नंदलाल बोस उनके गुरु थे। अमृतलाल वेगड़ ने चित्रकला में अपनी अलग पहचान बनाई थी। मगर फिर उनका प्रकृति से लगाव कुछ इस तरह बढ़ा कि उन्होंने उसके संरक्षण के लिए ही अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। खासकर नर्मदा नदी से उन्हें अधिक मोहा और वे नर्मदा की परिक्रमा करते और उसके किनारे बसे लोगों के जीवन को जानने-समझने में ही अपना पूरा जीवन लगा दिया। नदी से प्यार कैसे किया जाता है, क्यों नदियों को जीवित रखना है, जो सूख चुकी हैं उन्हें कैसे जीवित रखना है, यह चिंता उनके चिंतन के केंद्र में सदा बनी रही।

कोई व्यक्ति इस तरह अपना पूरा जीवन किसी नदी को समर्पित कर दे, ऐसे उदाहरण कम मिलते हैं। मगर अमृतलाल वेगड़ उन चित्रकारों और साहित्यकारों में से थे, जिन्होंने पर्यावरण संरक्षण के लिए उल्लेखनीय काम किया। नर्मदा नदी की चार हजार किलोमीटर की पदयात्रा उन्होंने की और नर्मदा अंचल में फैली बेशुमार जैव विविधता से दुनिया को परिचित कराया। सैंतालीस साल की उम्र में, 1977 में, उन्होंने नर्मदा की परिक्रमा शुरू की थी और 2009 तक यह क्रम जारी रहा। उन्होंने पचहत्तर साल की उम्र तक नर्मदा की परिक्रमा की। इतनी उम्र में भी उनके शरीर और चेहरे पर कभी थकान नजर नहीं आई। यह नर्मदा के प्रति उनके लगाव और जुनून का ही परिचायक था।

नर्मदा की परिक्रमा करते, उसके बारे में जानते-समझते हुए उन्होंने लिखने और उससे जुड़ी संस्कृति को चित्रित करने का सिलसिला शुरू किया। मन में था कि जो कुछ वे नर्मदा के किनारे, नर्मदा में देख-सुन रहे हैं, जो अनुभव कर रहे हैं, उसे लिख कर और उसका चित्र उकेर कर लोगों तक भी पहुंचाया जाए, ताकि उनकी संवेदना को जगाया जा सके और नदी-संस्कृति की रक्षा के लिए एक अभियान छेड़ा जा सके।

इसी क्रम में अमृतलाल वेगड़ ने हिंदी में प्रसिद्ध किताब ‘नर्मदा की परिक्रमा’ लिखी, जिसमें उनके नर्मदा परिक्रमा के दौरान हुए अनुभव दर्ज हैं। नर्मदा के हर भाव और अनुभव को वेगड़जी ने अपने चित्रों और साहित्य में उतारा। उन्होंने गुजराती में सात और हिंदी में तीन किताबें लिखीं- ‘सौंदर्य की नदी नर्मदा’, ‘अमृतस्य नर्मदा’, ‘तीरे-तीरे नर्मदा’। साथ ही करीब दस पुस्तकें बाल साहित्य पर भी लिखीं।

इन पुस्तकों के पांच भाषाओं में तीन-तीन संस्करण निकले। कुछ का विदेशी भाषाओं में भी अनुवाद हो चुका है। इन पुस्तकों में ‘सौंदर्य की नदी नर्मदा’ काफी प्रसिद्ध है। इसके अलावा ‘अमृतस्य नर्मदा’, ‘तीरे-तीरे नर्मदा’ और ‘नर्मदा तुम कितनी सुंदर हो’ भी काफी लोकप्रिय हुई थी। उनकी नर्मदा परिक्रमा ने लोगों को इतना प्रभावित किया कि लोग उससे जुड़ते गए और समय-समय पर उसमें शामिल होकर उनके साथ परिक्रमा करते रहे। इस तरह उनकी नर्मदा परिक्रमा एक अभियान की तरह चलती रही।

उनकी रचनाओं के लिए गुजराती और हिंदी में ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ और ‘महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार’ जैसे अनेक राष्ट्रीय पुरस्कारों से उन्हें सम्मानित किया गया। 2018 में ‘माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय’ के दीक्षांत समारोह में भारत के तत्कालीन उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू द्वारा उन्हें मानद उपाधि प्रदान की गई। उनका स्वास्थ्य खराब होने के कारण जबलपुर में उनके निवास पर एक सादे समारोह में यह उपाधि प्रदान की गई थी। उसी साल नब्बे वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।