भारत ने अंतरराष्ट्रीय क्रेडिट एजेंसी मूडीज के रेटिंग मैथड की आलोचना की है और इसमें सुधार करने की मांग की है। न्यूज एजेंसी रॉयटर्स ने दस्तावेजों के आधार पर रिपोर्ट दी है कि हालांकि मूडीज ने भारत के कर्ज स्तर और कमजोर बैंकों की चिंताओं का हवाला देते हुए मैथड बदलने से इनकार कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी काफी समय से भारत की कर्ज स्वायत्तता को लेकर बेहतर क्रेडिट रेटिंग की मांग कर रहे हैं, जिससे कि विदेशी निवेश खींचा जा सके और विकास दर को बढ़ाया जा सके। साल 2014 में सत्ता में आने के बाद से मोदी ने निवेश बढ़ाने, मुद्रास्फीति दर को नीचे रखने और चालू खाता व राजस्व घाटे को कम करने के लिए कई कदम उठाए हैं। लेकिन इन सब नीतियों के बावजूद तीन बड़ी वैश्विक रेटिंग एजेंसियों में से किसी ने भी भारत की रेटिंग को अपग्रेड नहीं किया है।
भारतीय वित्त मंत्रालय और मूडीज के बीच हुए अप्रकाशित संवाद से पता चलता है कि भारत रेटिंग कर्ज के बोझ और 136 बिलियन डॉलर के फंसे हुए कर्ज तले दबे बैंकों को लेकर मूडीज को संतुष्ट नहीं कर पाया। अक्टूबर में खतों और ईमेल्स के जरिए वित्त मंत्रालय ने मूडीज के मैथड पर सवाल उठाया और कहा कि वह हाल के सालों में भारत के कर्ज में लगातार हो रही कमी को नहीं गिन रही है। साथ ही राजस्व मजबूती का अध्ययन करने के समय वह देश के विकास के स्तर को भी नजरअंदाज कर रही है। इन तर्कों को खारिज करते हुए मूडीज ने कहा कि भारत की उधारी की स्थिति उतनी अच्छी नहीं है जितनी सरकार बता रही है और इसके बैंक चिंता की वजह है।
मूडीज और इसकी स्वतंत्र एनालिस्ट मैरी डिरोन ने इस बातचीत को लेकर टिप्पणी करने से मना कर दिया। उनकी ओर से कहा गया कि रेटिंग्स विवेचना गोपनीय होती है। वहीं वित्त मंत्रालय ने भी इस संबंध में बयान नहीं दिया। वित्त मंत्रालय से जुड़े पूर्व अधिकारी अरविंद मायाराम ने सरकार के इस कदम को पूरी तरह से असामान्य बताया। उन्होंने रॉयटर्स से कहा, ”रेटिंग एजेंसियों पर दबाव नहीं डाला जा सकता। यह ठीक नहीं है।”
भारत पिछले दो साल से दुनिया की सबसे तेज बढ़ती अर्थव्यवस्था है लेकिन तेज रफ्तार के बावजूद सरकार का राजस्व आधार काफी कम बढ़ा है। भारत की जीडीपी 21 प्रतिशत है जो कि बीएए रेटेड देशों की मध्य रेखा 27.1 प्रतिशत से कम है। भारत को मूडीज की बीएए3 रेटिंग मिली हुई है। ऊंची रेटिंग होने पर भारत में निवेशकों का भरोसा बढ़ जाता है। जीडीपी की तुलना में भारत कर्ज स्तर साल 2004-05 के 79.5 प्रतिशत की तुलना में कम होकर 66.7 प्रतिशत हुआ है। सरकार के राजस्व का पांचवां हिस्सा ब्याज चुकाने की राशि में चला जाता है।
मूडीज के प्रतिनिधियों ने 21 सितम्बर को वित्त मंत्रालय का दौरा किया था। उन्होंने आर्थिक मामलों के सचिव शक्तिकांत दास और उनकी टीम से मुलाकात की। इस बैठक के दौरान माहौल तनावभरा था। इसके बाद 30 सितम्बर को मूडीज ने टेलीकांफ्रेंस के जरिए अपना मैथड समझाया। चार दिन बाद वित्त मंत्रालय ने राजस्व मजबूती पर मूडीज की गणना पर सवाल उठाए। सरकार ने जापान और पुर्तगाल का उदाहरण दिया जिन पर उनकी इकॉनॉमी का दुगुना उधार है। ईमेल के जरिए पूछा गया, ”बताए गए देश आर्थिक और सामाजिक विकास में अलग स्तर पर हैं, ऐसे में क्या देशों की गणना मध्यरेखा पर की जानी चाहिए जैसे कि मूडीज ने किया है। भारत के मामले में देखें तो साल 2004 के बाद कर्ज का बोझ कम हुआ है लेकिन यह रेटिंग्स में नहीं दिखता।”
सरकार की ओर से कहा गया कि बेहतर विदेशी मुद्रा और आर्थिक विकास के आधारों को ध्यान में रखा जाए। इसके जवाब में अगले दिन डिरोन ने कहा कि समान रेटिंग पर भारत का कर्ज बोझ अन्य देशों की तुलना में ज्यादा है। साथ ही कर्ज सहने की इसकी क्षमता भी कमजोर है। बैंकों के फंसे हुए लोन को लेकर सुधार की उम्मीद कम है।
27 अक्टूबर को शक्तिकांत दास ने एक बार फिर से मूडीज को संबोधित करते हुए डिरोन को खत भेजा। इसमें उन्होंने मूडीज की भारत के सार्वजनिक खर्चों को लेकर चिंताओं को खारिज किया। मूडीज ने 16 नवंबर को एक बार फिर से भारत को बीएए3 रेटिंग देते हुए कहा कि सरकार ने जो कदम उठाए हैं उन्होंने अभी ऐसे हालात नहीं बनाए हैं जिनसे रेटिंग सुधारी जाए।

