अकादमिक वर्ष २०२५–२६ में जामिया मिल्लिया इस्लामिया अपना 105वां स्थापना वर्ष मना रहा है । स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में छह दिवसीय तालीमी मेले का आयोजन किया गया जिसका आगाज़ केंद्रीय मंत्री किरन रिजीजू ,कुलपति मजहर आसिफ़ ,रजिस्ट्रार महताब आलम रिज़वी ने किया।

पांच दिनों में जामिया में अलग- अलग जगहों पर विभिन्न आयोजन किए जा रहे हैं, इसी कड़ी में लिटरेरी एंड फाइन आर्ट्स क्लब, कार्यालय डीन स्टूडेंट्स वेलफेयर (DSW) द्वारा प्रतिष्ठित कवियों के साथ “उत्तर-पूर्व कविता पाठ (North East Poetry Reading)” कार्यक्रम का सफल आयोजन किया गया।

कार्यक्रम का उद्देश्य विद्यार्थियों को पूर्वोत्तर भारत की सांस्कृतिक और साहित्यिक धरोहर से परिचित कराना था, ताकि वे विविध भारतीय साहित्यिक परंपराओं की गहराई और सौंदर्य को समझ सकें।

कार्यक्रम की शुरुआत क्लब के संयोजक प्रो. दिलीप शाक्य द्वारा मुख्य अतिथि वरिष्ठ कवि लीलाधर मंडलोई को अंगवस्त्र और पौधा भेंट करके की गई. अन्य आमंत्रित अतिथियों कवयित्री डॉ. अचिंगलियू कामेई, डॉ. सोइबम हरिप्रिया और कवि डॉ. ए. सी. खारिंगपम का स्वागत भी अंगवस्त्र और पौधा भेंट करके किया गया.

मुख्य अतिथि वरिष्ठ कवि श्री लीलाधर मांडलोई ने अपने उद्बोधन में पूर्वोत्तर के विभिन्न जनजातीय अनुभवों की विशिष्टता और उनकी काव्यात्मकता पर विस्तार से चर्चा की.

पूर्वोत्तर भारत का साहित्य अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक विविधता, प्राकृतिक सौंदर्य, और राजनीतिक संघर्षों को व्यक्त करने वाली कविताओं और कथाओं के लिए जाना जाता है। पिछले बीस वर्षों में उत्तर-पूर्व का लेखन भारतीय साहित्य का एक अत्यंत जीवंत हिस्सा बन गया है। टेमसुला आओ, ईस्टरीन किरे, ममंग दई और रॉबिन एस. नंगोम जैसे कवियों ने इस धारा को नई पहचान दी है।

कवयित्री डॉ. अचिंगलियू कामेई ने सत्र के दौरान यह विचारोत्तेजक प्रश्न रखा — “उत्तर-पूर्वी कविता क्या है?” उन्होंने कहा कि उत्तर-पूर्व की कविता किसी एक भाषा या भौगोलिक परिधि में सीमित नहीं की जा सकती, बल्कि यह एक जीवन-दृष्टि है।

डॉ. शिमी मोनी डोले ने कहा कि उत्तर-पूर्व कविता के अतीत और वर्तमान पर कहा कि वह इतिहास, औपनिवेशिक अनुभवों और मिथकों को समेटते हुए समकालीन चिंताओं को भी संबोधित करती है।

डॉ. सोइबम हरिप्रिया ने अपनी कविता “फॉल”के माध्यम से गहरे मानवीय विचार प्रस्तुत किए। डॉ. ए. सी. खारिंगपम ने अपनी कविताओं को प्रस्तुत करते हुए उत्तर-पूर्व के साहित्य में प्रकृति-केंद्रित दृष्टिकोण और समसामयिक मुद्दों को सामने रखा. उत्तर पूर्व कविता पाठ की इस कड़ी में वरिष्ठ कवि लीलाधर मंडलोई ने अपने उत्तर पूर्व सांस्कृतिक अनुभव को कविताओं के माध्यम से प्रस्तुत किया. उन्होने कोरोना की त्रासदी पर लिखा हुआ काव्य संग्रह ‘ईश्‍वर कहीं नहीं’ और अब यह ‘क्‍या बने बात’ से भी कुछ अंश श्रोताओं को सुनाए ।

कार्यक्रम के अंत में असम की छात्रा जेबा सानिया सुल्ताना ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए जामिया के कुलपति प्रोफेसर मज़हर आसिफ़ के दूरदर्शी नेतृत्व, कुलसचिव प्रोफेसर महताब आलम रिज़वी के सहयोग तथा डीन छात्र कल्याण प्रोफेसर नीलोफर अफ़ज़ल के मार्गदर्शन के लिए आभार व्यक्त किया।