अरविंद केजरीवाल सरकार ने फैसला किया है कि दिल्ली में इस साल शराब की नई दुकानें नहीं खुलेंगीं। पिछले साल बिहार में जदयू नेता नीतीश कुमार ने शराबबंदी को मुख्य मुद्दा बना कर चुनाव लड़ा। चुनाव में उन्हें शानदार सफलता मिली। जाहिर है, इसके कई कारण रहे होंगे, पर शराबबंदी का वादा बड़ी वजह थी। सीएम बनने के बाद उन्होंने इस वादे पर अमल भी किया। न केवल अमल किया, बल्कि इसे देशव्यापी मुद्दा बनाने की कवायद तेज कर दी। उन्होंने जहां भी सभाएं कीं, शराबबंदी की बात की। उत्तर प्रदेश में वह कम से कम छह बड़ी सभाएं कर चुके हैं, जहां शराबबंदी को बड़े मुद्दे के तौर पर प्रचारित किया। उन्होंने कहा कि वह संघमुक्त भारत के साथ-सााथ नशामुक्त भारत भी देखना चाहते हैं।
विपक्षी पार्टियों को नीतीश का यह एजेंडा शायद पसंद आया। यूपी में नया जीवन पाने की आस लगाए बैठी कांग्रेस ने भी अभी से राज्य में शराबबंदी को मुद्दा बनाने का फैसला किया है। यूपी में अगले साल की शुरुआत में विधानसभा चुनाव होने हैं। करीब ढाई दशक से राज्य में हाशिये पर पड़ी कांग्रेस ने कई महीने पहले से ही पूरा जोर लगा दिया है। अब पार्टी ने महिला कांग्रेस के जरिए घर-घर जाकर एक अभियान चलाने का फैसला किया है। महिला कांग्रेस कार्यकर्ता घर-घर जाकर इस मुद्दे पर लोगों से सहयोग की अपील करेंगी। शराबबंदी लागू करने की मांग के समर्थन में हस्ताक्षर अभियान भी चलाया जाएगा। पार्टी अपने चुनाव घोषणापत्र में भी इस मुद्दे को अहमियत दे सकती है।
उधर, यूपी चुनाव से दूर, लेकिन पंजाब में काफी सक्रिय आम आदमी पार्टी (आप) भी शराबबंदी के मुद्दे को पसंद करती दिख रही है। पार्टी के नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 17 अगस्त को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि इस साल दिल्ली में शराब की नई दुकान नहीं खोली जाएगी। माना जा रहा है कि केजरीवाल इस फैसले को पंजाब में भी भुना सकते हैं। पंजाब ड्रग्स की ज्यादा खपत के लिए पहले से बदनाम है। नशामुक्ति वहां भी बड़ा चुनावी मुद्दा बन सकता है। केजरीवाल पंजाब चुनाव के लिए प्रचार में दिल्ली में शराब की दुकानें नहीं खोलने का फैसला कर लोगों को यह यकीन दिलाने की कोशिश कर सकते हैं कि अगर राज्य में आप की सरकार बनी तो वह नशामुक्ति के क्षेत्र में कड़े कदम उठा सकती है।
अगर यूपी और पंजाब में नशामुक्ति को बड़ा चुनाव मुद्दा बनाने वाली पार्टी को अच्छी सफलता मिली तो इसे 2019 के लोकसभा चुनाव में भी पार्टियां मुद्दा बनाएंगी, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। जदयू, कांग्रेस, आप जैसी पार्टियों के रुख के चलते 2019 चुनाव का अहम एजेंडा नशामुक्ति हो सकता है।