युवा पियानोवादक अरविंद वर्मा ने पहले एल्बम ‘मेलनकोलिक रैप्सोडी’ के विमोचन पर हैबिटाट सेंटर के अमलतास सभागार में आयोजित संगीत संध्या में अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। एसोसिएटेड बोर्ड आॅफ रॉयल स्कूल आॅफ म्यूजिक के आठवें ग्रेड के बीस वर्षीय पियानो वादक अरविंद अभी डिप्लोमा की तैयारी कर रहे हैं। उन्होंने अपनी पहली संगीत कृति कुल छह साल की आयु में रची और दस साल के होने पर उन्होंने पियानो सीखना शुरू किया। सांगीतिक पारिवारिक पृष्ठभूमि और अपने बाबा की प्रेरणा से उन्होंने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत भी सीखा है।

उनके एकल पियानोवादन में भीमिली और ऋतेश प्रसन्न की बांसुरी के साथ जुगलबंदी भी था। इस शाम विमोचित एल्बम के अंश की शुरुआत उन्होंने अपने एकल पियानोवादन में ‘रिफ्लेक्टिंग’ से किया जो राग यमन और पूरिया कल्याण से प्रेरित था। एल्बम का शीर्षक ‘मेलोन्कोलिक रैप्सोडी’ में चारुकेशी और नटभैरव की सुगंध थी। उन्होंने अपने एकल पियानो-वादन में लोरी ‘लल्लाबाई ऐट मिडनाइट’ और मूनलिट शैडो शीर्षक रचनाएं भी बजाई।

मध्यांतर के बाद उनके साथ घरानेदार बांसुरीवादक ऋतेश प्रसन्ना जुगलबंदी के लिए बांसुरी पर थे। इनका संबंध बनारस घराने की कई पीढ़ियों से है। बनारस घराने के मशहूर बांसुरी और शहनाई-वादक पं राजेंद्र प्रसन्ना के सुपुत्र और शिष्य ऋतेश के साथ अनिरुद्ध एक युगल-वादन का एल्बम भी तैयार कर रहे हैं। इन दोनों प्रतिभासंपन्न युवा कलाकारों की बजाई पहली रचना राग जोग पर आधारित थी जिसमें वे बारी-बारी से अपनी बात कहते हुए आपसी संवाद कायम किए हुए थे।

दूसरी रचना अनिरुद्ध ने छह साल की आयु में तैयार किया था। इसके बाद बजाई जुगलबंदी क्रमश: राग चारुकेशी, दुर्गा और हंसध्वनि पर आधारित थीं। कार्यक्रम की खास बात आमतौर पर देखे सुने जाने वाले पाश्चात्य संगीत के कार्यक्रमों से सर्वथा अलग थी। यहां कलाकार अपनी उद्भावनाओं से जुड़कर मन की बात कह रहे थे।

अनिरुद्ध अपनी इस सृजनशीलता का प्रमाण इससे पहले भी दिल्ली सरकार के रूपांतर प्रोजेक्ट के तहत सर्व शिक्षा अभियान के शीर्षक गीत रचकर या एनजीओ म्यूजिक-बस्ती के संगीत संयोजक के रूप में दे चुके हैं। पियानो नियमत: शीट पढ़ कर यानी स्वरलिपि देखते हुए बजाया जाता है पर अनिरुद्ध केवल संगीत सुनकर बजा लेते हैं।