self awareness, empathy, human behavior, self knowledge
दुनिया मेरे आगे: क्या हम सच में दूसरों को जानते हैं – या सिर्फ अपने मन का चित्र देख रहे हैं? क्या ‘सब जानने’ का भ्रम ही हमें सीखने से रोकता है?

जनसत्ता अखबार के स्तम्भ ‘दुनिया मेरे आगे’ में आज पढ़ें एकता कानूनगो बक्षी के विचार।

life balance, struggle and rest, self growth, motivation
दुनिया मेरे आगे: धूप से डरें मत, छांव में रुकें मत – मेहनत और आराम के सही संतुलन से आगे बढ़ने का यही है असली मंत्र

जनसत्ता अखबार के स्तम्भ ‘दुनिया मेरे आगे’ में आज पढ़ें मेघा राठी के विचार।

spiritual practice India, meditation and discipline
दुनिया मेरे आगे: जानने की जिद और उत्सुकता, कैसे एक उल्टी दिशा की पगडंडी ने बदल दी मंजिल और यादें?

जनसत्ता अखबार के स्तम्भ ‘दुनिया मेरे आगे’ में आज पढ़ें खुशी श्रीवास्तव के विचार।

value of empathy, human connection
दुनिया मेरे आगे: शक्कर के डिब्बे से रिश्तों का सच, क्यों परवाह ही है जीवन की सबसे बड़ी ताकत?

जनसत्ता अखबार के स्तम्भ ‘दुनिया मेरे आगे’ में आज पढ़ें गौरव बिस्सा के विचार।

Mobile Addiction, Smartphone Habit, Digital Detox, Dopamine Effect
दुनिया मेरे आगे: सिर्फ मन का एक वादा… और मोबाइल की लत से मिली आजादी, जहां वक्त भी अपना और रिश्ते भी मजबूत

सवाल है कि क्या स्मार्टफोन की इस लत से छुटकारा पाना मुश्किल है, या सिर्फ एक छोटा-सा संकल्प ही काफी…

Words and the power of words, silence and the power of silence
दुनिया मेरे आगे: शब्दों की गूंज और मौन की ताकत, चुप रहकर हम कैसे पाते हैं अंदर की शांति और जीवन का असली आनंद

जनसत्ता अखबार के स्तम्भ ‘दुनिया मेरे आगे’ में आज पढ़ें रश्मि वैभव गर्ग के विचार।

Money and peace, position and fame, human desires
दुनिया मेरे आगे: अगर सब कुछ पैसा ही है तो पैसे वालों की जिंदगी में सुकून क्यों नहीं है? सवाल वही – बाजार में चैन क्यों नहीं बिकता?

जनसत्ता अखबार के स्तम्भ ‘दुनिया मेरे आगे’ में आज पढ़ें राजेंद्र बज के विचार।

Importance of dreams, life and dreams, struggle and success, morality and dreams
दुनिया मेरे आगे: क्या सपने पूरे करने के लिए सिर्फ संघर्ष ही जरूरी है, या आसान रास्ते से भी सुकून मिल सकता है?

जनसत्ता अखबार के स्तम्भ ‘दुनिया मेरे आगे’ में आज पढ़ें अलका ‘सोनी’ के विचार।

fake vs real life, societal hypocrisy
दुनिया मेरे आगे: खोखली मुस्कान और चमक-दमक का समाज, क्या हम भूल चुके हैं असली जीवन की सादगी?

जनसत्ता अखबार के स्तम्भ ‘दुनिया मेरे आगे’ में आज पढ़ें सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’ के विचार।

thought vs propaganda, media machinery, artificial intelligence
दुनिया मेरे आगे: कुछ छोड़ें, कुछ माफ करें और रिश्तों को मजबूत बनाएं – सच्चा सुकून चाहिए तो टेंशन से बाहर निकलें

जनसत्ता अखबार के स्तम्भ ‘दुनिया मेरे आगे’ में आज पढ़ें मुनीष भाटिया के विचार।

truth of life, happiness and sorrow, balance in life, joys and pains
दुनिया मेरे आगे: आनंद और पीड़ा दोनों को गले लगाएं, जिसके पास सबसे ज्यादा सुख है, उसी के पास सबसे गहरा दुख भी है

जनसत्ता अखबार के स्तम्भ ‘दुनिया मेरे आगे’ में आज पढ़ें तनुजा चौबे के विचार।

Minimalism, Youth and Lifestyle, Simplicity vs. Pretentiousness
दुनिया मेरे आगे: दिखावे की दौड़ में खो गई ‘कम में खुश रहने की सोच’, युवाओं को सादगी क्यों लग रही है बोझ?

जनसत्ता अखबार के स्तम्भ ‘दुनिया मेरे आगे’ में आज पढ़ें अविनाश जोशी के विचार।

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