शाम ढलने पर
सुनूंगा आकाशवाणी पर
वही पुराना हवामहल,
बहलाऊंगा दिल अपना
भूले-बिसरे गीतों से,
जब मैं रिटायर हो जाऊंगा।

सो नहीं सका
बरसों से कभी पूरी रात,
तब चादर तान कर सोऊंगा
उठ जाऊंगा सुबह-सवेरे
निकल जाऊंगा पार्क।
किसी पेड़ के नीचे
मैं भी डाल आऊंगा
चींटियों के लिए दाना,
जब मैं रिटायर हो जाऊंगा।

याद करूंगा-
घर-दफ्तर से लेकर
जीवन में की गर्इं गलतियां
याद आएंगी सहयोगियों की
कारगुजारियां और बदतमीजियां
लेकिन मैं उन सभी को
दिल से करूंगा माफ,
जब मैं रिटायर हो जाऊंगा।

निकलूंगा फिर से बाजार
खरीदूंगा हरी-भरी तरकारियां
करूंगा मैं भी मोल-भाव,
चंद पैसे बचा कर
खुश हो जाऊंगा,
दूध-डबलरोटी का
रखूंगा हर दिन हिसाब,
जब मैं रिटायर हो जाऊंगा।

तब वाट्सऐप पर
नहीं करूंगा गपशप
दोस्तों को सीधे करूंगा कॉल
या फिर चला जाया करूंगा
कभी-कभी उनके घर,
अपने सुख की घड़ियां बांट
उनके दुख बटोर लाऊंगा,
जब मैं रिटायर हो जाऊंगा।

यहीं कहीं पड़ा होगा
मेरा पुराना डीएसएलआर
खींचूंगा फुर्सत में मैं भी
तस्वीरें पक्षियों की,
उड़ान भरते फीनिक्स को
आंखों में कर लूंगा कैद,
उसकी तरह राख होकर भी
खड़ा करूंगा बिखर गए
अपने सपनों का महल,
जब मैं रिटायर हो जाऊंगा।

बेटा जब छोड़ जाएगा अकेला
नहीं होगी बेटी भी पास,
तब मैं अपनी कविताओं की
बूढ़ी हो चुकी नायिका से
मिलने जाऊंगा,
वह खिलाएगी मुझे
सभी वो पकवान
जो बनाती रही मेरे लिए बरसों
पर खाती रही अकेली।
अब साथ बैठ कर
चाकलेट वाली कॉफी
पीते हुए पूछुंगा उसके
बेटे और पति का हाल,
जब मैं रिटायर हो जाऊंगा।

पढ़ी नहीं बरसों-बरस
सेल्फ में पड़ीं किताबें,
उनमें से किसी एक को
नीली-हरी फाइल में दाब
निकल जाऊंगा ठीक नौ बजे,
कहीं मिल गई है नौकरी
ऐसा कह कर
घर वालों को बरगलाऊंगा,
जब मैं रिटायर हो जाऊंगा।

सूरज ढलते ही मैं
समोसे-जलेबियां लेकर
लौट आऊंगा घर,
जैसे लौट आता है पंछी
जतन से बनाए घोंसले में।
चैन से बैठ कर पियूंगा
दूध वाली कड़क चाय।
करूंगा फिर से इंतजार
हवामहल और छायागीत का,
बीते हुए कल की छाया में
खुद को तलाशूंगा बार-बार-
मैं क्या था और क्या हो गया
आंखें बंद कर सोचूंगा,
जब मैं रिटायर हो जाऊंगा।