आज का समय ऐसा है जब युवा वर्ग लगातार दिशा और प्रेरणा की तलाश में है। मोटिवेशनल कंटेंट की बाढ़ के बीच, यह समझना मुश्किल हो जाता है कि कौन-सी बात वास्तव में जीवन को बदल सकती है और कौन-सी केवल उत्साह तक सीमित रह जाती है। इसी परिप्रेक्ष्य में सोनू शर्मा की पुस्तक “सफलता के 24 अध्याय” एक दिलचस्प कोशिश के रूप में सामने आती है।
दिशा पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक जीवन और करियर के कई अहम पहलुओं को स्पर्श करती है—जैसे आत्मविश्वास, लक्ष्य निर्धारण, धैर्य, नेतृत्व, पैसे का प्रबंधन, व्यक्तिगत और व्यावसायिक संतुलन, तथा गलतियों से सीखने की कला।
सकारात्मक सोच का आग्रह, लेकिन यथार्थ से जुड़ा
पुस्तक का पहला अध्याय आत्मविश्वास पर केंद्रित है, और इसमें लेखक ने यह रेखांकित किया है कि सफलता की शुरुआत स्वयं पर विश्वास से होती है। यह विचार नया नहीं है, लेकिन शर्मा इसे व्यवहारिक उदाहरणों के साथ प्रस्तुत करते हैं, जिससे संदेश दोहराव के बावजूद असरदार बन जाता है।
पुस्तक के कई हिस्सों में सकारात्मक सोच का महत्व सामने आता है—“आपकी सोच ही आपकी हकीकत बनती है।” यह बात आज के तनावग्रस्त युवा जीवन के संदर्भ में सटीक बैठती है, हालांकि कहीं-कहीं यह दृष्टिकोण थोड़ा आदर्शवादी भी प्रतीत होता है।
लक्ष्य, नेतृत्व और धैर्य—पारंपरिक पर ठोस बातें
“बिना लक्ष्य जीवन दिशाहीन है” जैसी बातें भले जानी-पहचानी हों, लेकिन शर्मा इन्हें व्यावहारिक रूप में जोड़ने की कोशिश करते हैं। वे बताते हैं कि लक्ष्य केवल सफलता का साधन नहीं, बल्कि आत्म-अनुशासन का हिस्सा भी है।
लीडरशिप और धैर्य पर लिखे अध्यायों में भी यही संतुलन दिखता है — लेखक आदेश देने वाले नहीं, बल्कि जिम्मेदारी उठाने वाले नेता की वकालत करते हैं। यह दृष्टिकोण युवा पाठकों के लिए प्रासंगिक है, खासकर उस दौर में जब “लीडर” शब्द का अर्थ अकसर सिर्फ पद तक सीमित रह जाता है।
पैसे और संतुलन पर व्यावहारिक दृष्टि
‘पैसे की अहमियत’ और ‘पर्सनल vs प्रोफेशनल लाइफ’ दो ऐसे अध्याय हैं जो इस पुस्तक को बाकी मोटिवेशनल किताबों से थोड़ा अलग बनाते हैं। शर्मा पैसे को केवल भौतिक आवश्यकता नहीं, बल्कि आत्मसम्मान और स्वतंत्रता से जोड़ते हैं — यह नजरिया व्यावहारिक और संतुलित दोनों है।
वहीं, निजी और पेशेवर जीवन के संतुलन पर उनका विचार अपेक्षाकृत परिपक्व लगता है — वे कहते हैं कि “काम और जीवन दोनों में संतुलन ही स्थायी सफलता की निशानी है।”
गलतियों और ‘नशा करो’ जैसे अध्यायों की खासियत
‘मिस्टेक्स ऑफ लाइफ’ अध्याय पुस्तक का मजबूत हिस्सा है। यह बताता है कि असफलता से डरने के बजाय उसे सीखने का साधन बनाना चाहिए। इस अध्याय की भाषा आत्मीय और सरल है, जो इसे प्रभावी बनाती है।
‘नशा करो!’ अध्याय शीर्षक के कारण ध्यान खींचता है, लेकिन इसका संदेश रचनात्मक है — नशा किसी पदार्थ का नहीं, बल्कि अपने सपनों और कर्म का करो। यह बात लेखक की शैली को थोड़ी नाटकीय बनाती है, लेकिन विचार का मूल सार प्रेरक है।
पौराणिक संदर्भों की उपस्थिति
पुस्तक में श्रीराम, श्रीकृष्ण, हनुमान और चाणक्य जैसे चरित्रों से प्रेरणा ली गई है। इन प्रसंगों के माध्यम से लेखक पारंपरिक मूल्यों को आधुनिक संदर्भ से जोड़ने की कोशिश करते हैं। कुछ पाठकों को यह संयोजन थोड़ा धार्मिक झुकाव वाला लग सकता है, पर प्रस्तुतिकरण पर्याप्त रूप से संतुलित है।
कुल मिलाकर — प्रेरणा और व्यावहारिकता का संतुलन
“सफलता के 24 अध्याय” एक ऐसी पुस्तक है जो न तो कोई जादुई नुस्खा देती है, न सफलता की आसान राह सुझाती है। यह बार-बार यही कहती है कि सफलता एक यात्रा है — जिसमें स्पष्ट लक्ष्य, धैर्य और सकारात्मक दृष्टिकोण की जरूरत है।
हालांकि पुस्तक की भाषा कहीं-कहीं अत्यधिक उपदेशात्मक हो जाती है, फिर भी इसकी सादगी और उदाहरणों की सटीकता इसे पठनीय बनाए रखती है।
यह पुस्तक उन युवाओं के लिए उपयोगी है जो प्रेरणा के साथ-साथ दिशा भी खोज रहे हैं। यह आपको कोई नया दर्शन नहीं देती, पर जीवन की जानी-पहचानी बातों को फिर से जीने और लागू करने की याद दिलाती है। अगर आप आत्म-विकास की यात्रा पर हैं और व्यवहारिक सोच को समझना चाहते हैं, तो “सफलता के 24 अध्याय” पढ़ना एक अच्छा अनुभव साबित हो सकता है।
