मोक्ष कहें या शांति। आप इसे कोई और भी नाम दे सकते हैं। लेकिन यह जितना मृत व्यक्ति के लिए महत्त्वपूर्ण होता है, उतना ही जीवित इंसानों के लिए भी मायने रखता है। पूजा-हवन कर हम मान लेते हैं कि दिवंगत आत्मा को शांति प्राप्त हो गई होगी। जीवित व्यक्ति के लिए तो ऐसा कुछ नहीं होता। वह तो जीते जी ही शांति की खोज में भटकता रहता है। विशेष रूप से यदि वह किसी ग्लानि का शिकार हो।
यह कहानी है केदार की। अनाथ बच्चा केदार किसी दिन सड़क पर रुके वाहन साफ करता, तो किसी दिन लोगों के जूते। अक्सर उसे भूखे पेट ही सोना पड़ता था। कई बार उसका मन किया कि भीख मांगकर खा ले। कई बार उसके आस-पास रहने वाले उसी के जैसे लोग उसे थोड़ा बहुत अपने साथ मिल बांटकर खाने को कहते, क्योंकि वे सभी लोग बहुत अच्छे से जानते थे कि भूख क्या चीज होती है। लेकिन केदार हमेशा उनसे यही कहता, ‘मुझे खाना नहीं चाहिए। कहीं कोई काम मिल रहा हो तो बताओ!’ एक दिन एक चाय की दुकान पर ग्राहकों को चाय देने और बर्तन आदि साफ करने का काम उसे मिल गया।
उसने अपनी कड़ी मेहनत और ईमानदारी से अपने मालिक का दिल जीत लिया। फिर एक दिन मालिक ने उससे पूछा-‘तुझे क्या चाहिए? कभी तो अपने मुंह से कुछ मांग लिया कर बेटा, ग्राहक भी जब कभी तेरे से खुश होकर तुझे कुछ देते हैं तो तू साफ मना कर देता है’। ‘मुझे कोई कुछ दे, यह अच्छा नहीं लगता बाबा। मैं कोई मंगता थोड़े ही हूं’।
यह सुनकर बाबा को हंसी आ गई और उन्होंने कहा, ‘जैसा तेरा नाम, वैसा ही तेरा व्यवहार है। एकदम भोला! कुछ भी तुझे बिन मांगे मिले उसे लेने में कोई बुराई नहीं है। वह भीख नहीं, तेरा हक है। तेरी मेहनत के बल पर मिल रहा है न कि तूने उसे किसी से मांगा है। मैं तुझे कुछ देना चाहता हूं और वो कोई दया या भीख नही है मेरे बच्चे, तेरा अधिकार है’। ‘अधिकार…! उसका तो आप मुझे पैसा देते है ना…?’ ‘तेरा बाबा होने के नाते मेरा भी मन करता है कि मैं भी तुझे कुछ दूं’।
बहुत देर तक केदार अपने चाय वाले बाबा का चेहरा देखता रहा और बहुत सोचने के बाद बोला, ‘अच्छा यदि मैं तुमसे कुछ मांगूं तो क्या तुम मुझे सच में दे सकोगे..?’ ‘माना की मैं भी कोई रईस नहीं हूं। लेकिन अपने बच्चे की मांग पूरी कर सकूं, इतना तो सामर्थ्य रखता हूं। बता तुझे क्या चाहिए?’
‘बाबा मैं पढ़ना चाहता हूं। दूसरे बच्चों की तरह स्कूल जाना चाहता हूं।’ ‘बस इतनी सी बात? मैं तो समझा जाने क्या मांग लेगा तू मुझ से’। ‘यह इतनी सी बात नहीं है बाबा’। केदार ने उदास मन से कहा। ‘यदि मैं स्कूल जाने लगा तो दुकान पर काम नहीं कर सकूंगा। फिर तुम्हारा भी कितना नुकसान हो जाएगा, और मैं ऐसा किसी कीमत पर नहीं होने देना चाहता। बाबा ने केदार से कहा, ‘तुझे दुकान की चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। तेरे जैसे और भी न जाने कितने केदार होंगे जिन्हें मेरी जरूरत है वह कर लेंगे दुकान का काम, तू तो अपनी पढ़ाई पर ध्यान लगा’।
समय बीतने के साथ 12-13 साल का केदार पढ़-लिखकर इतना बड़ा हो गया कि अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद एक अच्छी कंपनी में अच्छे पद पर जा पहुंचा। आज उसका कद उसके बाबा से ऊंचा हो चुका है और बाबा की कमर झुक चुकी है। फिर एक दिन उसके जीवन में एक लड़की आई जिसका नाम पार्वती था। उसने केदार के व्यवहार के पीछे छिपे उसके सोने जैसे दिल को देखा, परखा, समझा। दोनों में प्रेम हुआ। पार्वती भी केदार के साथ उसी कंपनी में काम करती थी। लड़की के परिवार को यह रिश्ता मंजूर नहीं था क्योंकि केदार एक अनाथ व्यक्ति था।
दोनों ने कोर्ट में जाकर शादी कर ली। बाबा को केदार की वजह से कोई परेशानी न हो, इसलिए अब वह अपनी पत्नी के साथ अलग घर में रहने के लिए चला गया था। दोनों बहुत खुश थे। उधर पार्वती की मां को कुछ रिश्तेदारों ने मिलकर केदार और उनकी बेटी के खिलाफ भड़काना प्रारंभ कर दिया। बात इतनी बिगड़ गई कि उन लोगों ने केदार को जान से मारने का मन बना लिया।
इधर केदार को पार्वती ने बताया कि वह बहुत जल्द ही पिता बनने वाला है। अब केदार अपनी पत्नी का खूब ध्यान रख रहा था।एक दिन दोनों अपनी होने वाली संतान के साथ आने वाले जीवन की सुनहरी कल्पना करते हुए अस्पताल से निकल ही रहे थे कि केदार को याद आया, वह गाड़ी की चाबी तो डाक्टर के केबिन में ही भूल आया था।
उसने पार्वती को कार के पास जाने के लिए कहा और खुद चाबी लाने अंदर चला गया। कुछ ही देर में जब वो वापस आ रहा था, तो उसने दूर से ही गाड़ी खोलने के लिए चाबी के छल्ले में लगे बटन को दबाया ताकि पार्वती उसे खोलकर उसमें बैठ सके। जैसे ही उसने बटन दबाया, एक जोर का धमाका हुआ और सब खत्म हो गया।
केदार को जब होश आया तब तक उसकी दुनिया उजड़ चुकी थी। उसकी आंखों के सामने वह विस्फोट अब भी बार-बार लगातार हो रहा था। उसका मानसिक संतुलन हिल गया था। उसकी समझ में यह बात कभी आई ही नहीं कि ऐसा सच में हुआ है। बाबा और उनके परिवार ने मिलकर पार्वती के अंतिम संस्कार के कर्मकांड किए। तभी किसी ने केदार को बताया कि, ‘इस सब के जिम्मेदार पार्वती के परिवार वाले हैं, जो वास्तव में मारना केदार को चाहते थे, लेकिन शिकार खुद उनकी अपनी बेटी हो गई।
केदार की आंखों में ज्वाला भड़क उठी। वह क्रोध से तमतमाता हुआ सीधा पार्वती के घर पहुंचा, जहां खुद उसकी मां शोक सभा में बैठी विलाप कर रही थी और रोते हुए अपनी मरी हुई बेटी की तस्वीर के आगे क्षमा मांग रही थी। केदार ने क्रोध की अग्नि में जलते हुए कहा, ‘तूने अपनी सगी बेटी की जान सिर्फ इसलिए ली कि उसने मुझ अनाथ से प्रेम किया था।
एक मां होकर तूने दूसरी मां की जान ले ली। यह सुन कर पार्वती की मां के पैरों तले जमीन खिसक गई। तभी पुलिस वहां आ पहुंची और पार्वती की मां के साथ-साथ उसके परिवार के अन्य लोगों को भी गिरफ्तार कर ले गई।
केदार अपनी पत्नी के दुख में पूरी तरह पागल सा हो गया। कभी अपने आप से बातें करता, तो कभी सड़क पर खड़ी किसी भी गाड़ी को देखकर चिल्लाने लगता, लोगों को रोकता फिरता कि उसमें मत बैठना उसमें बम है मर जाओग। न उसे अब खाने का होश रहा, न पहनने का, न नहाने का, मैले पुराने फटे हाल कपड़े पहने बढ़ी हुई दाढ़ी मूंछों के साथ बिखरे बाल लिए अक्सर वह उसी क्लीनिक के बाहर लोगों को आते-जाते देखता रहता और अपनी अदृश्य पार्वती से घंटों बातें करता रहता।
उसकी पार्वती को तो शायद मोक्ष मिल भी गया होगा। लेकिन जीते जी केदार की जिंदगी से शांति हमेशा के लिए खत्म हो चुकी थी जो अब शायद उसकी मृत्यु के बाद ही उसे नसीब होगी।
