Atal Bihari Vajpayee Birthday: पूरा भारत आज करिश्माई नेता अटल बिहारी वाजपेयी की 100वीं जयंती बना रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती पर पीएम नरेंद्र मोदी ने एक लेख के जरिए कहा, “नब्बे के दशक में एक सामान्य परिवार से आने वाले वाजपेयी ने देश को स्थिरता और सुशासन का मॉडल दिया। भारत को नव विकास की गारंटी दी। वह ऐसे नेता थे, जिनका प्रभाव भी आज तक अटल है। वह भविष्य के भारत के परिकल्पना पुरुष थे।”
विपक्षी भी करते थे वाजपेयी की तारीफ – राजनीति में वाजपेयी की कुशलता किसी से छिपी नहीं लेकिन शायद जिस बात ने उन्हें अपने साथी राजनेताओं और आम आदमी के बीच अधिक लोकप्रिय बनाया, वह था उनका काव्यात्मक पक्ष जो अक्सर उनके जोशीले भाषणों में झलकता था। पूर्व प्रधानमंत्री ने संसद में बोलते समय अपने वाक् कला और चुटीली टिप्पणियों के कारण विपक्ष के सदस्यों से भी प्रशंसा प्राप्त की तथा काव्य से भरपूर उनके सार्वजनिक भाषणों ने भीड़ की भी जमकर तालियां बटोरीं।
16 अगस्त 2018 को हुआ अटल बिहारी वाजपेयी का निधन
अटल बिहारी वाजपेयी का 93 साल की उम्र में लंबी बीमारी के बाद 16 अगस्त 2018 को निधन हो गया था। वाजपेयी ने वास्तव में अपनी कविता ‘अपने मन से कुछ बोलें’ में मानव शरीर की भंगुरता को रेखांकित किया था। इसके एक छंद में उन्होंने लिखा था– ‘पृथ्वी लाखों वर्ष पुरानी, जीवन एक अनंत कहानी; पर तन की अपनी सीमाएं; यद्यपि सौ शरदों की वाणी, इतना काफी है अंतिम दस्तक पर खुद दरवाजा खोलें’। उन्होंने एक बार अपने भाषण में यह भी कहा था कि ‘मनुष्य सौ साल जिए ये आशीर्वाद है, लेकिन तन की सीमा है।’
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ग्वालियर में 25 दिसंबर 1924 को जन्मे भारत रत्न से सम्मानित वाजपेयी अंग्रेजी में निपुण थे। हालांकि, संसद के अंदर या बाहर जब भी वह हिंदी में बोलते थे, उनकी तीखी टिप्पणियों के साथ-साथ समयानुकूल व्यंग्य भी उनके वाक् कौशल को चार चांद लगाता था। एक अनुभवी राजनीतिज्ञ के रूप में उन्होंने संदेश को स्पष्ट करने के लिए सावधानीपूर्वक शब्दों का चयन किया तथा अपने व्यंग्य में भी गरिमामयी अंदाज बनाए रखा।
‘शब्दों के जादूगर’ नाम से जाने जाते थे
अटल बिहारी वाजयेपी अपने भाषणों में शब्दों का चयन इतनी कुशलता से करते कि उन्हें सुनने के लिये लोग लालायित रहते और उन्हें ‘शब्दों का जादूगर’ जैसी उपाधियां देते। उनके अधिकांश भाषणों में देश के प्रति उनका प्रेम और लोकतंत्र में आस्था, एक मजबूत भारत के निर्माण के उनके दृष्टिकोण के अनुरूप प्रतिध्वनित होती थी।
अपनी 13 दिन की अल्पमत सरकार के विश्वास मत से पहले 27 मई, 1996 को संसद में अपने जोरदार और प्रेरक भाषण में वाजपेयी ने प्रसिद्ध टिप्पणी की थी, “सत्ता का तो खेल चलेगा, सरकारें आएंगी, जाएंगी; पार्टियां बनेंगी, बिगाड़ेगी; मगर ये देश रहना चाहिए, इस देश का लोकतंत्र अमर रहना चाहिए”। वाजपेयी की सरकार गिर गयी थी। (इनपुट – भाषा)
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