अपने बयानों को लेकर अक्सर सुर्खियों में रहने वाले मार्कण्डेय काटजू ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के संस्थापक सर सैय्यद अहमद खां को अंग्रेजों के हाथ कठपुतली बताया। काटजू ने कहा कि ‘सर सैय्यद अहमद खां ने अंग्रेजों की फूट डालने नीति को आगे बढ़ाते हुए भारत को बहुत नुकसान पहुंचाया है।’ काटजू ने आगे कहा कि ‘बनारस हिंदू यूनीवर्सिटी और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना अंग्रेजों की फूट डालो, शासन करो नीति का हिस्सा थी। एक यूनिवर्सिटी हिंदू या मुस्लिम कैसे हो सकती है। इसलिए मैं सर सैय्यद अहमद खां और बनारस हिंदू यूनीवर्सिटी के संस्थापक मदन मोहन मोहन मालवीय दोनों को ब्रिटिश सरकार का एजेंट मानता हूं।’ सर सैय्यद अहमद खां 1857 की क्रांति के वक्त ब्रिटिश शासन के प्रति वफादार थे और क्रांतिकारियों को गलत मानते थे। काटजू ने आगे कहा साल 1869 में सर सैय्यद अहमद खां को ब्रिटिश सरकार की तरफ से ऑर्डर ऑफ स्टार इंडिया सम्मान दिया गया था। अगर सर सैय्यद अहमद खां अंग्रेजों के प्रति वफादार न होतो तो उन्हें ये सम्मान क्यों दिया जाता। काटजू ने अपने इस फेसबुक पोस्ट में आगे कहा कि मैं पब्लिसिटी का भूखा नहीं हूं। मैं अक्सर जो बातें कहता हूं उसे लोग पसंद नहीं करते। उदाहरण के तौर पर मैंने जब गांधी, सुभाषचंद्र बोस, रविंद्रनाथ टैगोर, बीफ बैन, बुर्का और तलाक पर दिए गए मेरे बयानों को लोगों ने पसंद नहीं किया।

काटजू ने कहा कि मैं जो भी कहता हूं उसका कारण भी बताता हूं। जिन्हें मेरी बात गलत लगती है वो अपने कारण बताएं। इससे पहले भी काटजू ने अपने फेसबुक पर लिखा था- कौन सही है- गांधी या भगत सिंह और सूर्य सेन? काटजू ने लिखा- जब 1938 में इंग्लैंड के प्रधानमंत्री नेविले चेम्बरलिन जर्मनी से म्यूनिख समझौता करके लौटे थे तो विपक्ष के नेता विस्टन चर्चिल ने कहा था कि आपके पास युद्ध या अपमान में से विकल्प चुनने का अधिकार है और आपने अपमान चुना। तो भारतीयों, आपको फेक महात्मा गांधी और असली फ्रीडम फाइटर भगत सिंह और सूर्य सेन में चुनने को विकल्प दिया गया था। आपको एक वास्तविक स्वतंत्रता संग्राम के बीच एक स्वतंत्रता सेनानी को चुनने का विकल्प दिया गया। एक ऐसा स्वतंत्रता सेनानी जो कि हमेशा सशस्त्र संघर्ष की बात करता हो क्योंकि बिना सशस्त्र लड़ाई के कोई अपना साम्रज्य नहीं देता है।