आर्थिक अनियमितताओं के आरोपों से घिरे महाराष्ट्र के मंत्री एकनाथ खडसे के भविष्य का फैसला करने के लिए सीएम देवेंद्र फडणवीस ने पीएम नरेंद्र मोदी से मुलाकात की है। भ्रष्टाचार के खिलाफ तुरंत एक्शन लिया जा रहा है। अमित शाह और मोदी को बधाई।
तीन चीजें सामने आती हैं।
पहला, यह ‘कैबिनेट गवर्नमेंट फॉर्मेट’ के उलट है। यहां सीएम न तो अपना कैबिनेट चुन सकता है और न ही बीजेपी के केंद्रीय या राज्य यूनिट से पूछे किसी को पद से हटा सकता है। इस मामले में फडणवीस ने अपनी जिम्मेदारी शाह/मोदी पर डाल दी कि वे फैसला लें। मैं यह बात समझता हूं कि ऐसा बरसों से सभी पार्टियों में होता आया है। वास्तव में, कांग्रेस पार्टी में बहुत केंद्रीकृत नियंत्रण व्यवस्था है। गांधी परिवार के प्रति दासता ने इस व्यवस्था का हाल और भी ज्यादा खराब कर रखा है।
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कोई भी पार्टी कैबिनेट सरकार के सिद्धांतों के मुताबिक काम नहीं कर रही। कैबिनेट सरकार का मतलब है कि राज्य के चुनाव राज्य के नेता की अगुआई में लड़े जाते हैं। एक बार जब पार्टी बहुमत जीत लेती है तो राज्य का नेता अपनी कैबिनेट चुनता है। वो किसी से भी सलाह मशविरा कर सकता है, लेकिन किसी की सलाह मानने के लिए बाध्य नहीं होता। देश में लोकतंत्र को और मजबूत करने के लिए यह एक ऐसा बदलाव है, जिसे किए जाने की बेहद जरूरत है। कोई यह तर्क दे सकता है कि भारतीय लोकतंत्र अभी नया है और विकसित हो रहा है। किसी को भी इस बात से राजी होना पड़ेगा। इस बदलाव का एक उदाहरण यही है कि केंद्र द्वारा नियमित अंतराल पर राज्य सरकारों को बर्खास्त करना। ऐसा नेहरू के जमाने से होता आया है और गुजरते सालों में हालात बद से बतर होते गए। सबसे हालिया उदाहरण उत्तराखंड सरकार का बर्खास्त किया जाना है।
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दूसरी बात, जमीन से जुड़े घपले के मामले में खडसे के लिए तुरंत कार्रवाई तारीफ किए जाने लायक है। बीजेपी के दूसरे मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों को घोटालों के मामले में बख्शा क्यों गया? पंकजा मुंडे का चिक्की और बिस्कुट घोटाला। वसुंधरा राजे और उनके बेटे का ललित मोदी के साथ जुड़ाव और सबसे बड़ा मध्य प्रदेश का व्यापमं घोटाला, जिसमें कई लोगों ने अपनी जान गंवाई। कांग्रेस या यूपीए की सरकार में भी भ्रष्टाचार का बोलबाला रहा। कोयला घोटाला, 2जी, कॉमनवेल्थ घोटाला और कई अन्य। हालांकि, ऐसा बार-बार दोहराना इस बात का जवाब नहीं है कि बीजेपी आखिर क्यों कार्रवाई करने के मामले में सिलेक्टिव है।
तीसरी बात, सिर्फ आर्थिक ही नहीं, सभी तरह का भ्रष्टाचार भारत के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जड़ों में घर बना चुका है। इस भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला है नैतिक पतन से। यह ध्यान देने लायक बात है कि आने वाले राज्य सभा चुनाव में प्रत्याशी और पार्टियां एक दूसरे पर वोट खरीदने का आरोप लगा रही हैं। आरोप कि इन ‘माननीय’ विधायकों का वोट खरीदा जाता है। आरोप है कि प्रत्याशी खरीद रहे हैं और विधायक अपने वोट पैसों के लिए बेच रहे हैं। एक शख्स तो पकड़ा भी जा चुका है। हालांकि, उच्च सदन के लिए वोटों की खरीद-फरोख्त पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनावों की तरह जारी है।
इस बात से बिलकुल भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि भारत में नैतिक भ्रष्टाचार ही सभी किस्म के भ्रष्टाचार की जड़ है। यही मोदी, भारतीयों और भारत के सामने चुनौती है। खडसे को जल्द से जल्द बर्खास्त किया जाना मोदी के महान भारत के सपने की दिशा में देरी से होने वाली शुरुआत है। बीजेपी को इस तरह का रुख अपनाने दो साल लग गए। मैं तो यही कह सकता हूं कि देर आए, दुरस्त आए।
(दोसांज ब्रिटिश कोलंबिया के प्रीमियर और कनाडा के हेल्थ मिनिस्टर रह चुके हैं। यह उनके निजी विचार हैं)

