Ladakh Protest: लद्दाख के डीजीपी एसडी सिंह जमवाल ने लेह में 24 सितंबर को भड़की हिंसा पर चौंकाने वाला बयान दिया, जिसमें उन्होंने सुरक्षाबलों की गोलीबारी को आत्मरक्षा का हवाला बताया। 5000-6000 की उग्र भीड़ ने सरकारी इमारतों, बीजेपी कार्यालयों पर पथराव किया, वाहनों को आग लगाई और पुलिस पर हमला बोला, जिससे 4 नागरिकों की मौत हो गई। डीजीपी खुद मामूली चोटों से बचे, जबकि 17 सीआरपीएफ और 15 लद्दाख पुलिसकर्मी गंभीर रूप से घायल हुए—कुल 70-80 सुरक्षाकर्मी प्रभावित। इतने ही नागरिक भी चोटिल हुए, जिनमें से 6-7 अभी अस्पताल में हैं। यह सब केंद्र-स्थानीय संगठनों के बीच चल रही राज्यhood और छठी अनुसूची की वार्ताओं को पटरी से उतारने की साजिश थी। डीजीपी ने सीधे सोनम वांगचुक पर निशाना साधा, जिन्हें ‘तथाकथित पर्यावरण कार्यकर्ता’ बताते हुए कहा कि उन्होंने शांतिपूर्ण मंच को हाईजैक कर उग्र तत्वों को बुलाया। 25-26 सितंबर की दिल्ली वार्ता से ठीक पहले अनशन शुरू कर माहौल बिगाड़ा गया। वांगचुक की गिरफ्तारी और एनएसए के तहत कार्रवाई को शांति बहाली का कदम बताया। फिर भी, डीजीपी आशावादी हैं: “यह क्षणिक घटना है, लद्दाख का आतिथ्य और संस्कृति फिर चमकेगा।” यह बयान न सिर्फ हिंसा के कारणों को उजागर करता है, बल्कि राजनीतिक साजिशों की परतें भी खोलता है, जो युवाओं की आकांक्षाओं को कुचल रही हैं।