पंडित बिरजू महाराज के जन्मदिवस के मौके पर हर साल कलाश्रम की ओर से दिल्ली में वसंतोत्सव का आयोजन किया जाता है। उत्सव के दौरान वरिष्ठ भरतनाट्यम नृत्यांगना यामिनी कृष्णमूर्ति को गुरु अच्छन महाराज कला ज्योति सम्मान से सम्मानित किया गया। 26 फरवरी से शुरू हुए समारोह में नर्तक दीपक महाराज ने कथक नृत्य पेश किया। इनके अलावा, गुरु शंभू महाराज अकादमी के शिष्य-शिष्याएं और लूना पोद्दार गु्रप के कलाकारों ने कथक नृत्य पेश किया।

कमानी सभागार में आयोजित वसंतोत्सव की दूसरी शाम कोलकाता के कथक नर्तक संदीप मलिक और उनके साथी कलाकारों ने समां बांध दिया। युवा कथक नर्तक संदीप मलिक की नृत्य परिकल्पना नृत्य कथा थी। नटराज शिव और नटनागर कृष्ण के माध्यम से उन्होंने कथक नृत्य के तांडव और लास्य पक्ष का मोहक विवेचन पेश किया। उन्होंने रचनाआें-‘धिनक-धिनक धिन डमरू बाजे’, ‘डिमिक-डिमिक डमरू बाजत शिव रौद्र रूप धरे’ व ‘देव देव महादेव देव’ के माध्यम से शिव के रूप और रौद्र रस का निरूपण किया। वहीं कृष्ण के लास्य रूप को दर्शाने के साथ रास नृत्य की झलक को पेश किया। इसके लिए रचनाओं-‘नटवर नाचत संगीत गीत विविध भांति गत नई-नई’, ‘दूजा नाचे लास्य शृंगार रूप धर’, ‘वृंदावन में रास रचावत’ व ‘आज शरद चंद्र पवन मंद्र’ का चयन किया गया था। उन्होंने कथक के दायरे में रहकर मोहक टुकड़े, तिहाइयों, परणों व गतों को नृत्य में सरस अंदाज में पिरोया। नृत्य की शुद्धता के साथ संगीत की मीठास ने उनकी प्रस्तुति को जानदार बना दिया।

अगली पेशकश में कथक नृत्यांगना गौरी दिवाकर और साथी कलाकारों ने नृत्य रचना मुग्धा पेश किया। प्रेम और लज्जा के भावों की प्रधानता मुग्धा नायिका की पहचान है। मुग्धा नायिका में चंचलता और संकोच के भाव प्रगाढ़ होते हैं। नृत्यांगना गौरी दिवाकर ने नायिका राधा के जरिए भावों का विवेचन प्रस्तुत किया। उन्होंने ‘जित देखत तुम अंग दृग’, ‘प्रेम भरे प्रीत भरे’, ‘सुंदर सुजान के मिलन’ और तराने के जरिए राधा को मुग्धा नायिका के तौर पर दर्शाया। उन्होंने आंखों के जरिए नायिका के भावों को सुंदर व मनोरम अंदाज में चित्रित किया। वहीं, हस्तकों के जरिए भौंरे और फूल को प्रतीक के तौर पर दर्शाना, उनके नृत्य को और मार्मिक बना दिया। उन्होंने पैर के दमदार काम, तिहाइयों, टुकड़ों, चक्करों व दमदार लड़ियों से अपने नृत्य को प्रभावकारी बनाया।

लखनऊ घराने के नर्तक व गुरु पंडित राममोहन महाराज ने भजन से नृत्य आरंभ किया। स्वरचित भजन ‘हे बृजमोहन शरण में आया’ में भावों को दर्शाया गया। उन्होंने पंडित बिंदादीन महाराज की ठुमरी ‘काहे रोकत डगर नंदलाल मेरो’ के जरिए नायिका के भावों का बैठकी अंदाज में पेश किया। उन्होंने तीन ताल में उपज, थाट, उठान, राम के धनुष की गत, तिहाइयों और परण को नृत्य में समाहित किया। उनके साथ तबले पर पंडित बिरजू महाराज विशेष तौर पर मौजूद थे। अन्य संगत कलाकारों में तबले पर अखिलेश भट्ट, गायन पर जीतेंद्र सिंह, सितार पर चंद्रचूढ़ भट्टाचार्य, सारंगी पर गुलाम वारिस, बांसुरी पर धीरज पांडे व पढंत पर पंडित कृष्ण मोहन महाराज शामिल थे। समारोह में सुस्मिता चटर्जी और सौविक चक्रवर्ती ने नृत्य रचना मेलबंधन पेश किया। यह दो अंशों में विभाजित थी-यात्रा और अनंत प्रेम। उनका युगल नृत्य रवींद्रनाथ ठाकुर के गीत ‘भालो बाशी’ व ‘आमार प्राणो जहां जाए’ पर आधारित था।