स्व. शांति शर्मा की आठवीं पुण्यतिथि पर इस बार का श्रद्धांजलि समारोह हैबिटाट सेंटर के अमलतास सभागार में उनके शिष्य मंजीत सिंह ने आयोजित किया। सिंह आजकल केंद्र में संगीत शिक्षक भी हैं। इस श्रद्धांजलि सभा की यह रवायत रही है कि पहले स्वयं शांति के शिष्यों में से कोई अपने गुरु को स्वरांजलि अर्पित करता है, उसके बाद अतिथि कलाकार का कार्यक्रम होता है।

शांति शर्मा वर्तमान पीढ़ी में उस्ताद अमीर खां की विशिष्ट गायन की यशस्वी प्रतिनिधि थी। वे जितनी गुणी गायिका थी उतनी ही समर्पित गुरु भी थी। संगीत से सरोकार रखने वालों को इस बात का भी संतोष था कि श्रीराम भारतीय कलाकेंद्र में पं. अमरनाथ अपने बाद शिक्षा की बागडोर अपनी शिष्या शांति के हाथों में थमा गए हैं। उनका असमय निधन उनके प्रशंसकों और शिष्यों के लिए स्तब्ध कर देने वाला आघात था। शांति शर्मा की याद में उनका शिष्य वर्ग हर साल उनकी बरसी के मौके पर एक श्रद्धांजलि समारोह आयोजित करता है।

शास्त्रीय संगीत की इस सभा का शुभारंभ उनकी शिष्या रमा सुंदर रंगराजन के शास्त्रीय गायन से हुआ। कर्नाटक शास्त्रीय संगीत की पृष्ठभूमि से आकर हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत को रमा ने जिस सहजता से अपना लिया है इसके लिए उनकी प्रशंसा करनी पड़ेगी। विदुषी शांति शर्मा की शिष्या रमा ने उनके निधन के बाद इसी घराने के प्रतिनिधि गायक और गुरु पं तेजपाल सिंह से सीखना जारी रखा। इस शाम रमा ने अपनी प्रस्तुति के लिए सायंकालीन राग यमन चुना और इस राग का मशहूर बड़ा खयाल ‘कह सखी कैसे कि कहिए’ पेश करने के बाद शांति के प्रिय तराने से उन्हें सुरीली श्रद्धांजलि दी।

ध्रुपद शैली के जाने-माने गायक पं. उदय भावलकर इस शाम के अतिथि कलाकार थे। कोलकाता के आइटीसी संगीत गुरुकुल में इस शैली का अध्यापन कर रहे भावलकर अपनी मननशील गायकी के लिए ख्यात हैं। राग जैजैवंती की सुविस्तृत आलाप सहित उन्होंने पहले चौताल में ध्रुपद ‘हूं चाहत पिया के मिलबे को’ को डूब कर गाया। उनकी जैजैवंती का रंग आमतौर पर प्रचलित फैयाज खां वाली रूढ़ हो चुकी जैजैवंती से जुदा था। यहां शुद्ध गांधार से कोमल गांधार पर उतरने का उनका संयमित कौशल मार्मिक था। इस संजीदा पेशकश के बरक्स अगले राग हमीर के धमार ‘अबीर गुलाल केसर रंग छिरकत बृज युवतिन को हरी पकर के धाय धाय’ में होरी धमार वाला उल्लास था। अपनी प्रभावी प्रस्तुति का समापन उन्होंने सूलताल के एक द्रुतलय ध्रुपद ‘नाद समुद्र अपरंपार’ से किया। पखावज पर उनका संतोषजनक साथ दिया रमेश चंद्र जोशी ने।