स्व.वसंत साठे राजनेता से पहले एक सहृदय संगीत प्रेमी थे। शास्त्रीय संगीत सभाओं में उनकी उपस्थिति एक अनकही अनिवार्यता थी। कोजागिरी (शरत) पूर्णिमा पर उनके निवास पर आयोजित महफिलों को कौन भूल सकता है! उनके 91वें जन्मदिवस पर इंडिया इंटरनेशनल सेंटर सभागार में आयोजित संगीत सभा में लाल कृष्ण आडवाणी से लेकर सामान्य संगीत प्रेमी तक जुटे और उन्हें भरे मन से याद किया। आमंत्रित शास्त्रीय गायिका विदुषी श्रुति सडोलीकर ने भी खास तौर से उन्हें ही ध्यान में रख कर एक-एक चीज का चुनाव किया था।

लखनऊ के भातखंडे संगीत विश्व विद्यालय की उपकुलपति विदुषी श्रुति सडोलीकर जयपुर अतरौली घराने की प्रामाणिक गायिका हैं। संगीत नाटक अकादमी सम्मान से नवाजी जा चुकी श्रुति अपने घराने की ख्याल गायकी के अलावा उपशास्त्रीय संगीत की ठुमरी, दादरा, भजन, गजल और नाट्य संगीत जैसी विधाओं में भी निष्णात हैं। इस शाम अपनी संगीतांजली में उन्होंने साठे साहब की पसंदीदा चीजे सुनाईं। शास्त्रीय संगीत में समय के विधान को ध्यान में रखते हुए अपने कार्यक्रम का शुभारंभ उन्होंने राग यमन की एक पारंपरिक बंदिश से किया। एकताल में विलंबित रचना विधिवत आलाप बढ़त,बोलालाप, तानों आदि से सजाकर पेश करने के बाद छोटे ख्याल के तौर पर स्वरचित बंदिश पेश की।

इसके बाद राग तिलक-कामोद की लोकप्रिय बंदिश, मराठी नाट्य संगीत, ठुमरी, दादरा इत्यादि की सुरीली विविधता अर्पित करने के बाद फरमाइश पर बेगम अख्तर की नई मशहूर गजल एकदम उन्हीं के आवाज-ओ-अंदाज में पेश कर सबको चकित कर दिया। इसके बाद एक होरी गाकर भैरवी भजन से उन्होंने अपनी भावभींनी स्वरांजलि संपन्न की तो तालियों से सभागार गूंज उठा। श्रोताओं में बहुतों को अनायास ही श्रुति सडोलीकर की एक ऐसी की शाम याद आ गई जो स्वयं वसंत साठे ने कोजागिरी पूर्णिमा के दिन राजाजी मार्ग स्थित अपने निवास पर आयोजित की थी। उस दिन भी श्रुती ने ऐसे ही सुरों की वर्षा की थी और मानों शरत्पूर्णिमा से झरते अमृत कणों की तरह सबने उन सुरों का आचमन किया था।