शास्त्रीय नृत्य के क्षेत्र में गुरु के साथ शिष्य की प्रस्तुति की परंपरा है। इसके जरिए एक तरफ शिष्य मंच प्रस्तुति की बारीकियों से परिचित होता है, तो दूसरी तरफ उसमें आत्मविश्वास आता है। इसी परंपरा का निर्वाह कथक नृत्यांगना विधा लाल और ओड़िशी नृत्यांगना किरण सहगल बखूबी कर रही हैं। पिछले दिनों नृत्य समारोह में कथक नृत्यांगना वर्षा दासगुप्ता और ओडिशी नृत्यांगना मध्यमा के नृत्य को देखकर, कुछ ऐसा ही प्रतीत हुआ।
अलायंस फ्रांसेस के सभागार में समारोह आयोजित था। इसमें वर्षा दासगुप्ता ने अपने नृत्य का आरंभ शिव स्तुति से किया। शिव स्तुति ‘महादेव शंकर जटाजूट नीलकंठ’ में वर्षा ने शिव के रूप का निरूपण हस्तकों और भंगिमाओं से किया। नृत्य के क्रम में कवित्त ‘पंचबदन त्रिलोचन भष्मांग पार्वतीपति शिव हर-हर’ भाव का चित्रण सुंदर था। वहीं नृत्य में ‘धा कित धा’ और तीन धा से युक्त तिहाइयों का प्रयोग संतुलित था।
नृत्य के अगले अंश में वर्षा ने तीन ताल में शुद्ध नृत्य पेश किया। उन्होंने विलंबित लय में थाट, उठान, चक्क्रदार तिहाई, परण पेश की। वहीं, उन्होंने परण ‘धा किट धा गिन धा धा’ में सोलह चक्कर का प्रयोग किया। एक अन्य तिहाई में ‘नाधिंना’ का अंदाज निराला था। उन्होंन द्रुत लय में तिहाइयों और परण आमद पेश किया।
अपने नृत्य में कथक नृत्यांगना वर्षा दासगुप्ता ने अभिनय को भी शामिल किया। अभिनय अंश में उन्होंने ‘राधाकान्हो’ नृत्य रचना को पेश किया। यह रचना राग मालकौंस और रूपक ताल में पिरोई गई थी। इसकी नृत्यरचना कथक नृत्यांगना विधा लाल व गुरु गीताजंलि लाल ने की थी। ‘अधरांग राधा कन्हो’ और कथक नर्तक अभिमन्यु लाल की रचना को आधार बनाकर, नृत्य पेश किया गया। वर्षा ने राधा और कृष्ण के भावों को मनोरंजक तरीके से पेश किया। नृत्य में घूंघट, गागर, बांसुरी के गीतों का प्रयोग मनोरम था। संचारी भाव की प्रस्तुति में परिपक्वता दिखी।
दरअसल, वर्षा के लिए यह समय बहुत चुनौतीपूर्ण है। उनकी गुरु विधा लाल अपने करियर के उठान पर हैं। यह अच्छा है कि वर्षा अपनी गुरु के सानिध्य में हैं और उनके साथ भी लगातार काम कर रही हैं। दूसरी ओर उन्होंने अपनी अलग पहचान भी बनाने की कोशिश कर रही हैं। उनकी इस कोशिश में उन्हें अपने गुरु का सहयोग मिल रहा है जो एक बड़ी बात है।
अलाएंस फ्रांसेस में ही ओडिशी नृत्यांगना किरण सहगल की शिष्या मध्यमा ने भी ओड़िशी नृत्य पेश किया। मध्यमा ने मंगलाचरण से नृत्य आरंभ किया। रचना ‘कदाचित कालिंदी तीरे’ में मध्यमा ने कृष्ण की वंदना की। दूसरी पेशकश पल्लवी थी। यह राग हंसध्वनि और दस मात्रा के झंपा ताल में निबद्ध थी। इसकी परिकल्पना गुरु किरण सहगल ने की थी। विप्रलब्ध नायिका के भावों को अष्टपदी में साकार किया गया। इसके लिए जयदेव की अष्टपदी ‘रासे हरि विहित विलासम’ का चयन किया गया। यह राग बैरागी और जती ताल में निबद्ध था। उन्होंने अपने नृत्य का समापन गुरू मायाधर राउत की नृत्य रचना किया। यह रचना ‘जागो महेश्वर’ अनूठी पेशकश थी। यह राग तैलंग में निबद्ध थी। मध्यमा प्रतिभावान नृत्यांगना है, इसकी झलक उनकी प्रस्तुति में दिखी।