सैलरी अकाउंट के नियम सेविंग्स अकाउंट के मुकाबले अलग होते हैं। दोनों खातों को अलग-अलग जरुरतों के मुताबिक खोला जाता है। सैलरी अकाउंट वह खाता है जो कि एम्पलॉयर द्वारा खुलवाया जाता है। इस खाते में सैलरी ट्रांसफर की जाती है। बैंक कंपनी के खाते में से पैसा लेकर सैलरी अकाउंट्स में ट्रांसफर करते हैं।
वहीं बात करें सेविंग अकाउंट की तो यह कोई भी व्यक्ति खुलवा सकता है इसमें कंपनी का कोई रोल नहीं होता। सैलरी अकाउंट में न्यूनतम बैलैंस की जरूरत नहीं हालांकि सेविंग खाते में न्यूनतम बैलेंस रखना जरूरी होता है जो कि अलग-अलग बैंकों द्वारा अलग-अलग होता है।
सैलरी और सेविंग्स अकाउंट्स पर जुर्माने के क्या नियम होते हैं इसपर लोगों के मन में कई तरह के सवाल होते हैं। ऐसा ही एक सवाल यह है कि सैलरी और सेविंग अकाउंट्स में कितना जुर्माना लगाया जा सकता है? दरअसल बैंक इन दोनों खातों पर अलग-अलग परिस्थिति के मुताबिक जुर्माना लगाते हैं।
सबसे पहले बात करें सैलरी अकाउंट की तो अगर किसी शख्स ने नौकरी बदली है, और सैलरी अकाउंट को बंद नहीं किया और न ही बदला है, तो उसमें मिनिमम बैलेंस बनाएं रखना जरूरी होता है। ऐसा न करने की स्थिति में बैंक द्वारा जुर्माना लगाया जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि नौकरी बदलने पर उस कंपनी के खाते से सैलरी अकाउंट का कोई लिंक नहीं रहता।
यानी नौकरी बदलने पर सैलरी अकाउंट को बंद न करने और न बदलने की स्थिति में मिनिमम बैलेंस बनाएं रखना चाहिए। ऐसा न करने पर बैंक उस सेविंग्स अकाउंट पर मैनटेनेंस फी या जुर्माना लगा सकता है। वहीं सेविंग अकाउंट्स में मिनिमम बैलेंस न रखने पर जुर्माना वसुल किया जाता है जो कि अलग-अलग बैकों के हिसाब से अलग-अलग होता है। बात करें दोनों खातों पर मिलने वाली ब्याज दर की तो सैलरी और सेविंग्स अकाउंट पर मिलने वाली ब्याज दर समान रहती है।