और सामरिक रूप से दुनिया का सबसे ताकतवर देश अमेरिका अपनी मुद्रा डॉलर का हथियार के तौर पर इस्‍तेमाल कर रहा है। कुल वैश्विक इकोनोमिक आउटपुट में अमेरिका की हिस्‍सेदारी तकरीबन 20% है, लेकिन कुल व्‍यापार के आधे से ज्‍यादा हिस्‍से पर इसका कब्‍जा है। इसके अलावा करेंसी रिजर्व में भी अमेरिका का ही दबदबा है। इसका फायदा उठाते हुए आर्थिक प्रतिबंधों के सहारे भी अमेरिका अपने आर्थिक प्रभुत्‍व को बढ़ाता रहता है। आर्थिक गतिविधियों पर डॉलर के अत्‍यधिक प्रभाव का खामियाजा भारत को भी भुगतना पड़ा है। हाल के कुछ महीनों में डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत लगातार कमजोर होती जा रही है और एक डॉलर का मूल्‍य तकरीबन 72 रुपये हो चुका है। इसके कारण भारत को कर्ज भुगतान में हजारों करोड़ रुपये ज्‍यादा का भुगतान करने की नौबत आ गई है। ‘ब्‍लूमबर्ग’ की रिपोर्ट के अनुसार, भारत को कम अवधि वाले लोन (शॉर्ट टर्म लोन) के मद में 9.5 अरब डॉलर (68, 167 करोड़ रुपये) ज्‍यादा का भुगतान करना पड़ सकता है।

कुछ महीनों में चुकाना है कर्ज: SBI की रिपोर्ट की मानें तो विदेशी कर्जों को आने वाले कुछ महीनों में ही चुकाना है। भारत की मुश्किलें यहीं कम नहीं होती हैं। साल के अंत तक यदि पेट्रोल की कीमत औसतन 76 डॉलर (5,453 रुपये) प्रति बैरल रही तो भारत को अरबों रुपये अतिरिक्‍त खर्च करने होंगे। हालांकि, लगातार कमजोर होते रुपये को देखते हुए RBI भी जागा है। ‘इकोनोमिक टाइम्‍स’ के अनुसार, मौजूदा स्थिति को देखते हुए RBI ब्‍याज दरों में 50 बेसिस प्‍वाइंट (.50) तक की वृद्धि कर सकता है, ताकि गिरते हुए रुपये को संभाला जा सके।

भारत की बढ़ी मुश्किलें: वर्ष 2017 में भारत पर कुल 217.6 अरब डॉलर (15.56 लाख करोड़ रुपये) का कर्ज (शॉर्ट टर्म) था। रिपोर्ट की मानें तो आधे लोन का भुगतान या तो किया जा चुका है या फिर उसे अगले साल के लिए बढ़ा दिया गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि वर्ष 2017 में डॉलर के मुकाबले रुपये के औसत मूल्‍य (65) के आधार पर भारत को अभी भी 7 लाख करोड़ रुपये से ज्‍यादा का भुगतान करना है। ऐसे में आने वाले समय में रुपये की कीमत में और गिरावट आने पर भारत की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। यही वजह है कि रुपये में गिरावट का रुख रहने पर RBI के हस्‍तक्षेप करने की संभावना बढ़ गई है। SBI के मुख्‍य आर्थिक सलाहकार सौम्‍य कांति घोष ने रिपोर्ट में लिखा है कि रुपये के 71.4 (डॉलर के मुकाबले) होने पर भारत को तकरीबन 70 हजार करोड़ रुपये अतिरिक्‍त चुकाने पड़ेंगे। हालांकि, SBI की रिपोर्ट में इस बाबत अन्‍य आर्थिक पहलुओं के बारे में विस्‍तृत ब्‍योरा नहीं दिया गया है। मसलन कर्ज को स्थिर मूल्‍य के आधार पर चुकाना है या बाजार मूल्‍य के दर पर।