सैन्य अफसरों की रिटायरमेंट उम्र में इजाफे और पहले सेवानिवृत्ति लेने वाले लोगों की पेंशन में कटौती के प्रस्ताव को लेकर असहमति के सुर भी उभरने लगे हैं। 15 लाख की संख्या वाली भारतीय सेना के लिए आने वाले दिनों में यह बड़ा मुद्दा हो सकता है। दरअसल रक्षा मंत्रालय का मानना है कि रिटायरमेंट उम्र कम होने के चलते सेना पर पेंशन का बिल बढ़ रहा है। ऐसे में सेना को नए दौर के हिसाब से गठित करने और बजट को सीमित रखने के मद्देनजर यह प्रस्ताव पेश किया गया है। मंत्रालय का यह लक्ष्य है कि प्रशिक्षित सैनिकों को लंबे समय तक के लिए सेना के पास बनाए रखा जा सके।
यदि इस प्रस्ताव को मंजूरी मिलती है तो ऐसे लोगों को करारा झटका लगेगा, जो समय पूर्व ही रिटायरमेंट लेते हैं। नए प्रस्ताव के मुताबिक 20 से 25 साल तक की नौकरी के बाद ही रिटायरमेंट लेने वाले कर्मचारियों को पेँशन के 50 फीसदी हिस्से का ही भुगतान किया जाएगा। इसके अलावा 26 से 30 साल तक नौकरी करने वाले सैन्य अफसरों को 60 फीसदी पेंशन मिलेगी और 31 से 35 साल तक नौकरी के बाद समय पूर्व रिटायरमेंट वाले कर्मियों को 75 फीसदी पेंशन का भुगतान किया जाएगा। फिलहाल सैन्य अफसरों को 20 साल के बाद रिटायर होने पर पूरी पेंशन मिलती है। यह रकम आखिरी मिली सैलरी के आधे के बराबर होती है।
ऐसे में इस प्रस्ताव को मंजूरी मिलने से उन सैनिकों को ब़ड़ा झटका लगेगा, जो समय पूर्व रिटायरमेंट लेते हैं। अकसर प्रशिक्षित सैनिक रिटायरमेंट के बाद पेंशन भी हासिल करते हैं और किसी निजी या सरकारी संस्थान में दूसरी नौकरी करने लगते हैं। अब इस प्रस्ताव को मंजूरी मिलने से उन्हें पूरी पेंशन नहीं मिल पाएगी। मंत्रालय का कहना है कि इससे प्रशिक्षित सैनिकों को लंबे समय तक बनाए रखने में मदद मिलेगी। इससे पेंशन का बिल कम होगा और नए सैनिकों की ट्रेनिंग पर भी कम खर्चा आएगा।
दरअसल 2015 में वन रैंक वन पेंशन के ज्यादातर प्रावधानों को लागू किए जाने के बाद पू्र्व सैनिकों की पेंशन के बिल में बड़ा इजाफा हुआ है। इसी वित्त वर्ष की बात करें तो सरकार को पूर्व सैनिकों और अन्य कर्मचारियों की पेंशन पर 1.33 लाख रुपये की रकम खर्च करनी पड़ेगी।