शास्त्रीय नृत्य जगत में गुरु शिष्य परंपरा का अपना महत्व है। इसके जरिए वरिष्ठ पीढ़ी अपनी विरासत शिष्य-शिष्याओं को सौंपते हैं। कुचिपुडी के वरिष्ठ गुरु राजा, राधा और कौशल्या रेड्डी ने राजधानी दिल्ली में इस नृत्य शैली को लोकप्रिय बनाया। साथ ही अपनी विरासत को यामिनी और भावना रेड्डी को सौंपा है। युवा कुचिपुडी नृत्यांगना भावना रेड्डी ने अपनी प्रतिभा और मेहनत के जरिए कला जगत में विशेष पहचान बनाई है। उन्हें संगीत नाटक अकादमी की ओर से उस्ताद बिस्मिल्ला खां युवा पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।

पिछले दिनों इंडिया हैबिटेड सेंटर में भावना रेड्डी ने नृत्य रचना ‘ओम शिवाय’ पेश की। नृत्यांगना भावना रेड्डी ने छोटी सी उम्र से अपने गुरु और माता-पिता कौशल्या और राजा रेड्डी के साथ अलग-अलग नृत्य रचनाओं में नृत्य करना शुरू कर दिया था। वे बताती हैं कि उन्होंने पांच साल की उम्र में ही बाल राम, कृष्ण व प्रहलाद की भूमिका में नृत्य करना शुरू कर दिया था। उन्हें नृत्य करना अच्छा लगता था। आज नृत्य उनकी सांसों की तरह तन और मन का हिस्सा बन चुका है। उनकी हर सांस में लय-ताल समाए हुए हैं। वे नृत्य के बिना अपने जीवन की कल्पना नहीं कर सकती हैं। नृत्य ने उनकी जिंदगी को संपूर्णता प्रदान की है।
नृत्य समारोह में भावना रेड्डी ने भगवान शिव को आधार बनाया था। नृत्य रचना ‘ओम शिवाय’ की पराकाष्ठा शिव तरंगम थी। यह स्वामी नारायण तीर्थ की रचना ‘शिव शिव शिव भव भव शरण’ पर आधारित थी। यह राग सौराष्ट्र व रेवती और आदि ताल में निबद्ध थी।

भगवान शिव के रूप के निरूपण के साथ-साथ विभिन्न ताल आवर्तनों पर पैर का काम पेश किया। उन्होंने अष्टमूर्ति पेश किया। यह राग अहीर भैरवी और आदि ताल में निबद्ध था। वहीं अगली पेशकश शिव का नृत्य था। शिव के नटराज रूप का निरूपण इसमें किया गया। यह राग परज और आदि ताल में निबद्ध था। इस नृत्य में भावना ने दर्शाया कि शिव के पैर में पांच ताल विराजमान हैं। यही सर्जक, संरक्षक, विध्वंसक, आत्मा का निवास स्थान और मुक्ति प्रदायक है। शिव की जटा में गंगा विराजित हैं और उनके चेहरे से नव रस झलकता है।

नृत्यांगना भावना ने पद वरणम पेश किया। यह तिरूवायवुर त्यागराज की रचना पर आधारित थी। रचना ‘स्वामिनी राममनावे सरसक्षीर’ राग केदारम और रूपकम ताल में निबद्ध थी। नायिका भगवान शिव को अपना स्वामी मानती है। वह उन्हें ‘समनलोलोदू’ कह कर पुकारती है। फिर, सखी से शिव को अपने पास लाने का आग्रह करती है। भावना ने अभिनय के जरिए नायिका के मानस और मदन अवस्था को दर्शाया। नृत्यांगना भावना ने अपनी मेहनत और लगन से नृत्य को परिपक्व बनाया है। वे एक समर्पित कलाकार हैं। यह उनके नृत्य से सहज ही दिखता है।