गुरु गंगाधर प्रधान ने ओड़ीशी की गुरु-शिष्या परंपरा को काफी दुरुस्त किया था। उनकी शिष्या अनिता बाबू ने उसी परंपरा का अनुसरण किया। पिछले दिनों इसी की झलक नृत्य समारोह में दिखी। इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित समारोह में उनकी शिष्याओं ने नृत्य पेश किया। ओड़ीशी नाट्यशाला की ओर से समारोह का आयोजन किया गया। समारोह का आरंभ मंगलाचरण से हुआ। इसमें उन्होंने जगन्नाथ भगवान और गुरु की वंदना को दर्शाया। ‘कदाचित कालिंदी तीरे’ व ह्यजगन्नाथ स्वामी नयन पथगामिह्ण पर आधारित पेशकश में कृष्ण के अलग-अलग चरित्रों को निरूपित किया। दूसरी पेशकश शुद्ध नृत स्थाई नृत्य थी। इस नृत्य में लयात्मक पद, हस्त व अंगसंचालन के साथ अलस कन्याओं का सुंदर निरूपण था। दर्पणा, चामरा, नर्तकी, नुपुरपादिका, मरदला अलस कन्याओं की भंगिमाओं को त्रिभंगी भंगिमाओं के जरिए दर्शाया।
नृत्यांगनाओं का आपसी तालमेल और संतुलन बेहतरीन था। साथ ही, उनकी तैयारी और मेहनत हर प्रस्तुति में दिखी। इससे उनके लगातार रियाज का पता चल रहा था। उनकी अगली प्रस्तुति झिंझोटी पल्लवी थी। यह राग झिंझोटी और त्रिपुट ताल में निबद्ध था। इसमें नृत्यांगनाओें ने मोहक अंग संचालन पेश किया। इन प्रस्तुतियों में शिरकत करने वाली शिष्याएं थीं : अनुष्का, आद्या, तनिष्का, कुहू, उदिता, महिमा, अनन्या, शरण्या, नताशा, मुस्कान, शताब्दी, विजयिनी, अमृता व स्पृहा।
ओड़ीशी नृत्यांगना अनिता बाबू ने समारोह में गुरु गंगाधर प्रधान के नृत्य रचनाओं को पेश किया। गुरु गंगाधर प्रधान की समूह नृत्य रचनाएं काफी प्रभावकारी और सुंदर होती थीं। उन्हीं के नक्शे कदम पर चलते हुए अनिता बाबू ने अपनी बड़ी शिष्याओं के साथ नन्ही शिष्याओं को जिस तरह से शामिल किया वह काबिल-ए-तारीफ है। शायद, यह गुण उन्होंने अपने गुरु से ही सीखा है।
समारोह की अगली पेशकश अभिनय थी। यह उड़िया गीत ह्यन जा जमुना सखी रेह्ण पर आधारित थी। अभिनय की इस प्रस्तुति में नृत्यांगना उदिता और स्पृहा दता ने राधा और सखी के भावों को दर्शाया। संचारी भाव और मुख व आंगिक अभिनय के जरिए उन्होंने प्रसंग को व्याख्यायित किया। सखी राधा से कहती है कि वह यमुना किनारे नहीं जाए क्योंकि वहां श्यामल सलोने व मोहक कृष्ण उनका इंतजार कर रहे हैं। नृत्यांगनाआें का अभिनय उम्र के अनुरूप सहज और सरल था। नृत्य रचना कोणार्क कांति उनकी अगली पेशकश थी। यह राग भोपाली व शंकराभरणम और एक व खेमटा ताल में निबद्ध थी। कोणार्क के सूर्य मंदिर की दीवारों पर उत्कीर्ण अलस कन्याओं की सुंदर भंगिमाओं को इस प्रस्तुति में पिरोया गया था। इस प्रस्तुति को उदिता, महिमा, अनन्या व अमृता ने पेश किया। उन्होंने मोक्ष नृत्य से अपनी पेशकश का समापन किया।
पिछले दिनों कुचिपुड़ी नृत्यांगना मीनू ठाकुर की शिष्या बबीता रंगप्रवेशम समारोह संपन्न हुआ। समारोह के दौरान नृत्य करते हुए नृत्यांगना बबीता आत्मविश्वास से भरी नजर आईं। वास्तव में, आंध्रपदेश की शास्त्रीय नृत्य शैली कुचिपुड़ी को आसाम निवासी बबीता का सीखना सांस्कृतिक संबंध के दृढ़ करने की दिशा में अच्छे पहल के रूप में भी देखा जा सकता है।
इस तरह के प्रयासों से देश की एकता को बल मिलता है। साथ ही, युवा नृत्यांगना की कला प्रतिभा को देख कर उनसे उम्मीद जागती है कि वह कला को संरक्षित करने का प्रयास करेंगी।