‘पद्मावती’ फिल्‍म में इतिहास से छेड़छाड़ के आरोपों के चलते जयपुर में करणी सेना के कार्यकर्ताओं ने डायरेक्‍टर संजय लीला भंसाली की पिटाई कर दी। करणी सेना का आरोप है कि भंसाली अपनी फिल्‍म में चित्‍तौड़ की रानी पद्मिनी और दिल्‍ली के सुल्‍तान अलाऊद्दीन खिलजी के बीच सपने के दृश्‍य के जरिए प्रेम प्रसंग दिखाना चाहते हैं। यह गलत है और राजपूत समाज का अपमान है। भंसाली ने इससे इनकार किया है। उन्‍होंने कहा कि ऐसा कोर्इ सीन नहीं है और फिल्‍म देखकर राजपूतों को गर्व होगा। इसी बीच बॉलीवुड के कलाकारों, निर्देशकों और अन्‍य लोगों ने भंसाली की पिटाई का विरोध किया। एक्‍टर सुशांत सिंह राजपूत, डायरेक्‍टर अनुराग कश्‍यप, फरहान खान, अभिषेक बच्‍चन ने इसे कला पर हमला बताया। लेकिन भंसाली के पक्ष में बॉलीवुड केवल ट्वीट और बातों के सहारे ही रहा।

फिल्‍मी कलाकारों के संगठनों ने इस संबंध में किसी भी तरह की पुलिसिया कार्रवाई नहीं की। ना ही कोर्ट का रुख किया। बॉलीवुड से जुड़े किसी शख्‍स पर इस तरह का हमला पहली बार नहीं हुआ। बावजूद इसके बॉलीवुड की प्रतिक्रिया ‘बातों के शेर’ वाली ही रही। कुछ महीनों पहले ए दिल है मुश्किल फिल्‍म के समय भी ऐसा ही देखने को मिला था। करण जौहर पाकिस्‍तानी कलाकारों के मुद्दे पर झुक गए थे और उन्‍होंने मनसे की मांग पर 5 करोड़ रुपये आर्मी वेलफेयर फंड में दिए थे। बॉलीवुड के किंग खान कहे जाने वाले शाहरुख खान भी इसी मुद्दे पर विरोध से बचने के लिए राज ठाकरे से मिलने गए थे।

यहां यह बात भी गौर करने वाली है कि बॉलीवुड ने इतिहास से छेड़छाड़ के मुद्दे को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया। भारतीय फिल्‍म उद्योग को यह समझना होगा कि जब किसी ऐतिहासिक मुद्दे पर रचना होती है तो फिर तथ्‍यों की महत्‍ता पर विशेष ध्‍यान की जरुरत होती है। इसी बीच, सुशांत सिंह राजपूत और अनुराग कश्‍यप ने तो पूरे राजपूत समाज पर ही सवाल खड़ा कर दिया। सुशांत ने तो टि्वटर के जरिए इस मुद्दे पर जमकर भड़ास निकाली। उन्‍होंने विरोध में अपना सरनेम भी हटा दिया। लेकिन सिर्फ एक दिन के लिए। यानि वे अपनी बात पर ही खड़े नहीं रह पाए। सुशांत ने कहा था कि अगर किसी व्‍यक्ति में दम है तो उसे बिना अपने सरनेम के पहचान बनानी चाहिए। सुशांत की बात में दम भी लगता है। लेकिन वे खुद ही अपनी बात पर केवल 24 घंटे रह पाए। 29 जनवरी की शाम होते-होते उनके नाम के आगे राजपूत लिखा जा चुका था।

सुशांत आपसे एक बात कहनी है, केवल एक दिन के लिए सरनेम हटाकर आपने भी वही किया जो अभी तक बॉलीवुड कर रहा था। छद्म विरोध। जब आप, जो कि बॉलीवुड में बड़ा नाम है और जिसके नाम पर सिनेमाघरों में भीड़ उमड़ती है, वह हमेशा के लिए अपना सरनेम नहीं हटा सकता तो आम आदमी में आप कैसे उम्‍मीद कर सकते हैं? आपके इस प्रतीकात्‍मक विरोध ने उस आम राजपूत को भी अकेला छोड़ दिया और बदनाम कर दिया जो आपसे सहमति रखता है। क्‍या आपके इस कदम को सुर्खियां पाने का जरिया कहना सही होगा? आपके इस एक दिन के ‘टि्वटर स्‍टंट’ का क्‍या मतलब निकला?

अनुराग कश्‍यप ने भी इस मुद्दे पर खूब ‘हाय-तौबा’ की। उन्‍होंने कहा कि आपको राजपूत होने पर शर्म आ रही है। सही में। 100 लोगों की भीड़ ने किसी व्‍यक्ति पर हमला किया(जिसके पीछे हवाई फायरिंग के जरिए उकसाने की बात भी आ रही है) उस वाकये के लिए पूरी राजपूत कौम को आपने जलील कर दिया। आपने राजस्‍थान के राजपूतों के ऊपर ही गुलाल जैसी फिल्‍म बनाई थी। उस फिल्‍म पर कोई विवाद नहीं हुआ। क्‍योंकि वह एक काल्‍पनिक कहानी थी। कल्‍पना में किसी भी तरह से कहानी कही जा सकती लेकिन इतिहास से गड़बड़ी आने वाली नस्‍लों के मन में भ्रम का बीज बो देती है। जैसा कि जोधा-अकबर के जरिए हो गया। आज अकबर की पत्‍नी के सवाल पर बच्‍चे का जवाब जोधा ही होता है। जबकि जोधा कोई किरदार अकबर के समय में था ही नहीं।