Budget 2024: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण एक फरवरी 2024 को अंतरिम बजट पेश करने वाली हैं। संसद में बजट 2024 के जरिए पता चलेगा कि पिछले साल का आर्थिक लेखा-जोखा कैसा रहा। वहीं आने वाले समय में किन कामों के लिए पैसे की जरूरत होगी। इस मौके पर जनसत्ता ने कुछ महिलाओं से बात की और पूछा कि उन्हें बजट 2024 से क्या उम्मीदें हैं? उन्हें सरकार से क्या चाहिए? इस आर्टिकल में हम आपको उनकी बातों के कुछ अंश पेश कर रहे हैं।
नोएडा की स्कूल टीचर साधना सिंह का कहना है कि रसोई गैस की कीमतों और बिजली दरों में कटौती की जानी चाहिए। साधना का यह भी कहना है कि आए दिन ऐसी खबरें आती है कि बच्चे को जन्म देते समय महिला की मौत हो गई। ऐसे में सरकार को मातृत्व एवं शिशु देखभाल में और अधिक सुधार करनी चाहिए। ताकि बच्चे कुपोषित ना हों और गर्भवती महिला भी सुरक्षित रह सके। इसके अलावा महिलाओं के लिए पेंशन योजनाएं शुरू की जानी चाहिए। साधना का कहना है कि इस बजट का फोकस महिलाओं के विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, सुरक्षा, संपत्ति स्वामित्व और उनकी वित्तीय निर्भरता पर होना चाहिए।
महिलाओं की सेफ्टी पर हो फोकस
वहीं प्रोफेशनल मेकअप आर्टिस्ट मोनिका गुप्ता ने कहा, वे चाहती हैं कि ज्यादा से ज्यादा सरकराई नौकरियों की वैकेंसी निकले। मोनिका चाहती हैं कि टैक्स का स्ट्रक्चर को थोड़ा लचीला हो। मोनिका के हिसाब से खाने-पीने की चीजों पर टैक्स लगाना सही नहीं है। वह यह भी चाहती हैं कि गैस सिलेंडर के दाम कम हो जाएं और महिलाओं की उच्च शिक्षा के लिए सरकार कोई खास योजना लागू करे। मोनिका का कहना है कि महिलाओं की सेफ्टी पर फोकस होना चाहिए। खासकर, देर रात तक काम करने वाली महिलाओं के लिए।
स्कूल में चल रही मनमानी हो खत्म
वहीं राइटर अनु रॉय का कहना है कि सबसे पहले तो महंगाई कम होनी चाहिए। रसोई के समान से लेकर गैस सिलेंडर का दाम इतना ज्यादा है कि मिडिल क्लास परिवार के लिए कुछ बच नहीं पाता है। शहरों में घर का किराया अधिक है। फल, सब्जी हर चीजों का दाम बढ़ रहा है। यहां तक की सीजन में भी सब्जी और फलों के दाम कम नहीं हो रहे। दूसरी तरफ स्कूल मनमानी रकम वसूल रहे हैं। किताब से लेकर कॉपी तक उनके पास से ही खरीदना पड़ता है। कोई ऐसा नियम बने जिससे स्कूल ये मनमानी न करें या फिर जिनके बच्चे स्कूल में पढ़ रहे हैं उन्हें टैक्स में रियायत मिले।
होम मेकर अंशु का कहना है कि गैस, राशन सस्ता हो, घर खर्च कम हो। अंशु का कहना है कि मंहगाई बढ़ती ही जा रही है। घर का खर्च बढ़ता ही जा रहा है। बचत नहीं हो पा रही है। वहीं बनारस की रहने वाली होम मेकर सोनल कहता हैं कि सरकार को बजट में गैस के साथ-साथ जरूरी चीजों के दाम भी कम रखे। वहीं महिलाओं की सुरक्षा पर भी ध्यान देने की जरूरत है।
साइकोथेरेपी के मेडिक्लेम की व्यवस्था
डॉक्टर अनामिका पापड़ीवाल का कहना है कि अधिकतर माध्यम वर्ग के परिवार की महिलाएं अपने परिवार और पति के सहयोग के लिए आर्थिक रूप से सहयोग करती हैं। ऐसे में बजट की लाभान्वित योजनाओं का लाभ उनको नहीं मिल पाता है। जबकि वह पूरी मेहनत करती हैं। महिलाओं को बजट का फायदा नहीं मिल पाता। वह ग्रहिणी के रूप में ही काम करती हैं। एक महिला होने के नाते मैं यह उम्मीद करती हूं की बजट के अंतर्गत आने वाली सभी लाभान्वित योजनाओं का लाभ जड़ से लेकर शिखर तक सबके पास पहुंचे और महिलाओं के लिए अलग से कुछ बचत योजनाओं को भी शामिल किया जाए, क्योंकि नोटबंदी के बाद कैश खत्म होने के साथ ही महिलाओं की व्यक्तिगत बचत भी लगभग खत्म हो गई है जो मुश्किल समय में परिवार को आर्थिक और चिकित्सकीय सहयोग देने में काम आती थी।
पापड़ीवाल के अनुसार, बजट में शिक्षा और स्वास्थ्य जरूरी मुद्दे हो। स्वास्थ्य संबंधी ऐसा संस्थागत ढांचा बने जहां महिलाओं को सभी सुविधाएं आसानी से उपलब्ध हो सकें। महिला सुरक्षा एवं न्याय की एक निशुल्क एकीकृत योजना बने, जिसमें महिला हेल्पलाइन, आश्रयगृह, महिलाथाना, महिला डेस्क, महिला सलाह-सुरक्षा केन्द्र एवं संबंधित अदालत सम्मिलित हो। इसके लिए प्रोफेशनल साइकोथैरेपिस्ट की नियुक्ति और साइकोथेरेपी के मेडिक्लेम की व्यवस्था भी हो।
9 महीने का मातृत्व अवकाश
वहीं सेल्फ इंडिपिडेंट रिया प्रसाद का कहना है कि महिलाओं को टैक्स स्लैब में छूट मिलनी चाहिए। इसके अलावा मातृत्व अवकाश 9 महीने किया जाना चाहिए। अब देखना है कि सरकार की तरफ से पेश होने वाला बजट महिलाओं की उम्मीदों पर कितना खरा उतरता है।
