जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: हमारी शिक्षा प्रणाली की सबसे बड़ी विडंबना, सीखने के बजाय नतीजों में हासिल अंकों को दिया जाता है अधिक महत्त्व

परीक्षा प्रणाली में सुधार करते हुए इसका स्वरूप कुछ इस तरह तैयार करना चाहिए कि यह विद्यार्थियों की समझ और…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: सफलता मिलने के साथ ही लोगों की आंखों में चुभने लगता है व्यक्ति, कामयाबी की वजह से बढ़ती जाती है दुश्मनों की तादात

इंसान जब कामयाबी के रास्ते पर चलता है, तब कई ताकतें उसे कमजोर करने में लग जाती हैं। अगर वह…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: भूली हुई गाथा बन रही सादगी का सौंदर्य, आधुनिकता की अंधी दौड़ में फैशन का खुमार

सादगी केवल एक व्यक्तिगत चयन नहीं है। यह एक सामूहिक दृष्टिकोण है, जो समाज और पर्यावरण के प्रति हमारी जिम्मेदारी…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: परंपराओं से दूर हो रहे लोग, शहरीकरण के दौर में लोक से हो रहा मोहभंग

गनीमत है कि अभी भी गांव की बची-खुची आबादी शहरी व्यामोह में नहीं फंसी। आज भी सुदूर गांवों या वनप्रांतर…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: जानवरों के प्रति होनी चाहिए संवेदना, संविधान में नागरिकों के साथ पर्यावरण और अन्य जीवों के संरक्षण की बात

यह बात समझने की है कि क्या सब पशुपालक अपने पशुओं के स्वभाव और उनके शरीर की तासीर को समझते…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: कठिन रास्तों के बाद मिली मंजिल का सुख सबसे अलग, वर्षों का संघर्ष दिलाती है सफलता

हमारे प्रयास चाहे छोटे हों, पर वे समय के साथ हमें बड़ी सफलता तक ले जाते हैं। इसीलिए हमें हर…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: मौन संघर्ष की चमक होती है जोरदार, सही दिशा में किए गए प्रयास से ही मिलती है सफलता

जिस तरह चमक के बिना सितारे, महक के बिना फूल, पानी के बिना नदियां, तार के बिना सितार, उसी प्रकार…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: जिज्ञासु होने से जानने-सीखने की विधा में रहते हैं क्रियाशील, ज्ञान रीढ़ की हड्डी की तरह करता है कार्य

जिज्ञासा से ज्ञान और ज्ञान से सामर्थ्यवान होकर व्यक्ति अपनी जीवन यात्रा को सफल कर पाता है। मनुष्य के भीतर…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: बदलते मौसम से तय होता है जीवन, रंगों की प्रकृति से समझा जा सकता है सत्ता परिवर्तन

सूर्य की पहली किरणें हर नए रंग से इस धरती पर रहने वाले जीव-जंतु, पौधे, वनस्पति को रोमांस से भर…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: कुछ पाने की चाह से नहीं होती सेवा, दिखावा करना जरूरी नहीं

सम्मान मानव समाज की गरिमा को बढ़ाते हैं। सच्चे और भले लोगों का सम्मान मानवीयता और इंसानियत का सम्मान है।…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: जुबान पर रखें अपना कंट्रोल, बना बनाया काम बिगड़ने का होता है डर

यह वाणी की मर्यादा है कि सत्य को भी इस प्रकार से बोलना चाहिए कि सुनने वाले को अप्रिय न…

अपडेट