ट्रेन में सफर के दौरान कई बार यात्री चोरी और लूटपाट का शिकार हो जाते हैं। उन्हें बीच में किसी स्टेशन पर उतरकर पुलिस-जीआरपी के चक्कर लगाने पड़ते हैं या फिर वे चुपचाप अपने गंतव्य को लौट जाते हैं। अधिकतर मामलों में न तो उनका सामान मिलता है और न ही उनकी शिकायत पुलिस के रजिस्टर में दर्ज होती है। कारण- सही जानकारी का अभाव है। चलती ट्रेनों में सामान के चोरी होने या फिर लूटपाट-डकैती के मामले में सरल तरीके से एफआईआर कराई जा सकती है।

यात्री को इन स्थितियों में ट्रेन के कंडक्टरों, कोच अटेंडेंट, गार्ड्स या गर्वनमेंट रेलवे पुलिस (जीआरपी) के एस्कॉर्ट से संपर्क करना चाहिए। वे आपको एफआईआर का फॉर्म देंगे, जो कि पीड़ित यात्री को भरकर उन्हें वापस देना होगा। शिकायत वाला फॉर्म उसके बाद पुलिस थाने भेजा जाएगा। ऐसे में एफआईआर के लिए परेशान होने या बीच में यात्रा रोकने की जरूरत नहीं है। यही नहीं, पीड़ित यात्री प्रमुख स्टेशनों पर रेलवे पुलिस फोर्स (आरपीएफ) के कर्मचारियों से भी इस बाबत मदद मांग सकते हैं। वे उन्हें मामले से जुड़ी शिकायत दे सकते हैं।

अब बात आती है लगेज बोगी से मंगाए जाने वाले सामान के खोने या नुकसान होने की। फर्ज करें कि किसी ने लगेज बोगी से सामान मंगाया और वह गुम हो गया या उसमें टूट-फूट हो गई, तो क्या उसका मुआवजा मिलेगा? जी हां, ऐसी स्थिति में सामान भेजने वाले शख्स को रेलवे से मुआवजा मिलता है। चूंकि, ज्यादातर सामान भेजने वाला लोग उसे भेजते वक्त कीमत (सामान की) का जिक्र नहीं करते, लिहाजा रेलवे ने उस पर अपने हिसाब से मुआवजे की रकम कर रखी है। यह रकम सामान के वजन के आधार पर दी जाती है, जो कि 100 रुपए प्रति किलो के हिसाब से मिलती है।

हालांकि, अगर सामान भेजने वाले ने उस चीज का दाम पहले ही बता दिया हो और अन्य शुल्क (पर्सेंटेज चार्ज) भी चुका दिए हों तो वह जितने रुपए का मुआवजा ठोकेगा, वह उतनी रकम पाने का हकदार होगा। मगर ये रकम की सामान की असल रकम (बुकिंग के वक्त) से अधिक नहीं होनी चाहिए। सामान भेजने के दौरान जो पर्सेंटेज चार्ज लिया जाता है, उसके बारे में लगेज बुकिंग ऑफिस में पता किया जा सकता है।