Anxiety, Stress, Social Media, Status Symbol, Parenting Pressure
दुनिया मेरे आगे: चिंता में जीते-जीते दुनिया से चले जाओगे, बेहतर है आज को खुलकर जी लो; कल की फिक्र में आज को न गंवाएं

जनसत्ता अखबार के स्तम्भ ‘दुनिया मेरे आगे’ में आज पढ़ें निधि गोयल के विचार।

fake vs real life, societal hypocrisy
दुनिया मेरे आगे: खोखली मुस्कान और चमक-दमक का समाज, क्या हम भूल चुके हैं असली जीवन की सादगी?

जनसत्ता अखबार के स्तम्भ ‘दुनिया मेरे आगे’ में आज पढ़ें सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’ के विचार।

thought vs propaganda, media machinery, artificial intelligence
दुनिया मेरे आगे: कुछ छोड़ें, कुछ माफ करें और रिश्तों को मजबूत बनाएं – सच्चा सुकून चाहिए तो टेंशन से बाहर निकलें

जनसत्ता अखबार के स्तम्भ ‘दुनिया मेरे आगे’ में आज पढ़ें मुनीष भाटिया के विचार।

Philosophy of life, truth of death, incompleteness
दुनिया मेरे आगे: भरपूर जीने का दावा कोई क्यों नहीं कर पाता? सांसों का हिसाब और जीवन यात्रा का सच

आमतौर पर हर एक व्यक्ति के कुछ न कुछ सामाजिक सरोकार भी होते हैं। इन सरोकारों से जुड़ कर ही…

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दुनिया मेरे आगे: यादों के आईने में जीवन की यात्रा; हम कौन हैं और कहां जा रहे हैं? खुद से करें बातचीत

हम सबने अपनी-अपनी वैकल्पिक दुनिया रच ली छोटे-छोटे घोंसलों में, लेकिन घोंसले बनाकर हम भूल गए कि कब, कहां, क्यों…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: दुख के बाद भी जीवन है, छोटी-छोटी खुशियों में छिपा है जीवन का सार

पीड़ा का सामना करने के लिए अपनों से निकटता बनाए रखना चाहिए। जिन लोगों के साथ हम अपने जीवन का…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: असफलता को मानना चाहिए मंजिल पर पहुंचने की पहली सीढ़ी, संकल्प मजबूत हो तो कुछ भी असंभव नहीं

जीवन का नियम है- हर बाधा के बावजूद आगे बढ़ते रहना। कई बार परिस्थितियां इतनी विकट हो जाती हैं कि…

जनसत्ता-दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: इगो की वजह से लोगों के बीच बढ़ रही दूरियां, संयम से रहने का सौंदर्य सबसे बेहतर

हम घरों में देखते हैं कि एकल परिवार होने के कारण पति-पत्नी का अहं किसी भी मुद्दे पर टकरा जाता…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: विफल होने पर बार-बार करना चाहिए सफल होने का प्रयास, नाकामी में ही छिपा होता है कामयाबी का रास्ता

मारी मानसिकता आज इस दिशा में विकसित हो रही है कि हमें अपने उद्देश्य की प्राप्ति तो करनी है, लेकिन…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: अज्ञातवास पर जाना चाहता है मन, भटकाव से बचने के लिए करना पड़ता है उपाय

मनुष्य का स्वभाव विचित्र है। वह प्रसन्नता के कारकों पर मंथन नहीं करता। वह उन बातों को ज्यादा सोचता है,…

जनसत्ता-दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: एक करोड़ का हीरा पहनने से नहीं मिलेगा आनंद, उत्साह और उमंग के लिए अमीर और प्रतिष्ठित होना जरूरी नहीं

हम लाख चाहें फिर भी इस बात को नहीं जान सकते कि हमारे आने वाले कल में क्या होगा। तो…

Life style
दुनिया मेरे आगे: आधी जीत आधी हार, जीवन का रोमांच भी खेल की तरह है, कुछ बुरा है तो कुछ अच्छा भी है

जीवन बहुत ही मायावी है, किसी रोमांचकारी खेल की तरह। कभी कोई जीतता है, तो कभी कोई हारता है। अगर…

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