एक निवेशक या करदाता होने के नाते हमारे और आपके भी कुछ अधिकार और कर्तव्य होते हैं। ऐसे में अगर आपने लोन नहीं चुकाया है, तो बैंक या कोई और व्यक्ति बाउंसर भेज कर आपका अपमान नहीं करा सकते। ऐसी स्थिति में कोई भी शख्स जरूरी कदम उठा सकता है। आइए जानते हैं कुछ ऐसे ही अधिकारों और कर्तव्यों के बारें में, जो हर निवेशक को मालूम होने चाहिए।
– फंड डिस्ट्रिब्यूटर या बीमा एजेंट जो प्रोडक्ट आपको बेच रहा है, वह उस पर कितना कमीशन ले रहा है। यह बात जानने का अधिकार हर निवेशक को है। बीमा पॉलिसी लेते वक्त इस रकम के बारे में निवेशक को बताया जाता है, जबकि म्यूचुअल फंड में कमीशन फंड वाली कंपनी डिस्ट्रिब्यूटर को देती है। यह ब्यौरा अकाउंट स्टेटमेंट में रहता है। अगर ये जानकारी आपसे छिपाई जाती है, तो आप म्युचुअल फंड्स के लिए सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी) और इंश्योरेंस रेग्युलेट्री एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (आईआरडीएआई) जैसी नियामक संस्था में शिकायत कर सकते हैं।
– बीमा पॉलिसी लेने के बाद उसे लौटाया भी जा सकता है। कैसे? जीवन बीमा में फ्री लुक पीरियड होता है, जिसमें पॉलिसी से जुड़े दस्तावेज मिलने के 15 दिनों के भीतर उसे लौटाया जा सकता है। बीमा पॉलिसी लौटाने के लिए लिखित आवेदन देना पड़ता है।
– अगर कोई लोन नहीं चुका पाया है, तो उसे बकाया रकम भरने के लिए 60 दिन का नोटिस दिया जाता है। लोन देने वाले या पैसे वसूलने वाले एजेंट्स व बाउंसर्स के पास यह अधिकार नहीं होता कि वे किसी को परेशान करें या उसका अपमान करें। 60 दिन के नोटिस पीरियड में भी वे सिर्फ सुबह सात से शाम सात बजे तक ही कॉल कर सकते हैं। अगर फिर भी आपको परेशान किया जाए, तो बैंक से या पुलिस में शिकायत की जा सकती है।
– डेबिट-क्रेडिट कार्ड से जुड़े फ्रॉड के मामलों में लोगों के पास अधिकार होता है कि वे अनाधिकृत ट्रांजैक्शंस के लिए पैसे न चुकाएं। बर्शते आप अपनी बात साबित कर सकें कि वे ट्रांजैक्शंस आपने नहीं किए हैं। अगर आपको शक है कि कोई गलत तरीके से आपके कार्ड्स का इस्तेमाल कर रहा है, तो बैंक या पुलिस में शिकायत दी जा सकती है।
– आईआरडीएआई के निर्देशानुसार, आपके पास बीमा पॉलिसी के तीन साल पूरे होने पर उसका क्लेम पाने का अधिकार होता है।
– 90 दिनों में आयकर का रिफंड पाना भी आपके अधिकार के तहत ही आता है। अगर रिफंड में देरी हो, तो आप आयकर आकलन अधिकारी के पास जा सकते हैं या आयकर की वेबसाइट पर शिकायत दे सकते हैं। यही नहीं, रिफंड में देरी पर किसी को भी प्रतिमाह 0.5 फीसदी ब्याज दिए जाने का प्रावधान है। ब्याज की रकम रिफंड के राशि पर निर्धारित होती है।
– मान लें कि आपने घर, फ्लैट या कोई संपत्ति खरीदी है, जिसका पजेशन मिलने में देरी की जा रही है। ऐसे में उस प्रोजेक्ट (संपत्ति से जुड़े) के संचालक को निवेशक को प्रति माह कुछ रुपए देने पड़ते हैं। ये रकम होम लोन पर दी जाने वाली ईएमआई के बराबर होती है। इतना ही नहीं, आप बिल्डर या प्रोजेक्ट के डेवलेपर को चुकाई पूरी रकम का रिफंड भी मांग सकते हैं। रिक्वेस्ट देने के 45 दिनों के भीतर उसे यह रकम निवेशक को देनी होती है।
– बैंक में लॉकर सुविधा चाहते हैं, तो जरूरी नहीं है कि आपका उस बैंक में खाता (कोई भी) हो। हालांकि, बैंक इस स्थिति में तीन साल के लिए एक फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी) खोलने के लिए कहता है, जिसमें लॉकर सुविधा के लिए ली जाने वाले शुल्क सम्मिलित होते हैं। मगर बैंक इस सुविधा के बदले अपने प्रोडक्ट जबरन बेचने की कोशिश करे, तो ये समस्या भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को बताई जा सकती है।
– अगर किसी रेस्त्रां या खाने-पीने की जगह पर दी गई सुविधा से असंतुष्ट हैं, तो आप वहां सर्विस चार्ज देने से इन्कार कर सकते हैं। यह रकम बिल में ही जुड़ी होती है। कर या वैट की तरह सर्विस चार्ज पर सरकार का नियंत्रण नहीं होता। ये रकम सीधे तौर पर रेस्त्रां मालिक के जेब में जाती है। फिर भी रेस्त्रां अगर रकम चुकाने को दबाव बनाए, तो उसकी शिकायत उपभोक्ता मामलों के विभाग में की जा सकती है।