Olga Ladyzhenskaya Google Doodle: गूगल ने गुरुवार (7 मार्च, 2019) को रूसी मैथमेटिशियन ओल्गा लैडिजेनस्काया की याद में खास डूडल बनाकर उनके 97वें जन्मदिन पर उन्हें श्रद्धांजलि दी। लैडिजेनस्काया को उनके डिफरेंशियल इक्वेशन्स और फ्लूड डायनैमिक्स पर किए गए काम के लिए जाना जाता है। गूगल ने उनके जन्मदिन पर डूडल और यूट्यूब वीडियो बनाकर उन्हें याद किया है। यूट्यूब ने उनके जीवन और उपलब्धियों पर एक वीडियो तैयार किया है। लैडिजेनस्काया का जन्म भूतपूर्व सोवियत यूनियन (अब रूस) के कोलोग्रीव शहर में हुआ था।
उनके पिता गणित के शिक्षक थे और उन्हीं से लैडिजेनस्काया की गणित में दिलचस्पी बनी। लेडी शेंज़किया का जीवन संघर्षों से भरा रहा। बचपन में ही उनकी शादी हो गई थी। सोवियत यूनियन सरकार ने उनके पिता को “लोगों का दुश्मन” करार दिया था। शेंज़किया 15 साल की थीं जब उनके पिता को आंतरिक मंत्रालय ने गिरफ्तार किया था। कैद में उन्हें भीषण यातनाएं दी गईं जिसके चलते उन्होंने दम तोड़ दिया।
Olga Ladyzhenskaya Google Doodle
1980 से लेकर 2000 तक ओल्गा को दुनिया भर में सम्मान मिला। 1992 में उन्हें एसवी कोवलेस्की प्राइज मिला। 13 मई, 2002 को उन्हें यूनिवर्सिटी ऑफ बॉन से ऑनरेरी डॉक्टरेट की उपाधि दी गई। उन्हें गोल्डन लोमोनोसोव मेडल, द लॉफे मेडल और 2003 में सेंट पीटर्सबर्ग यूनिवर्सिटी मेडल से नवाजा गया।
1954 और 1961 में उन्हें लेनिनग्राद स्टेट यूनिवर्सिटी के फर्स्ट प्राइज से नवाजा गया। 1961 से 1991 तक वह सोवियत संघ में स्टेकलोव मैथमैटिकल इंस्टीट्यूट ऑफ द अकैडमी ऑफ साइंसेज में मैथमैटिकल फिजिक्स लैब की हेड भी रहीं, जबकि 1969 में उन्हें सोवियत संघ के चेबशेव प्राइज और यूएसएसआर के स्टेट प्राइज से सम्मानित किया गया था।
ओल्गा का पति से बच्चा पैदा करने पर उनका मनभेद था, लिहाजा पूरी जिंदगी उन्होंने अकेली रहने का फैसला ले लिया। हुआ यूं कि 1947 में ग्रैजुएशन पूरा करने के बाद वह लेनिनग्राद पहुंचीं। वहां पढ़ाई के बीच उनकी रुचि मैथमेटिकल फिजिक्स में पनपी।
ओल्गा का जन्म सात मार्च, 1922 को सोवियत संघ (तब) के कोलोग्रिव शहर में हुआ था। वह जब 15 साल की थी, तब उनके पिता की गिरफ्तार कर हत्या कर दी गई थी। उन्हें तब लोगों का दुश्मन बताया गया था। यहीं से ओल्गा के जीवन में संघर्ष और परेशानियों ने दस्तक देना शुरू किया था। हालांकि, समय और स्थितियों के आगे उन्होंने घुटने नहीं टेके।
उन्हें भले ही प्रतिभाशाली गणितज्ञ के रूप में दुनिया जानती है, मगर लेनिनग्राद विश्वविद्यालय ने उन्हें दाखिला देने से मना कर दिया था। वजह- उनके 'परिवार का नाम' था। पर न ही वह निराश हुईं और न ही उन्होंने हार मानी। आगे वह मॉस्को स्टेट यूनिवर्सिटी पहुंचीं, जहां से पढ़ाई की। हालांकि, 1953 में उन्हें लेनिनग्राद विवि में दूसरा मौका मिला।
ओल्गा न केवल गणित और विज्ञान में रुचि रखती थीं, बल्कि कला से भी उनका खासा लगाव था। वह सेंट पीटर्सबर्ग के बौद्धिक वर्ग में खासा सक्रिय रहती थीं। सामाजिक मुद्दों पर भी वह बेबाक राय रखती थीं। एक बार उन्होंने लेनिनग्राद में कई गणितज्ञों और उनके परिवारों की मदद की थी। ओल्गा ने तब उन्हें रहने के लिए छत का बंदोबस्त कराया था। वह भी तब, जब देश में अधिनायकवादी सत्ता होती थी।
1981 में ओल्गा को एकैडमी ऑफ साइंसेज ऑफ द यूएसएसआर में सदस्य (कॉरसपॉन्डिंग), 1985 में जर्मन अकैडमी ऑफ साइंटिस्ट्स लियोपोलडिना और 1989 में एकैडमिया डी लिंसेई में विदेशी सदस्य चुना गया था। आगे वह रशियन अकैडमी ऑफ साइंसेज (1990) की स्थाई सदस्य और अमेरिकन अकैडमी ऑफ आर्ट्स एंड साइंसेज (2001) में विदेशी सदस्य भी रहीं।
1954 और 1961 में उन्हें लेनिनग्राद स्टेट यूनिवर्सिटी के फर्स्ट प्राइज से नवाजा गया। 1961 से 1991 तक वह सोवियत संघ में स्टेकलोव मैथमैटिकल इंस्टीट्यूट ऑफ द अकैडमी ऑफ साइंसेज में मैथमैटिकल फिजिक्स लैब की हेड भी रहीं, जबकि 1969 में उन्हें सोवियत संघ के चेबशेव प्राइज और यूएसएसआर के स्टेट प्राइज से सम्मानित किया गया था।
ओल्गा ने कई शोध पत्र नीना यूरलट्सेवा के साथ मिलकर लिखे थे। दोनों ने उनमें दूसरे चरण की क्वासिलीनियर एलिरप्टिक और पैराबॉलिक एक्वेशंस को लेकर खोजबीन की थी। 1950 के मध्य में ओल्गा और उनके विद्याथियों ने लीनियर और पैराबॉलिक इक्वेशंस पर काम किया था। उन्होंने उसमें बाउंड्री वैल्यू संबंधित दिक्कतों को लेकर हल से जुड़ी पूरी थ्योरी का जिक्र किया था।
ओल्गा की पहली किताब 1953 में प्रकाशित हुई थी। उसका नाम- Mixed Problems for a Hyperbolic Equation था। एक साल बाद वह लेनिनग्राद विवि में शिक्षिका बनीं और बाद में स्टेकलोव मैथमैटिकल इंस्टीट्यूट ऑफ एकैडमी ऑफ साइंसेज ऑफ द यूएसएसआर में शोधार्थी बनीं।
गूगल ने गुरुवार (सात मार्च, 2019) को रूसी गणितज्ञ ओल्गा लैडिजेनस्काया की 97वीं जन्मतिथि पर खास डूडल बनाया। पीले रंग के डिजाइनर डूडल के बीच ओल्गा की तस्वीर (स्केच) थी। उसमें नीचे इक्वेशन लिखी थी, जबकि ऊपर स्केच के दोनों तरफ अंग्रेजी में गूगल लिखा था। डूडल पर क्लिक करते ही ओल्गा के डूडल, उनके काम और गणित की दुनिया में योगदान से जुड़ी जानकारियां खुल कर आ रही थीं।
साल 1951 में ओल्गा की थीसिस पूरी हो गई थी। पर वह 1953 में स्टालिन के निधन तक प्रकाशित नहीं हो पाई। एक अन्य लेख में कहा गया- 1952 तक इसमें देरी आई थी। दरअसल, फॉर्मूला की टाइपसेटिंग में उस दौरान कुछ तकनीकी दिक्कतें आ रही थीं, लिहाजा वह देरी हुई। हालांकि, बाद में उनके काम की तारीफ पेट्रोवस्काई और रेफरीज ने की।
1989 में रूस कम्युनिस्ट शासन से आजाद हुआ और लोकतंत्र की ओर बढ़ा। अब रूसी गणितज्ञ आजाद होकर यात्राएं कर सकते थे, कुछ ने तो पहली बार विदेश का दौरा किया। ओल्गा को पूर्वी यूरोप से बाहर जाने की इजाजत नहीं थी, सिवाय 1958 के जब उन्होंने एडिनबर्ग में इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस ऑफ मैथमेटिक्स में हिस्सा लिया। इसके बाद वह 30 साल बाद ही वहां जा सकीं। स्टालिन की मौत के बाद सोवियत यूनियन में विदेशियों का आना-जाना शुरू हुआ और वे ओल्गा से मिल जाए।
1959 में जब सेंट पीटर्सबर्ग मैथमेटिकल सोसाइटी का गठन हुआ तो ओल्गा को उसका सदस्य बनाया गया। वह 1970 से 1990 तक इस सोसाइटी की वाइस-प्रेजिडेंट रहीं। 1990 से 1998 तक उन्होंने सोसाइटी की अध्यक्षता की। म्यूजियम ऑफ साइंस (बॉस्टन, अमेरिका) में ओल्गा का नाम 20वीं सदी के दिग्गज गणितज्ञों के साथ संगमरमर की मेज पर उकेरा गया है।
1980 से लेकर 2000 तक ओल्गा को दुनिया भर में सम्मान मिला। 1992 में उन्हें एसवी कोवलेस्की प्राइज मिला। 13 मई, 2002 को उन्हें यूनिवर्सिटी ऑफ बॉन से ऑनरेरी डॉक्टरेट की उपाधि दी गई। उन्हें गोल्डन लोमोनोसोव मेडल, द लॉफे मेडल और 2003 में सेंट पीटर्सबर्ग यूनिवर्सिटी मेडल से नवाजा गया।
ओल्गा का जन्म सात मार्च, 1922 को सोवियत संघ (तब) के कोलोग्रिव शहर में हुआ था। वह जब 15 साल की थी, तब उनके पिता की गिरफ्तार कर हत्या कर दी गई थी। उन्हें तब लोगों का दुश्मन बताया गया था। यहीं से ओल्गा के जीवन में संघर्ष और परेशानियों ने दस्तक देना शुरू किया था। बता दें कि उनके पिता भी गणित के शिक्षक थे, जिनकी वजह से ओल्गा की रुचि इस विषय की ओर बढ़ी थी।
यह इत्तेफाक ही है कि गूगल नामी गणितज्ञ की एक तरफ जन्मतिथि मना रहा है। दूसरी ओर देश भर में सीबीएसई बोर्ड के 10वीं कक्षा के परीक्षार्थी गणित का एग्जाम दे रहे हैं।
60 के दशक में ओल्गा और उनके छात्र पैराबोलिक इक्वेशंस और क्वासीलीनियर इलिप्टिक की बाउंड्री-वैल्यू प्रॉब्लम्स के क्षेत्र में आगे बढ़ने लगे थे। ओल्गा को 1954 और फिर 1961 में लेनिनग्राड स्टेट यूनिवर्सिटी का फर्स्ट प्राइज मिला। 1961 से 1991 तक वह USSR के स्टेकलोव मैथमेटिकल इंस्टीट्यूट ऑफ द एकेडमी ऑफ साइंसेज के मैथमेटिकल फिजिक्स लाइब्रेरी की प्रमुख रहीं।
1953 में Mixed Problems for a Hyperbolic Equation नाम से ओल्गा की पहली किताब प्रकाशित हुई। 1954 में ओल्गा को लेनिनग्राद स्टेट यूनिवर्सिटी में शिक्षिका बनाया गया। यूएसएसआर के स्टेकलोव मैथमेटिकल इंस्टीट्यूट ऑफ द एकेडमी ऑफ साइंसेज में ओल्गा ने कुछ दिन तक बतौर रिसर्चर भी काम किया।
1950 के दशक में ओल्गा ने अपनी डिप्लोमा थीसिस की तैयारी शुरू कर दी थी। 1951 में उन्होंने थीसिस पूरी कर लीं मगर 1953 में स्टालिन की मौत से पहले वह प्रकाशित नहीं कर सकीं। एक जगह यह भी लिखा गया है कि "फार्मूलों की टाइपसेटिंग में आनी वाली तकनीकी दिक्कतों" की वजह से ओल्गा अपनी थीसिस प्रकाशित नहीं करा सकीं।
1947 में ग्रैजुएशन पूरा करने के बाद ओल्गा वापस लेनिनग्राद पहुंचीं। यहां लेनिनग्राद स्टेट यूनिवर्सिटी से उन्होंने अपना पोस्टग्रैजुएट कोर्स पूरा किया। यहां पर पढ़ाई के दौरान उनकी रुचि मैथमेटिकल फिजिक्स में पैदा हुई। इसी साल उन्होंने नंबर थ्योरी एक्सपर्ट और मैथमेटिक्स के इतिहासकर आंद्रे एलेक्सेविच से शादी कर ली। दोनों का रिश्ता मधुर था मगर आंद्रे को बच्चे चाहिए थे पर ओल्गा अपनी पूरी जिंदगी गणित को समर्पित करना चाहती थीं। दोनों अलग हो गए और ओल्गा ताउम्र अकेली रहीं।
ओल्गा लैडिजेनस्काया बेहद प्रतिभाशाली छात्रा थी। इसी वजह से जब वह जरूरी लेक्चर्स में नहीं पहुंचती तो अधिकारी नजरअंदाज कर देते थे। इस दौरान वह रिसर्च सेमिनार अटेंड कर रही होती थीं। यूनवर्सिटी में पढ़ाई के चौथे साल में उन्होंने एक यूथ सेमिनार शुरू कराया। इसमें उनके गुरु इवन पेट्रोस्की न सिर्फ शामिल हुए, बल्कि साल भर तक अपनीे हाजिरी देते रहे।
ओल्गा लैडिजेनस्काया ने कुछ समय तक उसी स्कूल में पढ़ाया जहां उनके पिता पढ़ाते थे। 1943 में वह अपने एक छात्र की मां की मदद से मॉस्को स्टेट यूनिवर्सिटी में दाखिला पाने में सफल रहीं। यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान ही ओलगा के मन में गणित के लिए दिलचस्पी पैदा हुई और उन्हें 'स्टालिन स्टाइपेंड' और मजदूर का राशन कार्ड दिया गया जिसके बिना शायद उनका जीवन चल पाना मुश्किल होता। यहीं से उन्होंने बीजगणित, अंक सिद्धांत और भिन्नों के बारे में पढ़ना शुरू किया।
जब दूसरा विश्व युद्ध शुरू हुआ तो ओल्गा लैडिजेनस्काया के पास लेनिनग्राद छोड़ने के सिवा कोई चारा नहीं बचा था। पहले वह गोरोडेट्स गईं जहां उन्होंने एक अनाथालय में पढ़ाया, फिर अपनी मां और बहन के साथ कोलोग्रिव आ गईं। पिता की तरह ओगला ने भी न सिर्फ स्कूल में, बल्कि घर पर भी बच्चों को पढ़ाया, वह भी बिना किसी फीस के।
ओल्गा लैडिजेनस्काया की दो बहनों की पढ़ाई पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, मगर अधिकारियों ने उन्हें पढ़ाई खत्म करने की अनुमति दे दी थी। जब ओगला 15 साल की थीं, तब उनके पिता को स्टालिन के अधिकारियों ने गिरफ्तार कर बिना किसी सुनवाई के मौत की सजा सुनाई गई थी। माना जाता है कि 23 से 30 अक्टूबर 1937 के बीच ओगला के पिता को जमकर यातनाएं दी गई थीं।
ओल्गा लैडिजेनस्काया की पहली किताब 1953 में छपी जिसका नाम था Mixed Problems for a Hyperbolic Equation। यह किताब बहुत सारी गणितीय समस्याओं के हल सामने रखती है। 1954 में उन्हें लेनिनग्राड यूनिवर्सिटी में शिक्षक नियुक्त किया गया।
ओल्गा लैडिजेनस्काया की 12 जनवरी, 2004 को नींद में ही मौत हो गई। उन्हें सेंट पीटर्सबर्ग बेहद पसंद था और वो उस दिन वहीं रहना चाहती थी, मगर 11 जनवरी को उन्होंने यात्रा से पहले आराम करना चाहा और नींद में ही चल बसीं।
1953 में जब जोसेफ स्टालिन की मौत हुई तो लैडिजेनस्काया ने अपनी डॉक्टोरल थीसिस और डिग्री सामने रखी। इसके बाद उन्होंने स्टेकलोव इंस्टीट्यूट और लेनिनग्राद की यूनिवर्सिटी में पढ़ाया। वह सोवियत यूनियन के पतन के बावजूद रूस में ही बनी रहीं।
ओल्गा लैडिजेनस्काया उसी लेनिनग्राद यूनिवर्सिटी में शिक्षक बनीं जिसने कभी उन्हें दाखिला देने से इनकार कर दिया था। इसके अलावा उन्होंने स्टेक्लॉव इंस्टिट्यूट में भी पढ़ाया।
ओल्गा लैडिजेनस्काया को दूसरा मौका 1953 में सोवियत यूनियन प्रधान स्तालिन की मृत्यु के बाद मिला। 1953 में उन्होंने अपने थीसिज़ पेश किए जिसके बाद उन्हें अपनी डिग्री मिली। ओल्गा लैडिजेनस्काया मशहूर मैथमेटिशियन इवान पेट्रॉसकी की स्टूडेंट थीं।
लैडिजेनस्काया 15 साल की थीं जब उनके पिता को गिरफ्तार किया गया और बाद में उनकी हत्या कर दी गई थी। अच्छे ग्रेड्स हासिल करने के बावजूद उन्हें लेनिनग्राद यूनिवर्सिटी में दाखिला नहीं मिला था। लेनिनग्राद यूनिवर्सिटी रूस की सबसे बड़ी और पुरानी यूनिवर्सिटीज में से एक है।
गूगल ने एलिप्टिकल शेप (elliptical shape) में डूडल बनाया है। माना जा रहा है कि इससे गूगल ने लेडी लैडिजेनस्काया के लीनियर और क्वास्लीनियर इक्वेशन्स पर किए गए काम को श्रद्धांजलि दी है।