Minimalism, Youth and Lifestyle, Simplicity vs. Pretentiousness
दुनिया मेरे आगे: दिखावे की दौड़ में खो गई ‘कम में खुश रहने की सोच’, युवाओं को सादगी क्यों लग रही है बोझ?

जनसत्ता अखबार के स्तम्भ ‘दुनिया मेरे आगे’ में आज पढ़ें अविनाश जोशी के विचार।

climate change, natural disasters, deforestation
दुनिया मेरे आगे: पहाड़ टूट रहे, नदियां उफना रही हैं; हमने जंगल काटे, पहाड़ खोदे तो अब आपदाओं से क्यों कांप रहे हैं

भारत के पहाड़ टूट रहे हैं, नदियां उफन रही हैं और आपदाएं बढ़ रही हैं। जानिए कैसे जंगल काटने और…

Game of law, influential and common man
दुनिया मेरे आगे: पकड़ो आम आदमी, छोड़ो रसूखदार; यह कानून का खेल है या सिस्टम की सच्चाई?

जनसत्ता अखबार के स्तम्भ ‘दुनिया मेरे आगे’ में आज पढ़ें प्रभात कुमार के विचार।

development versus humans, environmental crisis, social values
दुनिया मेरे आगे: तरक्की की दौड़ में हम खुद ही काट रहे हैं अपनी जड़ें, इंसानियत और कुदरत को भी नहीं छोड़ा

जनसत्ता अखबार के स्तम्भ ‘दुनिया मेरे आगे’ में आज पढ़ें दीपिका शर्मा के विचार।

Positive attitude, satisfaction with life, understanding of rights, happy life
दुनिया मेरे आगे: अतीत की यादें और भविष्य की चिंता छोड़िए; हर पल को जीना ही बुद्धिमानी है, जो आज है वही असली जीवन

जनसत्ता अखबार के स्तम्भ ‘दुनिया मेरे आगे’ में आज पढ़ें शिशिर शुक्ला के विचार।

Teacher shortage in India, government school education crisis
दुनिया मेरे आगे: एक शिक्षक, सत्तर बच्चे, देश की कक्षाओं में कोई नहीं पढ़ाने वाला; शिक्षा तंत्र का लाइलाज सच

जनसत्ता अखबार के स्तम्भ ‘दुनिया मेरे आगे’ में आज पढ़ें नवनीत शर्मा के विचार।

दुनिया मेरे आगे: इंसान को महत्त्वाकांक्षी होना चाहिए या नहीं? जानिए हमारे जीवन के लिए क्या है जरूरी

इसमें दोराय नहीं कि महत्त्वाकांक्षा व्यक्ति के भीतर की क्षमताओं में उभार लाकर उसे अपने यथास्थिति का शिकार हो गए…

Dunia Mere Aage, Smiling Family
दुनिया मेरे आगे: खुश रहना है तो कुर्सी से उठिए, वरना डॉक्टर से मिलते रहिए; बैठे-बैठे अमीरी के सपने देखने से बेहतर है चौराहे तक टहल आएं

शारीरिक श्रम, जिसे ज्यादातर सक्षम और संपन्न लोग बेचारगी की दृष्टि से देखते हैं, शायद वही हमारे स्वास्थ्य की बेहतरी…

Housing Crisis, Affordable Housing, Dream Home
दुनिया मेरे आगे: उम्र गुजर जाती है, लेकिन अपना घर नसीब नहीं होता; किराए और मकानों की बढ़ती कीमतों से छिना आम आदमी का सुकून

वक्त के साथ सब कुछ महंगा होते जाने और आय में कमी के साथ-साथ घर बनाना एक टेढ़ी खीर साबित…

Philosophy of life, truth of death, incompleteness
दुनिया मेरे आगे: भरपूर जीने का दावा कोई क्यों नहीं कर पाता? सांसों का हिसाब और जीवन यात्रा का सच

आमतौर पर हर एक व्यक्ति के कुछ न कुछ सामाजिक सरोकार भी होते हैं। इन सरोकारों से जुड़ कर ही…

Positive attitude, satisfaction with life, understanding of rights, happy life
दुनिया मेरे आगे: सिर्फ अच्छा सोचने भर से नहीं होता है काम, अपने हक के लिए खड़ा भी होना होगा; अधिकार के साथ साहस भी जरूरी

जब हमारे वास्तविक अधिकारों की बात होने लगती है, तब नकारात्मक, सकारात्मक विचारधारा या हर हाल में संतुष्टि से भरे…

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