जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: मां की गोद में आते ही शिशु हो जाता है बिल्कुल शांत और खुश, वात्सल्य के साथ-साथ स्पर्श स्पंदन की शक्ति

मां की गोद में आते ही शिशु बिल्कुल शांत और खुश हो जाता है। यह शिशु का मां के वात्सल्य…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: महज चारदिवारी में बने स्थान को घर नहीं कह सकते, उसके लिए छत यानी मान-मर्यादा का होना जरूरी

आज के दौड़ते-भागते समय में बहुत से लोगों ने घर को दरकिनार कर दिया है। जो काम पहले घरों से…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: गृहिणी का जीवन संघर्ष से लबरेज, बहुआयामी होता है संघर्ष, केवल एक ही नजर से देखते हैं लोग

संघर्ष वास्तव में अनंत है और संघर्ष करते हुए उम्मीद से परिपूर्ण व्यक्ति को इसीलिए अनमोल कहा जाता है। यह…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: जीवन में संतोष को अपनाना ही है सच्चा धन, नदियों से भी नहीं बुझती लालच की अंतहीन प्यास

एक समय था जब लोग अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए मेहनत करते थे, पर आज की दुनिया में चाहतें…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: अपने काम को खुशी-खुशी करने के लिए इस जगत में उत्साह ही एक बेहतरीन प्रेरक, उमंग और तरंग को रखता है बरकरार

समाज ही ऐसी गतिविधियों का मंच बन सकता है, जिसमें हमें अधिक से अधिक शामिल होना चाहिए, मगर अकेले और…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: किशोरावस्था अपने आप में उम्र का सबसे कठिन मोड़, नाजुक मन की उलझनों को समझना जरूरी

किशोरावस्था की उलझनों को समझना इतना भी आसान नहीं होता है। प्रत्येक माता-पिता को अपने बच्चे की प्रतिभा और अभिरुचि…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: बदलाव के दौर में गांवों के अस्तित्व का संकट, शहरी संस्कृति की तरफ बेतहाशा दौड़ रहे लोग

भले ही शहर के किराए के कमरों में छोटी- सी घुटन भरी जगह में रहना पड़े, सिर्फ शहर में रहने…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: हर पल विचारों के घेरे में ही रहते हैं हम, माहौल से अलग हटकर व्यावहारिक बुद्धि का करना चाहिए इस्तेमाल

हमें अपने जीवन की परेशानियों को बहाना नहीं बनने देना चाहिए। क्या हुआ अगर जिंदगी हमेशा न्यायपूर्ण नहीं रही! सवाल…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: भूलने की वजह से होते हैं ज्यादातर वैवाहिक झगड़े, स्मृति का लक्ष्य बुद्धिमान निर्णय लेने का मार्गदर्शन करना

यादें अतीत की खिड़की होती हैं जो लोगों को भविष्य के लिए तैयार होने में मदद करती हैं। यादें ही…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: निरंतरता और सफलता के बीच है गहरा संबंध, लक्ष्य को प्राप्त करना होता है आसान

निरंतरता किसी भी मंजिल या लक्ष्य तक पहुंचने के लिए एक अनिवार्य शर्त है। जब कभी और जहां कहीं निरंतरता…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: अच्छा श्रोता सिर्फ अपने लिए नहीं बल्कि दूसरों के लिए भी साबित होता है फायदेमंद, मनोचिकित्सक की निभाता है भूमिका

एक अच्छा श्रोता मनोचिकित्सक की तरह होता है, क्योंकि वह किसी के मन में दबी हुई कड़वी यादों, अनुभव और…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: भाग दौड़ भरी जिंदगी में लोगों के पास नहीं है प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का समय, भुगतना पड़ता है खुद ही खमियाजा

इस भागदौड़ भरी और अब डिजिटल होती दुनिया में क्या किसी के पास इतना समय बचा है कि वह प्रकृति…

अपडेट