नोटबंदी के एलान के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर से देश को संबोधित किया। उम्मीद की जा रही थी कि नकदी की कमी से जूझ रही देश की जनता को राहत देने वाले फैसलों के बारे बताया जाएगा। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। अपने भाषण के शुरुआती 15-20 मिनट तक तो पीएम मोदी समां बांधने में लगे रहे। इस दौरान उन्होंने हिंदी और संस्कृत के कुछ मुश्किल शब्दों का भी अच्छा खासा प्रयास किया। ‘अप्रतिम’, ‘शुद्धि यज्ञ’, ‘सज्जन-दुर्जन’, ‘काल के कपाल’ जैसे भारी भरकम शब्दों के जरिए मोदी ने लोगों के संघर्ष को स्वीकारा तो कुछ लोगों की गड़बडि़यों को भी स्वीकार किया। लेकिन सरकार की जल्दबाजी और फैसले के लागू होने में आई कमियों को नहीं स्वीकारा।
उनके शुरुआती भाषण से तो यही लगा कि वे जनता के गुस्से को शांत कर रहे हैं और शब्दों के जरिए उन पर ठंडे पानी के छींटें डाल रहे हैं। जैसा कि उन्होंने कहा, ”125 करोड़ लोगों ने यह साबित कर दिया है कि नोटबंदी के बाद की कठिनाइयों के बावजूद लोगों ने अप्रतिम धैर्य, त्याग की पराकाष्ठा, संकल्प के साथ लड़ाई लड़ी और यह प्रदर्शित किया कि सचाई और ईमानदारी उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण है। लोगों ने खून पसीने और कडी मेहनत से एक उज्ज्वल भविष्य की नींव रखी है। काल के कपाल पर यह अंकित हो गया है।”
इसके बाद प्रधानमंत्री नई योजनाओं का एलान करने की ओर बढ़े। सबसे पहले उन्होंने आम जनता और घर का सपना देख रहे लोगों को सस्ते मकान का सपना पेश किया। फिर बारी आई किसानों की जिनके लिए लघु अवधि के ब्याज की माफी की घोषणा हुर्इ। इसके बाद छोटे कारोबारियों, बुजुर्गों और गर्भवती महिलाओं के लिए एलान हुए। देखने और सुनने में लगता है कि इससे काफी असर पड़ेगा। लेकिन बारीकी से देखने पर पता चलता है कि इस तरह की योजनाएं कमोबेश रूप से पहले से ही चल रही हैं। सरकार खुद ही प्रधानमंत्री आवास योजना लॉन्च कर चुकी है। नई जानकारी में बस ब्याज प्रतिशत घटाने की बात है। इसी तरह से गर्भवती महिलाओं को पहले से ही सहायता राशि मिलती है। मोदी ने जिस तरह की योजनाओं का एलान किया उससे साफ लगता है कि देश को अब वित्त मंत्री की भी जरुरत नहीं है। क्योंकि पीएम ने यह काम भी अपने जिम्मे ले लिया। सरकारें अकसर इस तरह की योजनाएं बजट के दौरान लाती हैं। लेकिन इस बार यह काम एक महीने पहले ही कर दिया गया।
पीएम मोदी का पूरा भाषण नोटबंदी से परेशान लोगों को ‘रिश्वत’ देने का प्रयास दिखाई देता है। जिसमें छोटा-मोटा फायदा दिखाकर नोटबंदी के दर्द को भुला देने की बात की गई। उनके भाषण में कहीं नहीं कहा गया कि नोटबंदी को 50 दिन हो चुके हैं और नकदी की कमी को कैसे दूर किया जाएगा। जबकि नोटबंदी के एलान के कुछ दिन बाद ही उन्होंने कहा था कि 50 दिन के अंदर हालात दुरुस्त हो जाएंगे। लेकिन हालात सुधरे तो हैं लेकिन पर्याप्त नहीं हैं। अगर इस संबोधन में वे नोटबंदी के बाद जनता की दिक्कतों को दूर करने की बात करते तो लोगों का नया साल और बेहतर होता।