Ladakh में Statehoodऔर संविधान की छठी अनुसूची की मांग को लेकर चला आ रहा आंदोलन एक बार फिर तीव्र हो गया है। 24 सितंबर को लेह में हुई हिंसक झड़पों के बाद, जहां पुलिस फायरिंग में चार लोग मारे गए और 80 से अधिक घायल हुए, अब शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों पर प्रशासन का दमनकारी रवैया साफ नजर आ रहा है। लेह एपेक्स बॉडी (LAB) और कारगिल डेमोक्रेटिक एलायंस (KDA) द्वारा बुलाए गए आज के दो घंटे के साइलेंट मार्च (सुबह 10 बजे से) और तीन घंटे के ब्लैकआउट (शाम 6 बजे से) को रोकने के लिए लेह और कारगिल दोनों जिलों में कर्फ्यू जैसे प्रतिबंध लगा दिए गए हैं। मोबाइल इंटरनेट सेवाएं निलंबित कर दी गईं, और पुलिस व अर्धसैनिक बलों की भारी तैनाती की गई है।कारगिल जिले (द्रास, संकू, ताई सुरु, शारगोल, TSG, ज़ांसकर) में साइलेंट मार्च सफल रहा। प्रदर्शनकारियों ने काले बैंड बांधे, मुंह पर टेप लगाया और चुपचाप मार्च किया, जो उनकी ‘बोली बंद’ होने की पीड़ा का प्रतीक था। KDA नेता सज्जाद कारगिली ने कहा, “यह लोकतंत्र की हत्या है। केंद्र ने 24 सितंबर की हिंसा पर रिटायर्ड सुप्रीम कोर्ट जज से जांच का ऐलान किया है, लेकिन बिना सभी हिरासतियों—खासकर सोनम वांगचुक—की रिहाई, मृतकों के परिवारों को मुआवजा और घायलों को चिकित्सा सहायता के यह अधूरी न्याय है।” उन्होंने राज्यhood और छठी अनुसूची की मांग पर बातचीत फिर शुरू करने की शर्त रखी।दूसरी ओर, लेह में मार्च को रोक दिया गया। LAB नेताओं पर पाबंदियां लगाई गईं, और जनता को घरों में कैद कर दिया गया। जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक, जो आंदोलन के प्रमुख चेहरे हैं, 26 सितंबर से नेशनल सिक्योरिटी एक्ट (NSA) के तहत जोधपुर जेल में बंद हैं। केंद्र ने उन्हें ‘हिंसा भड़काने’ का दोषी ठहराया, लेकिन वांगचुक ने हमेशा अहिंसक विरोध का रास्ता अपनाया—35 दिनों का अनशन, दिल्ली तक पैदल मार्च। उनकी पत्नी गीतांजलि अंगमो ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखा, रिहाई की मांग की। रिटायर्ड सिविल सर्वेंट्स ने भी केंद्र की ‘विंडिक्टिव’ कार्रवाई की निंदा की, इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताया।