स्मार्टफोन चोरी होने पर उसकी लोकेशन का पता लगाया जा सकता है। ऑपरेटिंग सिस्टम (आईओएस) और एंड्रॉयड प्लैटफॉर्म पर यह काम क्रमशः ‘फाइंड माय आईफोन’ और ‘फाइंड माय डिवाइस’ के जरिए हो सकता है। यह सुविधा फोन की ‘सेटिंग्स’ में जाने के बाद ‘सिक्योरिटी’ विकल्प के तहत मिलती है, जिसे एक्टिवेट करना जरूरी है। एक्सपर्ट्स इस बाबत सुझाव देते हैं कि फोन खरीदने के बाद ही इस विकल्प को एक्टिव कर देना चाहिए।
यही नहीं फोन गुम होने या चोरी होने पर यूजर्स उसमें पड़ा डेटा उड़ा सकते हैं। मान लीजिए कि चोर या फिर फोन पाने वाले शख्स ने काफी दिनों तक फोन ऑन नहीं किया, तब आपको रिमोट वाइप की मदद लेनी पड़ेगी। फोन गायब होने के बाद आपको इसे एक्टिव करना होगा। ऐसे में फोन जब भी खुलेगा, उस पर फैक्ट्री सेटिंग्स मिलेंगी।
यहां तक कि मैक्फी मोबाइल सिक्योरिटी जैसी कुछ एंटीवायरस ऐप्स तो गुम या चोरी हुए फोन से सिम हटा देने के बाद भी उसे ट्रैक करते रहते हैं। ये ऐप्स फोन के असल मालिक को नए फोन नंबर और उसके ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) लोकेशन की जानकारी भी देते हैं।
वहीं, फोन पाने वाला अगर उसे अनलॉक या लॉग इन करने के दौरान कई बार विफल होता है, तो डिवाइस अपने आप उसकी तस्वीर खींच कर रजिस्टर्ड मेल (शुरुआत में सिस्टम सेटअप करने के दौरान) पर भेज देगी है। नॉर्टन की मोबाइल सिक्योरिटी ऐप तो सिम हटाने पर फोन ही लॉक कर देती है।
हालांकि, फोन की लोकेशन तभी पता लगाई जा सकती है, जब उसमें सिम कार्ड हो या फिर इंटरनेट कनेक्टिविटी। अगर फोन चुराने के बाद कोई फौरन उसे बंद कर देता है, तो डिटेक्शन टूल अपना काम नहीं कर पाएंगे। ऐसे में अगर फोन खो जाए, तो पीड़ित को मोबाइल नंबर ब्लॉक कराने के अलावा फोन पर पड़े पर्सनल डेटा को भी डिलीट कर देना चाहिए, ताकि कभी उनका कोई गलत इस्तेमाल न कर सके। मसलन आपके निजी फोटो, वीडियो और ऑडियो।
अधिकतर यूजर मोबाइल में कठिन पिन या फिर पासकोड सेट कर अपने फोन को सुरक्षित समझते हैं। पर उन्हें हाई प्रायरिटी ऐप्स के लिए ऑटो लॉग इन को भी डिसेबल करना चाहिए। यूजर्स इसके अलावा अपने संवेदनशील डेटा को एनक्रिप्ट कर के उसे थोड़ा और सुरक्षित रख सकते हैं।