रफी और कपूर दोनों ने साथ में सिर्फ एक गाना गाया। 1968 की ‘आदमी’ में। इस गाने के बोल थे ‘कैसी हसीन आज बहारों की रात है, एक चांद आसमां पे है एक मेरे साथ है…ओ देने वाले तूने तो कोई कमी न की, अब किसको क्या मिला ये मुकद्दर की बात है…’
रफी महेंद्र कपूर को छोटा भाई मानते थे। रफी का बनाया गैरफिल्मी गाना (इलाही कोई तमन्ना नहीं…) गाकर कपूर ने मरफी रेडियो की संगीत प्रतियोगिता जीती थी और फिल्मों में आए थे। कपूर अक्सर रफी के कार्यक्रमों में तानपुरा बजाते थे। दोनों ने तय किया था कि वे साथ में कोई गाना नहीं गाएंगे ताकि दोनों के बीच बेवजह की तुलना न हो। महेंद्र कपूर भी नहीं चाहते थे कि जिस रफी को वह गुरु मानते हैं उनके साथ कोई द्वंद्व गीत कभी गाना पड़े।
इसका नुकसान उठाना पड़ा रफी को। रफी बीआर चोपड़ा की पहली फिल्म ‘अफसाना’ (1951) से ही उनके लिए गा रहे थे। चोपड़ा ने जब रफी-महेंद्र कपूर से साथ गवाना चाहा तो रफी ने इनकार कर दिया। चोपड़ा को बुरा लगा। उन्होंने रफी को हाशिये पर डालना शुरू कर दिया। यही नहीं उन्होंने रफी के चेले माने जाने वाले महेंद्र कपूर को आगे बढ़ाना शुरू कर दिया।
‘वक्त’ (1965) जैसी देश की पहली मल्टीस्टारर फिल्म में चोपड़ा ने रफी से एक ही गाना गवाया। चोपड़ा की ‘हमराज’ में महेंद्र कपूर ‘नीले गगन के तले…’, ‘न मुंह छुपा के जियो…’, ‘तू हुस्न है मैं इश्क हूं…’, ‘तुम अगर साथ देने का वादा करो…’ जैसे गाने गाकर बुलंदियों पर पहुंचे। उधर चोपड़ा रफी की लगातार उपेक्षा कर रहे थे। चोपड़ा ने 1975 की ‘जमीर’ से लेकर रफी के निधन (31 जुलाई, 1980) तक उनसे कोई गाना नहीं गवाया।
यह मुकद्दर की बात थी कि महेंद्र कपूर के साथ न गाने के नियम पर अमल करने के कारण बीआर कैम्प में मोहम्मद रफी की उपेक्षा हो रही थी और महेंद्र कपूर आगे बढ़ाए जा रहे थे। ए भीमसिंह निर्देशित दक्षिण के एक निर्माता की 1968 में बनी ‘आदमी’ में रफी-कपूर के पहली और आखिरी बार( ‘कैसी हसीन आज बहारों की रात है…’) गाने की वजह अलग थी।
फिल्म में यह गाना दिलीप कुमार-मनोज कुमार पर फिल्माया गया था और दिलीप कुमार के लिए रफी और मनोज कुमार के लिए तलत महमूद की आवाज में इसकी रिकॉर्डिंग हो चुकी थी। मगर मनोज कुमार को लगा कि तलत महमूद की आवाज बहुत कमजोर है। उन्होंने संगीतकार नौशाद को अपनी राय बताई, जो उन्हें ठीक लगी। दरअसल तलत ने यह गाना गाया तब वह बीमार थे।
आखिर रफी के साथ महेंद्र कपूर को गाने के लिए कहा, क्योंकि उनकी आवाज दमदार थी। मगर महेंद्र कपूर ने मना कर दिया। जब तलत ने खुद आगे आकर महेंद्र कपूर को गाने के लिए कहा, तब जाकर कपूर तैयार हुए और यह गाना गाया।
हालांकि दोनों ने मन्नाडे के साथ मिलकर बीआर चोपड़ा के भाई यश चोपड़ा की फिल्म ‘काला पत्थर’ में ‘धूम मची धूम…’ भी बाद में गाया। मगर उसमें दो से ज्यादा गायक थे।