राजकुमार जैन
तकनीकी विकास के चलते परमाणु मिसाइल के प्रक्षेपण से लेकर लक्ष्य भेद तक में लगने वाला समय कम से कम होता जाएगा और एक समय ऐसा भी आएगा जब तकनीकी कारणों से हमें इसका नियंत्रण कृत्रिम बुद्धिमत्ता के हवाले करना ही होगा। मगर ऐसा करना हमें दूर दिखाई दे रहे सर्वनाश के समीप अप्रत्याशित तेजी से ले जाएगा।
मानव जाति के संपूर्ण इतिहास में कृत्रिम बुद्धिमत्ता के अलावा ऐसी किसी और तकनीक का उल्लेख नहीं है, जो परमाणु बम के समान विध्वंसक क्षमता रखती हो या शायद उससे भी अधिक। परमाणु बम की खोज, सर्वनाश की कल्पना थी और उसके बाद जन्मी कोई भी प्रौद्योगिकी इस मुकाम तक नहीं पहुंची थी। मगर जबसे ‘चैट-जीपीटी’ जैसी तकनीकों ने असीमित संभावनाओं से भरा अपना अद्भुत प्रदर्शन दुनिया को दिखाया है, तब से इंटरनेट की दुनिया इसकी प्रलयंकारी क्षमता से अचंभित है।
यह हमें सोचने पर विवश करती है कि अगर दुनिया को समझने में सक्षम एक ऐसी अति क्षमतावान कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उदय होता है, जिसके लक्ष्य मानवता से परे हों, तो यह हमारी कल्पना से अधिक डरावना हो सकता है। इस कल्पना से अधिक भयावह बात यह है कि कृत्रिम बुद्धि को स्वचालित हथियार प्रणाली से जोड़ कर कयामत के इस रास्ते पर हम पहला कदम रख चुके हैं और पीछे हटने का कोई रास्ता भी नहीं सूझ रहा है।
दुनिया की सबसे बड़ी सैन्य शक्तियों ने युद्ध में कृत्रिम बुद्धिमत्ता यानी आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआइ) को शामिल करने की होड़ शुरू कर दी है। फिलहाल, इसका मतलब व्यक्तिगत हथियारों या ड्रोन पर नियंत्रण करना है। राहत की बात यह है कि नीतिगत निर्णय और युद्ध रणनीति बनाने का काम अब भी मनुष्य ही कर रहे हैं। मगर जिस तेजी से कृत्रिम बुद्धिमत्ता की घुसपैठ युद्ध क्षेत्र और मारक हथियार प्रणाली में बढ़ती जा रही है, वह दिन दूर नहीं, जब एआइ एक मानव के रूप में हमारी दूरदर्शिता और सामूहिक संयम के साथ कार्य करने की हमारी क्षमता से आगे निकल जाएगा और नियंत्रण हमारे हाथ से फिसल जाएगा।
स्टैनफोर्ड के हूवर इंस्टीट्यूट में ‘वारगेमिंग और क्राइसिस सिमुलेशन इनिशिएटिव’ की निदेशक जैकलीन श्नाइडर ने हाल में 2018 में तैयार किए गए एक ‘गेम’ के बारे में बताया है। यह एक परमाणु संघर्ष का माडल है, जिसे खेलने वालों में पूर्व राष्ट्राध्यक्ष, पूर्व विदेशमंत्री, नाटो के वरिष्ठ अधिकारी जैसे लोग शामिल थे।
यह कुछ इस तरह है कि क्षेत्रीय संघर्ष गहरा गया है और दुश्मन संयुक्त राज्य अमेरिका के खिलाफ परमाणु हमला करने पर विचार कर रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति और उनका मंत्रिमंडल इस गंभीर स्थिति का सामना करने के बारे में निर्णय करने की कवायद कर रहा है। सेना प्रमुख जवाबी कार्रवाई के लिए तुरंत तैयारी की सलाह देते हैं। खुफिया सूत्रों के हवाले से मंत्रिमंडल के समक्ष यह दुविधा आती है कि दुश्मन ने एक ऐसा नया साइबर हथियार विकसित किया है, जो राष्ट्रपति को परमाणु हथियारों के बेड़े से जोड़ने वाली संचार प्रणाली में प्रवेश कर ‘लान्च कमांड’ को जिम्मेदार अधिकारियों तक पहुंचने से रोक सकता है।
इस भयावह परिदृश्य में जब अन्य कोई कारगर विकल्प उपलब्ध नहीं है, तब कुछ खिलाड़ी मिसाइल स्थलों पर तैनात अधिकारियों को यह अधिकार दे देते हैं कि वे सोचें और निर्णय लें कि क्या परमाणु हमला किया जाना चाहिए। मगर आश्चर्यजनक रूप से ज्यादातर खिलाड़ियों ने अपनी परमाणु हथियार प्रक्षेपण प्रक्रिया को पूरी तरह से स्वचालित करने के विकल्प को चुना। उन्होंने यह निर्धारित करने के लिए कि परमाणु हमला करना कब उचित होगा, एक सशक्त अल्गोरिदम के निर्माण की वकालत की। हमले का निर्णय लेने के बारे में उनका भरोसा एक मनुष्य के बजाय एआइ पर अधिक दिखा।
शीत युद्ध के शुरू में हिरोशिमा पर इस्तेमाल किए गए बमवर्षक विमान, परमाणु हमले के लिए पसंदीदा उपकरण थे। इन विमानों को सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच उड़ान भर कर लक्ष्य तक पहुंचने में लंबा समय लगता था और संबंधित राष्ट्राध्यक्ष को परमाणु हमले की चेतावनी बम फटने से एक घंटे या अधिक समय पहले मिल जाती थी, जो कि आपस में संवाद कर हमले को रुकवाने के लिए या वार्ता विफल होने की स्थिति में हमला करने के लिए पर्याप्त समय था।
1958 में खोजी गई अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल (आइसीबीएम) ने इस समय अंतराल को छोटा कर तीस मिनट कर दिया। इस अल्प समय के प्रत्येक क्षण का मानवता के हित में उपयोग करने के लिए दोनों महाशक्तियों ने उपग्रहों के बेड़े भेजे, जो मिसाइल प्रक्षेपण के विशिष्ट पहचान चिह्नों को पकड़ सकते हैं, ताकि हमले के सटीक पथ और लक्ष्य को समय रहते समझा जा सके।
अगर प्रमुख परमाणु शक्तियां भविष्य में नई परमाणु मिसाइल प्रौद्योगिकी विकसित नहीं करती हैं, तो भी पंद्रह मिनट मानव प्रतिक्रिया के लिए बहुत कम समय है। मगर वे रुके नहीं हैं और हाइपरसोनिक मिसाइल सहित नई मिसाइल तकनीक विकसित करने के लिए काम कर रहे हैं, जिसका उपयोग रूस पहले से ही यूक्रेन में कर रहा है। इस तकनीक से लैस मिसाइल अपनी सुरक्षा के लिए इतनी तेजी से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ती है कि दुश्मन को उसे रास्ते में ही ध्वस्त करने का समय न मिले। रूस और चीन दोनों चाहते हैं कि हाइपरसोनिक मिसाइलें अंतत: परमाणु हथियार ले जाएं। ये प्रौद्योगिकियां संभावित रूप से निर्णय-काल फिर आधा कर सकती हैं।
इसका समाधान केवल एआइ में दिखाई पड़ता है, जो अग्रिम चेतावनी प्रणाली के जागृत होते ही बिजली की गति से गणना कर परमाणु अस्त्रों को समय रहते प्रक्षेपित करने के बारे में निर्णय लेकर अपने देश की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है। मगर यहां स्वचालन गंभीर जोखिम पैदा करता है। 1983 में, सोवियत अग्रिम चेतावनी प्रणाली ने ‘मिडवेस्ट’ के ऊपर चमकते बादलों को दुश्मन द्वारा प्रक्षेपित मिसाइल समझने की भूल की थी। उस समय सोवियत सेना के लेफ्टिनेंट कर्नल स्टैनिस्लाव पेत्रोव ने अपनी मानवीय अनूभूतियों से महसूस किया कि यह एक गलत सूचना है और प्रलय टल गई।
माना कि आज के कंप्यूटर-दृष्टि अल्गोरिदम अधिक परिष्कृत हैं, लेकिन उनके कामकाज अक्सर रहस्यमय होते हैं। 2018 में, एआइ शोधकर्ताओं ने प्रदर्शित किया कि जानवरों की छवियों में छोटी-सी गड़बड़ी के चलते तंत्रिका नेटवर्क ने एक पांडा को गिब्बन के रूप में गलत तरीके से वर्गीकृत किया। अगर एआइ माडल ऐसी वायुमंडलीय घटनाओं का सामना करता है, जो उनके प्रशिक्षण डेटा में शामिल नहीं थे, तो वे मतिभ्रमित होकर संभावित हमले की सूचना प्रसारित कर सकते हैं और धरती की सतह पर कयामत टूट सकती है।
इसका एक गंभीर पहलू यह भी है कि वैश्विक परिदृश्य में आतंकवादियों के सारे समूह अपनी ताकत बढ़ाने और दुनिया पर अपना कब्जा जमाने के लिए परमाणु शक्ति से लैस होना चाहते हैं। कल्पना कीजिए, जब नियंत्रण एआइ के हाथ में होगा तब इन आतंकवादियों को परमाणु अस्त्र बनाने में अपनी शक्ति और संसाधन खर्च करने के बजाय नियंत्रणकर्ता एआइ को भ्रमित करने वाली तकनीक के विकास पर जोर देना होगा, जो एआइ में हो रहे विकास के चलते यूरेनियम चुराने और परमाणु बम बनाने की योग्यता रखने वाले इंसानों को नियंत्रित करने से कहीं आसान होगा।
तकनीकी विकास के चलते परमाणु मिसाइल के प्रक्षेपण से लेकर लक्ष्य भेद तक में लगने वाला समय कम से कम होता जाएगा और एक समय ऐसा भी आएगा जब तकनीकी कारणों से हमें इसका नियंत्रण कृत्रिम बुद्धिमत्ता के हवाले करना ही होगा। मगर ऐसा करना हमें दूर दिखाई दे रहे सर्वनाश के समीप अप्रत्याशित तेजी से ले जाएगा। निर्णय समय को कम से कम करने के इस बढ़ते उन्माद के परिणाम स्वरूप घटित होने वाले निश्चित सर्वनाश से बचना है, तो आज हमें जरूरत है बुश और गोर्बाचेव की सरल निरस्त्रीकरण संधियों से प्रेरणा लेकर एक ऐसा वैश्विक समझौता करने की, जो हमें कृत्रिम बुद्धिमत्ता का बंधक बनने से बचा कर प्रलय से परे रख सके।