गुजरात मॉडल क्या हुआ?
फेसबुक के रास्ते से चैनलों पर अचानक आनंदी बेन का आकर साभार इस्तीफा देना गुजरात मॉडल के पंक्चरों को दिखा गया। चैनलों ने इस्तीफे की चार वजहें बतार्इं। आनंदी का पचहत्तर का होना, पाटीदार आंदोलन पर काबू न पाना, दलित उत्पीड़न का होना, सुपुत्री अनार पर भ्रष्टाचार के आरोपों का होना? एक चैनल ने संघ की लाइन दी: संघ चाहता है कि कोई दबंग नेता सीएम बने! हवा में अमित शाह का नाम उछला, जिसे नायडूजी ने नकार दिया। कुछ कर लो, गुजरात का ढक्कन उठ गया, तो उठ ही गया समझिए! क्या करें गुजरात में भी ‘रात’ आती है!
कांग्रेस का पुनर्जागरण
वाराणसी में सोनिया का रोड शो गजब के सीन दे गया। भीड़ की भीड़ नजर आई। लगा, कांग्रेस में जान पड़ गई है। सोनिया आंबेडकर की मर्ति पर फूल चढ़ाते वक्त तक ठीक ही थीं। आकर शीला दीक्षित को पुष्पार्पण के लिए भेजा। कार के दरवाजे पर खड़ी जनता का अभिवादन किया, लेकिन अचानक तबियत खराब की खबर ने रैली को मुकाम तक नहीं पहुंचने दिया। फिर भी रैली ने कांग्रेस में प्राण फूंक दिए!
सार्क का पाक संस्करण
राजनाथजी पाकिस्तान पहुंचे। राजनाथजी लौटे! असली खबर उनके लौटने पर ही बनी। पाकिस्तान ने राजनाथजी के साथ गए मीडिया को कवरेज से मना कर दिया। राजनाथजी ने क्या बोला, यह तक ‘ब्लैक आउट’ कर दिया। टाइम्स नाउ ने बताया कि राजनाथ ने वहां क्या-क्या बोला और जो बोला-बताया वह खासा तीखा था। राजनाथ ने दोटूक बात की। पचास से ज्यादा आतंकवादी पाकिस्तान में हैं, उसे आतंकवादियों को नहीं चढ़ाना चाहिए। आतंकवादी ‘अच्छे’ ‘बुरे’ नहीं होते, वे आतंकवादी होते हैं।
पाकिस्तान को लेकर टाइम्स नाउ, इंडिया टुडे और एनडीटीवी पर पाकिस्तान की आतंकवादपरस्ती की जम कर ठुकाई हुई। सार्क के एक महत्त्वपूर्ण सदस्य के रूप में राजनाथ सिंह के भाषण को ‘ब्लैक आउट’ करना एक महत्त्वपूर्ण सदस्य की सीधी अवमानना है।
पाकिस्तान कुछ कर ले, जब तक न्यूज आवर वाले अर्णव जैसे स्टूडियो वीर हैं तब तक वह हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता!
उम्मीदों का प्रदेश या उल्टा प्रदेश?
अखिलेश यादव की सरकार चैनलों का ‘पंचिग बैग’ बनी हुई है। लगता है कि प्रशासन है ही नहीं। एक गुंडा गिरोह रात को नोएडा-बुलंदशहर हाइवे इक्यानबे पर चलती कार में छड़ मार कर गाड़ी को रुकवाता है और पास के खेत में मां-बेटी का बर्बर रेप करता है। समूची घटना और उसकी खबर अपने आप में अमानुषिकता, नृशंसता और बर्बरता का प्रसरण करती है, जिसे देख कोई भी दर्शक घृणा और क्रोध से भर उठता है। सौ नंबर पर पीड़िता का फोन उठाने वाला तक कोई नहीं। एक दिन बाद एक रिपोर्टर फोन करके बताता है कि अब भी कोई नहीं उठा रहा। चैनल पीछे लगे हैं और थाने सोए हैं। कैमरे वर्दी में सोते हुए पुलिसवालों को दिखाते हैं। सरकार की खूब भद्द पिटती है। एक दर्जन पुलिस अधिकारी हटाए जाते हैं, तफतीश तेज की जाती है। खबर में एक चैनल पीड़िता के हाथ-पैर दिखाता रहता है! इसकी क्या जरूरत थी भई? क्या आपको अपनी खबर पर भी यकीन नहीं? कोढ़ में खाज यह कि अखिलेश सरकार के पक्ष-प्रवक्ता एकदम बेदम नजर आते हैं, वे सरकार का पक्ष तक ठीक से रखना नहीं जानते। न चैनलों में व्यक्त गुस्से को समझ पाते हैं। आधा जनमत तो दलों के प्रखर प्रवक्ता जीतते हैं! आप कुछ धांसू प्रवक्ताओं को रखें। टीवी बहसों में अपनी बात धांसू तरीके से रखने से आधी लड़ाई जीत ली जाती है। फिर, रही-सही कसर आजम खान के ‘राजनीतिक साजिश’ वाले बयान ने निकाल दी, जिसका मुकाबला भाजपा के एक नेता ने ही किया, जिसमें उसने कहा है अगर आजम खान की पत्नी और बेटी के साथ ऐसा ही हो तो पता चले!
यहां धरना मना है
चैनल किसी के सगे नहीं। ढेर सारे विज्ञापन देने वाले केजरीवाल के भी नहीं। उच्च न्यायालय ने ज्यों ही फैसला दिया कि दिल्ली राज्य ‘यूनियन टेरीटरी’ है, जिसका प्रमुख उपराज्यपाल होता है और दिल्ली सरकार को अपनी हदों में रह कर काम करना चाहिए, त्यों ही चैनलों ने केजरीवाल के अंतर्विरोधों पर निंबंध लिखने शुरू कर दिए। चैनलों ने आरोप लगाना शुरू कर दिया कि वैसे केजरीवाल खुद ‘धरना मास्टर’ रहे हैं, लेकिन आज उनके बंगले के आगे किसी को प्रदर्शन करने की इजाजत नहीं है। दिल्ली पुलिस चैनलों से भी एक हाथ आगे दिखी, जिसकी मार्फत लिखा आता रहा कि पुलिस मजिस्ट्रेट के उस आदेश के विरोध में अपील करने वाली है, जिसके तहत केजरीवाल के घर के आगे प्रदर्शनों पर रोक लगाई गई है! प्यारी दुलारी दिल्ली पुलिस! तू कबसे धरना-प्रदर्शन प्रिय हो गई?
बरसात की बात
बरसात नहीं थी तो हाय-हाय थी, बरसात है तो हाय-हाय है। बरसात कवर करने वाले चैनलों की हाय हाय देख कर ऐसा लगा कि वे दिल्ली की धरती पर सीधे स्वर्ग से उतरे हैं! लगा कि चैनलों के रिपार्टरों ने न कभी दिल्ली की बरसात देखी, न सड़कों पर पानी भरा देखा, न कभी दिल्ली के ट्रैफिक जाम देखे और न गुरुग्राम का जाम देखा! यारो, हर साल यही सीने होते हैं फिर यथास्थिति बहाल!
एक चैनल ने दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरू, असम की बरसात और बाढ़ को दिखा कर पूरे भारत को जल प्रलय में डूबते दिखा दिया। अतिरंजना के बिना चैनलों का काम नहीं चलता!
एक बाजार एक राष्ट्र
इधर जीएसटी पर लाइव वोटिंग का प्रसारण होना था, उधर निजी चैनल के ‘एक बाजार एक राष्ट्र’ के शोर में राज्यसभा की चर्चा सुनाई नहीं पड़ती थी। एंकर चहक-चहक कर बताए जा रहे थे कि सन इक्यानबे के बाद का यह सबसे बड़ा संशोधन है। सड़सठ साल बाद जाकर भारत एक बाजार से एक राष्ट्र की ओर कदम बढ़ा रहा है। विशेषज्ञ बताते जाते थे कि इन इन चीजों की कीमतें बढ़ेंगी, इनकी नहीं बढ़ेंगी। ‘एक देश एक बाजार’ होगा। माल की आवाजाही सरल होगी, टैक्स चोरी खत्म होगी। देश की ‘ग्रोथ’ में एक फीसद का इजाफा होगा। राज्यों की आय बढ़ेगी, केंद्र की बढ़ेगी। गरीबी रेखा से नीचे वालों की जेब कितनी कटेगी, यह किसी ने नहीं बताया!
ऐसी भीषण सर्वानुमति थी कि पक्ष-विपक्ष के भाषण सब ‘मित्रसंवाद’ लगे! जिस राज्यसभा में कल तक आए दिन नारेबाजी होती रही हो, उसी में ऐसी निचाट शांति! यकीन न हुआ कि यह वही राज्यसभा है!
बाखबरः एक बाजार, एक राष्ट्र
इधर जीएसटी पर लाइव वोटिंग का प्रसारण होना था, उधर निजी चैनल के ‘एक बाजार एक राष्ट्र’ के शोर में राज्यसभा की चर्चा सुनाई नहीं पड़ती थी। एंकर चहक-चहक कर बताए जा रहे थे कि सन इक्यानबे के बाद का यह सबसे बड़ा संशोधन है।
Written by सुधीश पचौरी

Jansatta.com पर पढ़े ताज़ा ब्लॉग समाचार (Blog News), लेटेस्ट हिंदी समाचार (Hindi News), बॉलीवुड, खेल, क्रिकेट, राजनीति, धर्म और शिक्षा से जुड़ी हर ख़बर। समय पर अपडेट और हिंदी ब्रेकिंग न्यूज़ के लिए जनसत्ता की हिंदी समाचार ऐप डाउनलोड करके अपने समाचार अनुभव को बेहतर बनाएं ।
First published on: 07-08-2016 at 02:32 IST